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बिहार में जदयू का भूकंप,नीतीश के प्रेशर पॉलिटिक्स से इंडी गठबंधन के छूट रहे पसीने, बिहार की सियासत में अब आगे क्या होगा? इनसाइड स्टोरी

बिहार में जदयू का भूकंप,नीतीश के प्रेशर पॉलिटिक्स से इंडी गठबंधन के छूट रहे पसीने, बिहार की सियासत में अब आगे क्या होगा?  इनसाइड स्टोरी

पटना-  बिहार की राजनीति का 'चाणक्य'  नीतीश कुमार को माना जाता है.कुमार राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं,चाहे  गठबंधन वे एनडीए में रहे या लालू के साथ गठबंधन कर सरकार बनावें ,नीतीश ने हमेशा नेतृत्व किया है. जदयू  के अस्तित्व में आने के बाद नीतश कुमार ने बिहार में पार्टी को मजबूत करना शुरू किया,बिहार की जनता बदलाव चाहती थी, और 2005 के चुनाव में उन्हें नीतीश में उम्मीदें दिखीं, जदयू के पक्ष में बंपर वोट पड़े और पार्टी की जीत हुई. इस तरह से नीतीश कुमार दूसरी बार 24 नवंबर 2005 को मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए, और उनकी सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. इसके बाद फिर चुनाव हुए तो वे 26 नवंबर 2010 को फिर मुख्यमंत्री बने.इस तरह नीतीश कुमार ने  बिहार के मुख्यमंत्री पद के लिए आठ बार शपथ लिया और 18 साल से सीएम की गद्दी पर आसीन हैं तो इसके पीछे राजनीतिक जानकारों के अनुसार नीतीश के राजनीति का अनोखा अंदाज है.

नीतीश चाहे एनडीए के साथ हों या इंडी गठबंधन या राजद के साथ करते वे अपने मन की हीं हैं. सियासी शतरंज की बिसात पर उनका कोई मोहरा शायद ही कभी पिटता हो.कहते हैं नीतीश के बाएं हाथ के काम के बारे में जाएं को पता नहीं होता है. उनके साथ रहने वाले तक को काम हो जाने के बाद हीं पता चलता है. नीतीश सटीक समय पर अमोघ अस्त्र का इस्तेमाल करने के लिए जाने जाते हैं. वर्ष 2022 में नीतीश ने एनडीए छोड़ कर महागठबंधन के साथ जाने का फैसला लिया तो इसकी भी भनक किसी को नहीं लगी. नीतीश ने 2017 में जब महागठबंधन छोड़ा था तो यही कहा था कि आरजेडी का दबाव ज्यादा था. ठीक उसी अंदाज में एनडीए छोड़ते वक्त उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाया था.  संख्या बल में कमजोर रहने के बावजूद नीतीश हमेशा अपने सहयोगी दलों पर हावी रहते हैं.

 जिस तरह से नीतीश कुमार के एनडीए के साथ जाने की भी खबरें मीडिया में सामने आई हैं इससे कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के दल परेशान हैं. नीतीश कुमार के एनडीए में जाने की खबरों से हड़कंप मचा हुआ है और बिहार में आनन-फानन में लालू यादव ने भी मोर्चा संभाला लिया. कहा जा रहा है कि उन्होंने ही इंडिया गठबंधन के नेताओं को मनाने में अपना जोर लगा दिया. हालांकि, अंदर ही अंदर लालू यादव के आपात राजनीतिक स्थिति के लिए भी उनके तैयार होने की खबरें भी सामने आने लगीं और सियासी मुलाकातों का क्रम भी शुरू हो गया. बता दें कि बीते 31 दिसंबर को बिहार विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी के राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के आवास पर पहुंचने की खबरें आम हुईं तो ऐसी अटकलों ने और भी जोर पकड़ लिया. खास बात यह रही कि मंत्री शमीम अहमद भी लालू प्रसाद यादव से मिलने पहुंचे थे. विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी लालू यादव से मिलने के बाद राबड़ी देवी के आवास भी पहुंचे थे तब और हलचल बढ़ गई थी. इसके साथ ही JDU के पूर्व मंत्री श्याम बिहारी प्रसाद भी लालू यादव और राबड़ी देवी से मिलने पहंचे थे. अचानक हुई इन मुलाकातों ने बिहार में सियासी सरगर्मी अचानक बढ़ा दी थी.

नीतीश कुमार को इंडिया का संयोजक बनाए जाने के लिए कांग्रेस समेत कई सहयोगी दल तैयार हो गए हैं. नाम मल्लिकार्जुन खड़गे, उद्धव ठाकरे, शरद पवार समेत कई नेताओं के नाम सामने आए कि उन्होंने नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन का संयोजक बनाए जाने पर अपनी सहमति दे दी है. खबरों में यह बात आई कि ऐसा लालू प्रसाद यादव के एक्टिव होने के बाद हुआ क्योंकि इंडिया अलायंस के नेताओं को यह अहसास होने लगा कि अगर नीतीश कुमार ने एक बार फिर पाला बदला तो इंडिया गठबंधन को आगामी लोकसभा चनाव में भारी नुकसान होगा. ऐसे में नीतीश कुमार को संयोजक बनाए जाने की खबरें मीडिया में सुर्खियां बटोरने लगीं, जो अब तक बनी हुई है. नीतीश कुमार की पार्टी जदयू की ओर से अब तक इसको लेकर न तो हामी भरी गई है और न ही इनकार किया गया है. वहीं दूसरी ओर राजनीति के जानकार इस पूरे डेवलपमेंट को अलग नजरिये से देख रहे हैं. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रवि उपाध्याय कहते हैं कि, नीतीश कुमार अब अगर संयोजक बन भी जाते हैं तो रिस्क की बात होगी. 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के चंद दिनों बाद ही चुनाव की घोषणा संभावित है, ऐसे में जल्दी ही आचार संहिता लागू करने की बात होगी. जाहिर है कि अब तैयारियों के लिए पर्याप्त समय नहीं है. यह भी देखना जरूरी है कि आपको लड़ना भी तो भाजपा के खिलाफ है जो लगातार चुनावी मोड में रहती है. 

अगर संयोजक बनाने की बात होगी भी तो सवाल यह है कि क्या ऐसी परिस्थिति में नीतीश कुमार मान जाएंगे? दरअसल, इंडिया अलायंस में खींचतान को नीतीश कुमार भी भलि भाति समझ रहे हैं. चार बैठकें हो गईं और कुछ नहीं मिला. कांग्रेस को लेकर समस्या यह है कि कई राज्यों में उसकी क्षेत्रीय छत्रपों से ही आमने-सामने की लड़ाई है. यूपी, बंगाल, बिहार जैसी जगहों पर बहुत दिक्कत है. ऐसे में नीतीश कुमार अब संयोजक पद के लिए तैयार होंगे?

बिहार में महागठबंधन सरकार बनने के बाद ऐसे अवसर अकसर देखने को  मिल जाते थे जब सीएम नीतीश कुमार लालू प्रसाद के घर पहुंच जाते थे या लालू प्रसाद और तेजस्वी खुद नीतीश कुमार के घर पहुंच जाते थे. पहली जनवरी को राबड़ी देवी का बर्थडे था.यह मौका महागठबंधन में एकजुटता दिखाने का बड़ा अवसर था. पर ऐसे मौके पर भी दोनों परिवारों में आमना सामना नहीं हुआ. नीतीश कुमार इस मौके पर घर पहुंचना तो दूर ट्वीटर पर भी एक लाइन राबड़ी के लिए नहीं लिखा. इसके चलते उन कयासों पर मुहर लग गया है कि ललन सिंह को हटाने का मुख्य कारण लालू यादव से ललन सिंह की नजदीकियां ही थीं. जेडीयू को तोड़ने की खबर में भी बहुत हद तक सचाई थी.दोनों परिवारों ने एक दूसरे को नए साल की भी सार्वजनिक तौर पर बधाई नही दी है.  

नीतीश कुमार को भी भी पता है कि यह उनकी सियासत की अंतिम पारी है और बिहार का मुख्यमंत्री पद को छोड़ संयोजक बनना बुद्धिमानी भरा फैसला तो नहीं होगा, लेकिन नीतीश कुमार को संतुष्टि जरूर देगा. बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की राजनीति का कद निचले धरातल पर हैं और अब लालू यादव अपने पुत्र तेजस्वी यादव को बिहार का सीएम बनाने की हसरत पाले बैठे हैं. ऐसे में नीतीश कुमार का बिहार से जाना जरूरी है. दूसरी बात यह कि नीतीश कुमार की एनडीए से कोई नरमी नहीं, बल्कि चालबाजी है और सिर्फ और सिर्फ लालू यादव का उनपर  दबाव को टालने के लिए उनका एक्शन दिख रहा है.  प्रेशर पॉलिटिक्स के जरिए वह कुछ ऐसा प्राप्त करना चाहते हैं, जिससे वह राजनीतिक तौर पर अपना वजन दिखा सकें. नीतीश कुमार को पीएम पद का सब्जबाग दिखाने वाले ललन सिंह क्यों किनारे कर दिए गए, यह भी समझने वाली बात है. जाहिर तौर पर नीतीश कुमार के मनचाहा अब तक नहीं हुआ और अब वक्त भी नहीं बचा कि वह संयोजक बनकर बहुत कुछ साबित कर पाएं. 

बहरहाल अपने राजनीतिक जीवन के शायद सबसे मुश्किल दौर से गुज़रने के बाद भी फ़िलहाल तो बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार का ना केवल दख़ल बना रहेगा, बल्कि वो बिहार की राजनीति का चेहरा भी बने रहेंगे. 

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