DESK: देश में नेताओं की दलबदल की कहानी आम हो गई है. आए दिन कई छोटे- बड़े नेताओं के दलबदल की खबरें आती ही रहती है. ऐसा खासतौर पर तब होता है जब विधानसभा या लोकसभा चुनाव की आहट होती है. मौजूदा वक्त में अगर किसी नेता को जरा सी भी यह शंका हो जाती है कि उसे टिकट नहीं दिया जाएगा, वह फौरन ही पार्टी विरोधी गतिविधि में शामिल हो जाता है. इसके कुछ ही दिन बाद ही उक्त नेता के इस्तीफे की खबर आती है. फिर जोरशोर से वह किसी अन्य पार्टी से जुड़कर उसका गुणगान करने लगते हैं.
2014 में बीजेपी की शानदार जीत के बाद और अब लगातार दूसरी बार मोदी सरकार के सत्ता में रहने के दौरान काफी ज्यादा दलबदल हुए हैं. इसमें सबसे ज्यादा उस पार्टी के नेता हैं जो सबसे पुरानी और कभी देश की सबसे बड़ी पार्टी थी, यानी कि कांग्रेस. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि साल 2016 से 2020 के दौरान हुए चुनावों के समय कांग्रेस के 170 विधायक दूसरे दलों में शामिल हो गए जबकि भाजपा के सिर्फ 18 विधायकों ने दूसरी पार्टियों का दामन थामा.
2016 से 2020 के बीच फिर से चुनाव लड़ने वाले 405 विधायकों में से 182 ने पाला बदला और भारतीय जनता पार्टी ज्वॉइन कर लिया. इसके अलावा 38 विधायकों ने कांग्रेस ज्वॉइन किया और 25 विधायक तेलंगाना राष्ट्र समिति में शामिल हो गए. रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान पांच लोकसभा सदस्य भाजपा को छोड़कर दूसरे दलों में शामिल हुए तो 2016-2020 के दौरान कांग्रेस के सात राज्यसभा सदस्यों ने दूसरी पार्टियों में शामिल हुए.
रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि विधायकों के पयालन के कारण ही कई राज्यों में हाल में ही मौजूदा सरकारें गिर गईं. नेशनल इलेक्शन वॉच और एडीआर ने 433 सांसदों और विधायकों के शपथ पत्रों का विश्लेषण किया है, जिन्होंने पिछले पांच वर्षों में पार्टियां बदली और फिर से चुनाव लड़े.