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लालू बस "यादवों" के नेता, जातीय गणना ने यह साबित कर दिया,EBC बहुत पहले छोड़ चुका है साथ,अब OBC में कोयरी ,धानुक भी दिखा रहे ठेंगा...पढ़िए इनसाइड स्टोरी

लालू बस "यादवों" के नेता, जातीय गणना ने यह साबित कर दिया,EBC बहुत पहले छोड़ चुका है साथ,अब OBC में कोयरी ,धानुक भी दिखा रहे ठेंगा...पढ़िए इनसाइड स्टोरी

बिहार की राजनीति में जातीय जनगणना का मुद्दा गरमाया हुआ है. राष्ट्रीय जनता दल इस मुद्दे पर लगातार बयान देकर केंद्र की भाजपा सरकार को घेरने में जुटी है और साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भी दबाव बना रही है. बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने तो मोदी सरकार को पिछड़ा और अति पिछड़ा विरोधी कहा तो बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद सुप्रीमो लालू यादव ने भी जातीय जनगणना पर अपनी रणनीति धरातल पर उतारने में जुटे हैं. इंडिया महागठबंधन बनने के बाद लालू लगातार राजनीतिक क्षितिज पर छाये हुए थे.नीतीश ने विपक्षियों को एक करने की मुहिम शुरु की, सफल हुए और इंडिया महागठन बन गया लेकिन नीतीश को इससे कुछ हासिल नहीं हुआ और वह एकाकी बने रहे. नीतीश बैकफुट पर थे और लालू यादव लगातार दनादन बैंटिंग कर चौके छक्के लगा रहे थे. जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी होने के बाद परिस्थिति बदल गई. सीएम नीतीश की चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर होने लगी. कांग्रेस ने भी इस मुद्दे को दो राज्यों में होने वाले चुनाव में मुद्दा बना दिया. अब नीतीश बैटिंग कर रहे हैं तो कारण भी है.

सामाजिक समीकरण के सबसे माहिर खिलाड़ी हैं नीतीश

बिहार में जातीय गणना कराकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने विरोधियों के साथ सहयोगियों को भी चीत कर दिया है. मुख्यमंत्री नीतीश सामाजिक समीकरण के सबसे माहिर खिलाड़ी हैं. 18 साल से बिहार में सत्ता के शीर्ष पर बैठे नीतीश जोड़-तोड़ और समीकरण के सहारे सबको पछाड़ देते हैं.जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी कर उन्होंने भाजपा को धारासाई कर दिया है तो राजद सुप्रमो लालू यादव को भी यादव तक समेट कर देश के शीर्ष विपक्षी नेताोओं में शुमार हो गए है.

नीतीश ने लालू को पछाड़ा

बिहार में जाति राजनीति का हमेशा से अहम रोल निभाता है. नीतीश ने साल 2024 के लोकसभा और 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अपने तरकश का अंतिम तीर चला दिया है.नीतीश ने जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी कर न केवल भाजपा को बल्कि अपने सहयोगी दलों पर भी बढ़त बना ली है. पहले मुस्लिमों को राजद का वोट बैंक माना जाता था.यादव तो आरजेडी के परंपरागत वोटर हैं हीं. लंबे समय से राजनीतिक पटल से दूर रहे लालू यादव जातीय मसले को लेकर काफ़ी सक्रिय और गंभीर नज़र आ रहे हैं.उनकी सक्रियता को बिहार की जातीय राजनीति में राजद की पकड़ मजबूत करने के नज़रिए से देखा जा रहा था.बिहार जातीय मुद्दा प्रभावी रहा है.जातीय जनगणना का मामला असल में ओबीसी यानी अन्य पछड़ी जातियों की जनगणना का मामला है. बिहार की राजनीति में ओबीसी जातियों का बहुत प्रभाव है. राजद हो या जदयू दोनों का वोट बैंक ओबीसी जातियां रही हैं.राजद ने जातीय जनगणना रिपोर्ट पर अपना पूरा ज़ोर लगाया हुआ है. बिहार में राजद संभवत: अपने ओबीसी आधार को मज़बूत करना चाहती है. वहीं नीतीश ने अपने तीर से इसमें दो फाड़ कर दिया है.

लालू से छिटका ओबीसी का एक वर्ग 

बिहार की राजनीति में एक समय ऐसा रहा है जब लालू यादव की छवि ओबीसी जातियों के एक बड़े नेता के तौर पर थी, लेकिन धीरे-धीरे गैर-यादव जातियां जैसे कुर्मी, कोइरी, कहार, बेलदार आदि राजद से छिटकती चली गईं.नीतीश कुमार को भी गैर-यादव ओबीसी जातियों का समर्थन मिला और अलग-अलग जातियों के छोटे-छोटे दल भी उभर आए.इससे ओबीसी की पार्टी के तौर पर राजद की छवि धूमिल होती गई. भ्रष्टाचार और परिवारवाद के आरोपों के बीच राजद को यादवों की पार्टी भी कहा जाने लगा. अब लालू यादव सामाजिक न्याय के लिए काम करने वाली पार्टी की छवि और ओबीसी का व्यापक जनाधार वापस पाना चाहते हैं. तो नीतीश भी इस वोट बैंक पर अपनी नजर गड़ाए हुए हैं. वहीं रिपोर्ट जारी होने के बाद मची सियासी घमासान में लालू केवल यादवों के नेता के तौर पर दिख रहे है.

ईबीसी पर नीतीश की नजर

तो वहीं नीतीश ने इस गणना के जरिए मुस्लिम मतदाताओं और अत्यंत पिछड़े वर्ग (ईबीसी) को भी साध दिया है.जाति सर्वेक्षण के अनुसार बिहार  में ईबीसी का प्रतिशत 36 है वहीं यादवों की आबादी 14 प्रतिशत हैं. जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी हिस्सेदारी की बात कह लालू यादव खुद जाल में फंसते दिखाई दे रहे हैं.अगर हिस्सेदारी की आवाज बुलंद होती है तो सत्तारूढ़ महागठबंधन को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.

नीतीश की राजनीति का ये है स्टाइल

नीतीश कुमार इसके जरिए राजनीति में अपनी कमजोर पड़ रही आभा को फिर से राष्ट्रीय स्तर पर चमकाने की कोशिश कर रहे हैं. नीतीश की ये चाल भाजपा के हिंदू ध्रवीकरण को रोकना है. नीतीश सियासी लाभ के लिए पहले भी जातियों को बांटते रहे हैं, एक बार फिर उन्होंने जातियों को वर्गों में बांटकर सियासी लाभ लेने की कोशिश की है.नीतीश कुमार ने बिहार में जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी कर लोकसभा चुनाव के पहले एक बड़ी चाल चल दी है.जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी होने के बाद बिहार की राजनीति में घमासान मचा हुआ है. राजनीतिक पंडित के अनुसार नीतीश कुमार का अपर हैंड इस वक़्त है. आम दिनों में भी जब वो प्रेशर में दिखते हैं तब भी वो दरअसल दबाव में नहीं रहते बल्कि मौक़ा मिलने पर अपने स्टाइल की राजनीति और कामकाज दोनों ही करते हैं. अब रिपोर्ट जारी हो गई है तो नीतीश के एक तीर से कई निशाने साध दिए हैं.


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