नीतीश के साथ लालू की दगाबाजी ! बिहार में तेजस्वी को खूब प्रोजेक्ट कर रहे सीएम तो केंद्र में लालू यादव राहुल को दे रहे बढ़ावा, नीतीश को संयोजक भी नहीं बनने दिया!

पटना- क्या यह फोटो 2024 की तस्वीर पेश करती है? राहुल गांधी जी को काफी मजबूती के साथ हम लोग विश्वास दिलाते हैं कि हम सब एकजुट होकर सभी लोगों को एकॉमडेट करके सीट शेयरिंग करेंगे, अपना कुछ नुकसान करके भी हम लोग इंडिया को जीताएंगे, लालू का यह बयान बिहार के सियासी गलियारे में चर्चा का विषय बना हुआ है. नीतीश कुमार 2025 में तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने की बात करते हैं, तो वहीं लालू प्रसाद केंद्र की सियासत में नीतीश की जगह राहुल को मजबूत करने की बात क्यों कर रहे हैं? आखिर लालू कौन सा संदेश देना चाहते हैं. लालू के राहुल प्रेम का कारण क्या है?वहीं इस तस्वीर में विपक्ष से भाजपा और आरएसएस को सिर्फ लालू प्रसाद यादव और राहुल गांधी ही वैचारिक रूप से चुनौती देते दिखते हैं. लालू प्रसाद और राहुल का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा से कभी कोई संबंध नहीं रहा है. इन दोनों नेताओं की धर्मनिरपेक्ष साख 26 दलों वाले विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की बड़ी ताक़त है. वबसे दौर करने वाली बात है कि 1996 में जब कांग्रेस के भीतर और बाहर राहुल गांधी की मां सोनिया गांधी को विदेशी बताकर विरोध किया जा रहा था, तब लालू अकेले ऐसे नेता थे, जिन्होंने  उनका बचाव करते हुए उन्हें 'भारत की बहू' बताया था. 

यहीं नहीं जानकारों के अनुसार तमाम बिमारियों को पटखनी देकर लालू सियासी रुप से सक्रिय हो गए है वहीं  लालू की रूचि भाजपा को हराने से ज्यादा तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनने की राह आसान करने में है और लालू को अच्छी तरह से पता है कि नीतीश से ज्यादा भरोसेमंद राहुल उनके लिए साबित हो सकते हैं. 

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दूसरा कारण है लालू प्रसाद राष्ट्रीय नेताओं में शुमार हैं. नीतीश इंडिया महागठबंधन बनने के बाद इसका संयोजक बनने की आश लाए बैठे थे,लालू के गोपालगंज में  बयान से सबसे पहले नीतीश कुमार के संयोजक बनने की चर्चा पर एकाएक ब्रेक लगी. लालू यादव ने सबसे पहले नीतीश कुमार के कंन्वेनर बनने की बात को खारिज कर दिया था. मुंबई की बैठक से कुछ दिन पहले ही उन्होंने गोपालगंज में कह दिया था कि एक नहीं गठबंधन में कई संयोजक  बनेंगे. जानकारों के अनुसार कारण है कि नीतीश इंडिया महागठबंधन के कंवेनर बन जाते तो उनकी छवि राष्ट्रीय पटल के नेताओं में शुमार होती. लालू कभी नहीं चाहते कि उनके समांनांतर कोई नेता खड़ हो.लालू और नीतीश दोनों जितने गहरे दोस्त हैं, उतने ही बड़े एक-दूसरे के प्रतिद्वंद. नीतीश कुमार बिहार के सीएम की कुर्सी तक पहुंचे हैं. नीतीश महागठबंधन की सरकार होने के बाद भी कभी कभी लालू राज की तस्वीर लोगों को याद दिलाने से चूकते नहीं हैं. ऐसे में लालू यादव कभी नहीं चाहेंगे कि नीतीश कुमार का कद देश की राजनीति में उनसे बड़ा हो. यही कारण है कि लालू नीतीश कुमार से ज्यादा राहुल पर भरोसा करते हैं.

 वहीं लालू प्रसाद ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत भले ही 1974 में छात्र नेता और जेपी की अगुआई में हुए आंदोलन में कांग्रेस विरोध को लेकर शुरू की थी, लेकिन धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर उन्होंने कभी समझौता नहीं किया, आखिर उन्माद से भरी लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को रोकने और उन्हें गिरफ्तार करने का साहस भी उन्होंने ही किया था.लालू की साख यही है कि वे भाजपा और संघ को विचारधारा के आधार पर सीधी चुनौती देते हैं. यही बात राहुल के साथ है.  विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के सामने  लालू के बयान के बाद ये साफ हो गया है कि राहुल गांधी ही इंडिया महागठभंधन के नेता होंगे. साथ ही लालू ने अपनी मंशा साफ कर दिया कि वे इंडिया महागठबंधन में आज भी नीतीश से ज्यादा भरोसा राहुल गांधी पर करते हैं.

बिहार की सियासत में लालू एक बार फिर से सक्रिय हो गए हैं तो इसका मतलब साफ है कि वे अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादव को बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाना चाहते है. लालू जानते हैं कि नीतीश पर विश्वास नहीं किया जा सकता है.  ऐसे में नीतीश कुमार से ज्यादा विश्वसनीय उनके लिए कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी होंगे. दोनों पिछले दो दशक से एक-दूसरे के मददगार रहे हैं.तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी दिलाने के लिए वह राजनीति में कांग्रेस के कंधे पर सवारी कर स्थिति मजबूत करना चाह रहे हैं, इसमें नीतीश कुमार का कहीं कोई रोल नहीं है.

लालू प्रसाद यादव के स्वर में नरमी और उनकी अपने भाषाई अंदाज में 'भकचोन्हर' से 'हम सब एक साथ हैं' तक की यात्रा के मायने हैं.बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद लालू और नीतीश साथ मिलकर गैर भाजपाई दलों को एकीकृत किया. जैसे ही गठबंधन ने आकार लिया लालू यादव ने नीतीश की जगह राहुल गांधी को दूल्हा बना दिया.

लालू यादव की बातचीत का अंदाज वैसे भी निराला होता है।.साधारण बात से लेकर गंभीर बात तक वे अपने अंदाज में कह देते हैं. इंडिया महागठबंधन की पटना की बैठक में लालू ने  राहुल गांधी के बारे में कहा राहुल जी, अब आप शादी कर लीजिए, दाढ़ी छोटी रखिए. यहां हम जितने लोग बैठे हैं, वे सभी बाराती बनेंगे. लालू के इस बयान के बाद बिहार के सियासी गलियारे इसका अर्थ निकाला जाने लगा. बिहार के महागठबंधन में शामिल सभी दल नीतीश और लालू की बात काट नहीं सकते. लालू ने शुरू से ही कांग्रेस को जिस तरह से तरजीह दी है, उससे एक बात तो साफ है कि उनके मन में राहुल गांधी को पीएम बनाने की ख्वाहिश है. कांग्रेस पहले से ही कहती आ रही है कि राहुल गांधी ही पार्टी के पीएम फेस होंगे.लालू ने भी राहुल को दूल्हा बनाने और विपक्षी नेताओं को बाराती बनने की सलाह देकर साफ कर दिया था.इसमें नीतीश कहां थे? लालू और नीतीश दोनों जितने गहरे दोस्त हैं, उतने ही बड़े एक-दूसरे के प्रतिद्वंदी। एक जमाने में लालू का विरोध कर के ही नीतीश कुमार बिहार के सीएम की कुर्सी तक पहुंचे हैं।

नीतीश कुमार  अटल बिहारी वाजपेयी की समाधि पर गए, लेकिन विपक्षी गठबंधन के किसी नेता से नहीं मिले. इसके कई मायने भी निकाले गए. 2024 लोकसभा चुनाव के नतीजे अगर 2014 और 2019 की तरह हुए तो क्या होगा वे बकुबी जानते हैं. गैर भाजपाई दल  अपने वजूद और अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं. सभी को  डर है कि कहीं उनका उस्तित्व न समाप्त हो जाए. इंडिया  महागठबंधन की तमाम सभी दलों की स्थिति एक तरह की है. ऐसे में कांग्रेस के साथ मिलकर क्षेत्रीय दल अपने आप को बचाने की लड़ाई के लिए मजबूर हैं.

बिहार की राजनीति में एक सवाल सबसे ज्यादा तैर रहा है वह है कि क्या बिहार में लालू अपने हिस्से की सीट में कांग्रेस का कोटा बढ़ाएंगे? कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ अखिलेश सिंह के पटना बया के बाद गया में उनकी चुप्पी से भी सवाल खड़े हुए हैं.फिलहाल बिहार में कांग्रेस का एक सीटिंग सांसद है. कथित तौर पर बिहार में सीट बंटवारे के फॉर्मूले की प्रक्रिया लगभग आखिरी चरण में है. नीतीश कुमार और लालू यादव के कई चरणों की मीटिंग के बाद कौन से दल कितने सीटों पर लड़ेगी, ये लगभग तय हो गया है.

लालू यादव ने तारापुर और कुशेश्वर स्थान उपचुनाव से पहले बिहार में कांग्रेस के प्रभारी और पार्टी के वरिष्ठ नेता भक्त चरण दास को भकचोन्हर कहा था से से 'हम सब एक साथ हैं' और राहुल को दुल्हा बनने की सलाह के साथ बराती बनने का अश्वासन देने तक की यात्रा के मायने हैं .राष्ट्रीय राजनीति के लिए लालू को कांग्रेस की और कांग्रेस को लालू की ज़रूरत है, वहीं तेजस्वी को सीएम की कुर्सी तक पहुंचाने के लिए लालू के लिए राहुल नीतीश से भरोसामंद साबित हो सकते हैं. यानी लालू ने संकेत दे दिया है कि कांग्रेस केंद्र की गद्दी संभाले और बिहार की कमान तेजस्वी के हाथों में हो.