DESK : 15 साल पहले जिस जमीन से ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की सत्ता तक पहुंची, अब उस जमीन की कीमत चुकाने के लिए ममता बनर्जी को 766 करोड़ रुपए मुआवजा देना होगा। मुआवजे की राशि रतना टाटा की टाटा मोटर्स को दी जाएगी।
दरअसल, 2008 से शुरू हुए सिंगूर जमीन विवाद में टाटा ग्रुप को बड़ी सफलता मिली है। टाटा नैनो प्लांट विवाद में मुआवजे को लेकर चल रहे विवाद में टाटा ग्रुप के हक में फैसला आया है। इस फैसले की जानकारी देते हुए टाटा मोटर्स की ओर से कहा गया कि तीन सदस्यीय न्यायाधिकरण ने Tata Motors Ltd के पक्ष में अपना फैसला सुनाया है।
फैसले के अनुसार अब टाटा मोटर्स प्रतिवादी ममता बनर्जी सरकार के अधीन पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम से 765.78 करोड़ रुपये की राशि वसूलने की हकदार है. इसमें 1 सितंबर 2016 से WBIDC से वास्तविक वसूली तक 11% प्रति वर्ष की दर से ब्याज भी शामिल है।
बुद्धादेव भट्टाचार्य की सरकार ने दी थी जमीन
पश्चिम बंगाल में सिंगूर में टाटा मोटर्स के नैनो प्लांट (Nano Plant) को ममता बनर्जी से पहले की वामपंथी सरकार द्वारा अनुमति मिली थी। इस परमिशन के तहत बंगाल की इस जमीन पर रतन टाटा के ड्रीम प्रोजेक्ट (Ratan Tata) नैनो के प्रोडक्शन के लिए कारखाना स्थापित किया जाना था। तब ममता बनर्जी विपक्ष में थीं और वामपंथी सरकार की नीतियों के खिलाफ थीं और इस प्रोजेक्ट का विरोध कर रही थीं. इसके बाद जब ममला बनर्जी की सरकार बनी, तो सत्ता पर काबिज होने के साथ ही उन्होंने टाटा ग्रुप को बड़ा झटका दे दिया
ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते ही एक कानून बनाकर सिंगूर की करीब 1000 एकड़ जमीन उन 13 हजार किसानों को वापस लौटाने का फैसला किया। जिसके बाद टाटा मोटर्स ने इस प्रोजेक्ट के तहत किए गए पूंजी निवेश के नुकसान को लेकर पश्चिम बंगाल के उद्योग, वाणिज्य और उद्यम विभाग की प्रमुख नोडल एजेंसी WBIDC से मुआवजे के जरिए भरपाई किए जाने का दावा पेश किया था. सोमवार को इस मामले में टाटा मोटर्स को बड़ी जीत हासिल हुई.
इसी जमीन से सत्ता तक पहुंची थी ममता बनर्जी
बता दें ये वहीं जमीन थी, जिसका अधिग्रहण टाटा मोटर्स ने अपना नैनो प्लांट लगाने के लिए किया था. इस पूरे घटनाक्रम के बाद Tata Motors को अपना नैनो प्लांट पश्चिम बंगाल से हटाकर गुजरात (Gujarata) में शिफ्ट करना पड़ा। वहीं इसी विरोध के कारण ममता बनर्जी को राजनीति में भी बड़ा फायदा हुआ और उन्होंने तीन दशक पुरानी वामपंथी सरकार को पश्चिम बंगाल से उखाड़ फेंका था।
2006 में किया गया था प्रोजेक्ट का ऐलान
रतन टाटा के इस ड्रीम प्रोजेक्ट का ऐलान Tata Group की ओर से 18 मई 2006 को किया गया था. उस समय Ratan Tata ग्रुप के चेयरमैन थे. इसके कुछ महीने बाद ही टाटा ग्रुप द्वारा प्लांट लगाने के लिए अधिग्रहित की गई जमीन को लेकर बवाल शुरू हो गया. मई 2006 में किसानों ने टाटा ग्रुप पर जबरन जमीन अधिग्रहण करने का आरोप लगाते हुए जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया. फिर किसानों के साथ ममता बनर्जी भी इस प्रदर्शन में शामिल हो गईं. मामले पर अपना विरोध जाहिर करते हुए ममता बनर्जी ने उस समय भूख हड़ताल भी की थी