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यूपी चुनाव के बहाने बिहार में राजनीतिक हित साधने में लगे मांझी-मुकेश ने नीतीश और भाजपा की मुश्किलें बढ़ाई

यूपी चुनाव के बहाने बिहार में राजनीतिक हित साधने में लगे मांझी-मुकेश ने नीतीश और भाजपा की मुश्किलें बढ़ाई

पटना. बिहार सरकार में मंत्री और वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी इन दिनों में उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी के जनाधार को बढ़ाने में लगे हैं. बिहार में वे भले नीतीश कुमार नीत राजग गठबंधन में शामिल हों लेकिन उत्तर प्रदेश में अपनी अलग राह बनाने के लिए प्रयासरत हैं. इतना ही नहीं अब तो सहनी ने अपने यूपी मिशन को सफल बनाने के लिए ‘हम’ सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को भी यूपी विधानसभा चुनाव में उतरने के लिए मना लिया है. 

मुकेश और मांझी भले यूपी के लिए राजनीतिक रास्ता बना रहे हों लेकिन इसका असर बिहार की राजनीति पर भी देखा जा सकता है. बिहार में जल्द ही 24 बिहार विधान परिषद सीटों पर चुनाव होना है. परिषद में अपने दलों के लिए सम्मानजनक हिस्सेदारी को लेकर मांझी और मुकेश सहनी लम्बे समय से प्रयासरत हैं. हालाँकि यह तभी संभव है जब भाजपा और जदयू चाहे. ऐसे में अगर यूपी चुनाव के नाम पर मांझी और मुकेश कुछ सीटों पर भाजपा और जदयू से सौदा कर सकते हैं. दबाव की इस राजनीति में संभव है मांझी और मुकेश को कुछ बड़ा मिल जाए. इस समय हम के 4 विधायक हैं और वीआईपी के तीन विधायक हैं. 

वहीं बिहार में सरकार बनाने के लिए 122 विधायकों की जरूरत है. इस समय राजद गठबंधन के पास सबसे ज्यादा 110 विधायक हैं. वहीं भाजपा के 74 और जदयू के 46 विधायक है जबकि ओवैसी की पार्टी के 5 विधायक है. अगर मांझी और मुकेश को यूपी में भाजपा या राजग ने किनारे किया तो दोनों मिलकर पाला बदलकर नीतीश सरकार की चिंता बढ़ा सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो राजद गठबंधन के 110, ओवैसी की पार्टी के 5 और मांझी और मुकेश के 7 विधायक मिलकर 122 का जादुई आंकड़ा छू लेंगे. 

दरअसल यूपी के पूर्वांचल के इलाकों में सहनी की जाति के मतदाताओं की प्रभावशाली उपस्थिति है. यहाँ तक कि वर्ष 2018 के गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा को 25 साल बाद हार का सामना करना पड़ा था. तब निषाद पार्टी के संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद ने भाजपा को चुनाव में मात देकर न सिर्फ बड़ा राजनीतिक उलट फेर कर दिया था बल्कि उनकी जीत ने निषाद समुदाय की दमदार उपस्थिति को भी साबित किया था. निषाद समुदाय के प्रभावशाली उपस्थिति का ही नतीजा था कि लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा ने प्रवीण निषाद को संत कबीरनगर संसदीय क्षेत्र से टिकट दिया और उन्होंने जीत भी हासिल की. 

इतना ही नहीं यूपी के करीब 50 से ज्यादा ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं जहाँ निषाद समुदाय के मतदाता जीत हार को प्रभावित करते हैं. वहीं मुसहर भुइयां समुदाय से आने वाले जीतन राम मांझी के मुकेश सहनी के साथ आने से यह गठबंधन और ज्यादा असरदार हो सकता है. राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि यूपी में अगर जातीय अस्मिता की बात कर मुकेश सहनी अपने समुदाय के लोगों को एकजुट करने में सफल होते हों तो यह उन्हें कुछ सीटों पर जीत दिला सकता है.

लेकिन सबसे ज्यादा मांझी के फैसले ने चौंकाया है. वे कुछ दिन पहले तक यूपी में चुनाव लड़ने की कोई बात नहीं कर रहे थे. अब अचानक से यूपी चुनाव में हम के उतरने का मांझी कैसे पार्टी को फायदा दिला सकते हैं यह देखने वाली बात होगी. दरअसल अब हम हम का न तो यूपी में कोई सांगठनिक ढांचा है और ना ही मांझी ने वहां कभी अपनी राजनीतिक रूचि दिखाई है. 

ऐसे में मांझी और मुकेश सहनी की जोड़ी का साथ आना यूपी से ज्यादा बिहार की राजनीति को प्रभावित करता दिख रहा है. सहनी भले अपने दल को यूपी में कुछ सीटों पर दमदार उपस्थिति दर्ज करा दें लेकिन मांझी ने यूपी चुनाव में उतरने की हामी भरकर बिहार में दबाव की राजनीति का नया दांव जरुर चल दिया है. खासकर अपने परिवार के कुछ लोगों को विधान परिषद भेजने का सपना पाले मांझी इसी बहाने कुछ पा लेने की जुगत में हों. 

राजनीतिक विशेषज्ञ तो यहाँ तक मानते हैं कि मांझी द्वारा बिहार में शराबबंदी कानून, ब्राह्मणों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने के पीछे भी एक बड़ा कारण बिहार विधान परिषद की 24 सीटों पर चुनाव होना है. वहीं यूपी में चुनाव लड़ने की बात कर मुकेश भी विधान परिषद के चुनाव में कुछ पा लें. 


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