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पति की दीर्घायु के लिए सुहागिनें कर रही हैं वट सावित्री की पूजा, मांग रहीं मन्नतें, ...इसलिए स्त्रियां करती हैं ये व्रत

पति की दीर्घायु के लिए सुहागिनें कर रही हैं वट सावित्री की पूजा, मांग रहीं मन्नतें, ...इसलिए स्त्रियां करती हैं ये व्रत

नालंदा/ मुंगेर /बांका/ गोपालगंज- जेठ मास की अमावस्या तिथि प़ड़ने के चलते गुरुवार को परंपरा अनुसार महिलाओं ने अपनी पति की लंबी आयु की उम्र की कामना को लेकर वट सावित्री की पूजा-अर्चना की। पति के दीर्घायू की कामना को लेकर सुहागिन महिलाएं वट सावित्री का  व्रत रखीं हुई है। वटवृक्ष की कच्चे धागे के साथ फेरा लगाया और सत्यवान सावित्री कथा सुनी। सुबह से ही वटवृक्ष के पास पूजा अर्चना के लिए महिलाओं की भीड़  है। पटना समेत पूरे बिहार में वट सावित्री की पूजा आर्चना कररही हैं.  

इस पर्व पर महिलाएं सामूहिक रूप से एकत्रित होकर पूजा-अर्चना करती हैं और वट वृक्ष की परिक्रमा कर कलावा भी बांधती है। इसके बाद वट वृक्ष के नीचे ही इस पर्व से जुड़ी हुई परंपरा की कथा भी महिलाएं सुनाती हैं। शास्त्रों के अनुसार बरगद के पेड़ में ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनों देव का वास होता है। इसलिए बरगद के पेड़ की आराधना करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। 

बांका  जिले के सभी प्रखंडों में धूमधाम से बात सावित्री की पूजा मनाई जा रही है।बट सावित्री पूजा को लेकर सुबह से ही बट वृक्ष के नीचे सुहागिन महिलाओं की  भारी भीड़ देखी गई। 

इस वर्त की कहनी  सत्यवान और सावित्री की कथा जुड़ी हुई है. सावित्री ने अपने संकल्प और श्रद्धा से, यमराज से अपने पति सत्यवान को जीवन दान दिलवाया था। शास्त्रों के अनुसार वटवृक्ष के नीचे ही सावित्री ने अपने पति को पुनर्जीवित किया था।  तब से ये व्रत ‘वट सावित्री’ के नाम से भी जाना जाता है। वट सावित्री के व्रत पर सुहागिन महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान यमराज, के साथ साथ सावित्री और सत्यवान की पूजा करती हैं।  बरगद के वृक्ष पर सूत के धागा लपेटकर अंखड सौभाग्य की कामना करती हैं।

इसलिए इस दिन महिलाएं भी संकल्प के साथ अपने पति की आयु और प्राण रक्षा के लिए इस दिन व्रत और संकल्प लेती हैं। इस व्रत को करने से सुखद और सम्पन्न दाम्पत्य का वरदान मिलता है।

गोपालागंज। जिले के विभिन्न प्रखंडों में शहर से लेकर ग्रामीण इलाको तक सुहागिन महिलाओं ने वट सावित्री की पूजा अर्चना कर अपने पति की लंबी उम्र की कामना की।इस दौरान महिलाओं ने

पति की अखंड सौभाग्य और दीर्घायु की कामना के साथ वट सावित्री पूजा धूमधाम से मनाया। 

 

प्रत्येक व्रत और त्योहार की अपनी अलग-अलग एक परंपरा होती है। जिसके चलते इस पर्व की भी एक परंपरा यह होती है कि एक बांस की टोकरी में सात तरह के अनाज रखे जाते हैं, जिसे कपड़े के दो टुकड़ों में ढंक दिया जाता है। एक दूसरी बांस की टोकरी में देवी सावित्री की प्रतिमा रखी जाती है वट वृक्ष पर महिलाएं जल चढ़ाकर कुमकुम अक्षत चढ़ाते हैं फिर सूत के धागे से वट वृक्ष को बांधकर वट वृक्ष की परिक्रमा करती हैं। तत्पश्चात महिलाएं घरों में पहुंचकर फलाहार ग्रहण करती है हालांकि महिलाओं को इस पर्व को लेकर आज खासा उत्साहित भी देखा गया।

महिलाओं ने सूर्योदय के पहले उठकर स्नान कर नए वस्त्र और श्रृंगार कर वट वृक्ष की पूजा की। इसके बाद फल लेकर वट वृक्ष पर जल अर्पित कर कच्चा सूत लेकर वट वृक्ष की परिक्रमा की। इसके बाद पुरोहित से सावित्री सत्यवान की कथा सुनकर अपने पति के दीर्घायु की कामना की। 

वट वृक्ष को आम, लीची, मौसमी फल अर्पित करने कच्चे सूत से बांधने और हाथ पंखे से ठंडक पहुंचाने के बाद महिलाओं ने परिक्रमा की। 

मुंगेर में ज्येष्ठ की भीषण गर्मी में चिलचिलाती धूप के बीच सुहागिनें नंगे पैर पूजा की डलिया लिए मंदिर और बरगद के पेड़ों तक पहुंचीं और विधि विधान से पूजन अर्चना की।

ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखकर वट वृक्ष के नीचे सावित्री सत्यवान और यमराज की पूजा करने से पति की आयु लंबी होती है और संतान सुख प्राप्त होता है।


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