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सोशल मीडिया पर चल रही खबरे शिक्षकों को दिग्भ्रमित करने वाली, बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ ने शिक्षकों के भले के लिए किये है कई बड़े काम : कुमार अर्णज

सोशल मीडिया पर चल रही खबरे शिक्षकों को दिग्भ्रमित करने वाली, बिहार माध्यमिक  शिक्षक संघ ने शिक्षकों के भले के लिए किये है कई  बड़े काम : कुमार अर्णज

NEWS4NATION DESK :  रामानंद उच्च विद्यालय इंटर कॉलेज रामपुर- प्रतापपुर, सारण के शिक्षक कुमार अर्णज ने बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ को लेकर सोशल मीडिया पर चलाई जा रही खबर कि  संघ ने शिक्षकों  के साथ धोखा किया है को भ्रामक करार दिया है। 

उन्होंने कहा है कि बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के लंबे अनवरत संघर्ष के बाद 11 अगस्त 1980 को बिहार सरकार द्वारा जारी एक अध्यादेश के द्वारा 02-10-1980 से राज्य के माध्यमिक विद्यालयों का राजकीयकरण किया गया। 

बिहार विधानमंडल ने 1981 में इस अध्यादेश को अधिनियम का रूप  प्रदान किया जिसे बिहार अराजकीय माध्यमिक विद्यालय( प्रबंध एवं नियंत्रण- ग्रहण )अधिनियम ,1981 कहा गया। इस अधिनियम से शिक्षकों का शोषण का अंत हुआ। ‌ साथ ही इसके धारा -10 में भविष्य में शिक्षक नियुक्ति संबंधी प्रावधान का उल्लेख यह था कि विद्यालय सेवा बोर्ड की अनुशंसा पर निदेशक माध्यमिक शिक्षा के द्वारा विहित वेतनमान पर नियुक्ति होगी ‌‌।                                          

कुमार अर्णज ने कहा है कि संघ के पहल पर राज्यपाल के आदेश से 2004 में राजकीयकृत माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति नियमावली बनाई गई, जिसे Bihar Secondary Teachers Appointment Rules, 2004 कहा गया। जिसमें शिक्षकों की नियुक्ति हेतु अनुशंसा विद्यालय सेवा बोर्ड के स्थान पर कर्मचारी चयन आयोग को सौंपा गया।                         

2005 में सरकार बदल गई। विद्यालयों में शिक्षकों का घोर अभाव पहले से तो था ही विद्यार्थियों का नामांकन भी तेजी से बढ रहा था। ऐसे में नई सरकार 2,39,000 शिक्षकों की बहाली करने हेतु विशेष योजना पर काम शुरू की। माध्यमिक विद्यालय (प्रबंध एवं नियंत्रण- ग्रहण) संशोधन विधेयक, 2006 लाया गया। जिसके द्वारा 1981 की अधिनियम की धारा -10 को विलोपित करना था जिसमें कर्मचारी चयन आयोग की अनुशंसा पर निदेशक ,माध्यमिक शिक्षा को माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति का अधिकार था ।  बिहार विधान परिषद की 153 वां सत्र में 10- 8 -2006 को यह विधेयक तत्कालीन शिक्षा मंत्री वृषण पटेल के द्वारा सदन के पटल रखा गया। इस विधेयक का सदन में सबसे पहले विरोध बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के तत्कालीन महासचिव सह विधान पार्षद केदारनाथ पांडेय जी के द्वारा किया गया।

75 सदस्यीय सदन में मात्र 5 विधान पार्षदों ने बहस में भाग लिया। जिसमें केवल 2 शिक्षक विधान पार्षद केदारनाथ पांडेय और वासुदेव प्रसाद सिंह थे। अन्य विधान पार्षदों में महाचंद्र प्रसाद सिंह, मुंद्रिका सिंह यादव और गुलाम गौस थे जो चर्चा में भाग लेकर इस विधेयक का विरोध किया।                       

पुरानी नियुक्ति प्रक्रिया को समाप्त करने वाला इस विधेयक का पुरजोर विरोध विधान पार्षद केदारनाथ पांडे के तार्किक ढंग से संविधान के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए किया। उन्होंने कहा कि संविधान के 73 वां संशोधन के बाद अनुच्छेद 243 ( छ ) के अंतर्गत पंचायतों को जो अधिकार दिया गया है उसमें 11वीं अनुसूची के क्रमांक 17 पर शिक्षा, जिसके अंतर्गत प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय भी है ,का उल्लेख है। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि शिक्षकों का भर्ती का अधिकार पंचायतों को देना है। यह विधेयक अनुसूची 11 के विपरीत जा रहा है। 74 वां संविधान संशोधन के बाद अनुच्छेद 243 ( ब)के तहत अनुसूची 12  में नगर निकायों के विषय में शिक्षा है ही नहीं। माननीय पांडे जी ने इस पर सरकार से स्पष्टीकरण की मांग की। पुराने प्रावधान को समाप्त करने से शिक्षकों के सेवा शर्तें कई भागों में बंट जाएंगे।                             

उन्होंने कहा कि बहुत पहले की सरकार जिला परिषद् एवं नगर निगम के अधीन प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों की सेवा एक रूप व्यवस्था अंतर्गत लायी थी। आज पुनः इस विधेयक से नई विसंगतियां पैदा होंगी। केदार पांडे ने आगे कहा कि इस विधेयक में जो विसंगतियां निहित है ,जो सारे सवाल हैं इस पर सरकार को विचार कर सदन को आश्वस्त करना चाहिए की नियत वेतन की जगह विहित वेतनमान सरकार देगी।उनकी सेवा दशाओं में जो विसंगतियां पैदा हो रही हैं उन विसंगतियों को सरकार नहीं होने देगी।  ऐसे में बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के शीर्ष नेताओं खासकर श्री केदारनाथ पांडे जी के संबंध में दुष्प्रचार करना कि उन्होंने और बीएसटीए ने पुरानी नियुक्ति प्रणाली ,वेतनमान और सेवा शर्त को बरकरार रखने हेतु प्रयास और नियोजन नियमावली का विरोध नहीं किया। उनके विरोधियों का आरोप बिल्कुल आधारहीन, मनगढ़ंत, राजनीति  से प्रेरित और शिक्षक विरोधी लगता है।  

विहित वेतनमान संबंधी मुकदमा  पटना उच्च न्यायालय  में सबसे पहले केदारनाथ पांडे ही दायर किए थे। प्रबुद्ध शिक्षकों को दिग्भ्रमित करबीएसटीए को कमजोर करने एवं शिक्षकों के सच्चे प्रतिनिधि को सदन में नहीं पहुंचने देने की बड़ी साजिश के तहत केदारनाथ पांडेय जी और बीएसटीए के नेतृत्व के विरुद्ध दुष्प्रचार किया जा रहा है।                             

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