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माया मिली ना राम, लोकसभा के बाद राज्यसभा की आस भी खत्म , सपना हुआ चकनाचूर, क्या पशुपति पारस का राजनीतिक करियर हो गया खत्म?

माया मिली ना राम, लोकसभा के बाद राज्यसभा की आस भी खत्म , सपना हुआ चकनाचूर, क्या पशुपति  पारस का राजनीतिक करियर हो गया खत्म?

पटना- साल 2021 में चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस ने पांच सांसदों के साथ पार्टी पर अपना दावा पेश किया. मामला चुनाव आयोग में गया और लोजपा दो भागों में टूट गई. चिराग पासवान के नेतृत्व में लोजपा (रामविलास) तो पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के रूप में मान्यता मिली. तब  6 में से पांच सांसद पशुपति कुमार पारस के साथ चले गए. पार्टी में टूट के लिए पशुपति कुमार पारस ने चिराग पासवान को दोषी ठहराया था. 



रामविलास पासवान 1977 से 2014 के बीच हाजीपुर लोकसभा सीट से आठ बार सांसद चुने गए थे. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने हाजीपुर सीट से अपने छोटे भाई पशुपति कुमार पारस को उम्मीदवार बनाया था और पशुपति कुमार पारस लोकसभा के सदस्य चुने गए. पार्टी में टूट के बाद असली वारिस होने को लेकर लड़ाई चलती रही. चिराग पासवान रामविलास पासवान के पुत्र होने के नाते उनकी विरासत को आगे ले जाने की बात करते रहे. वही पशुपति कुमार पारस ने यह तर्क दिया था कि परंपरागत सीट से उत्तराधिकारी के रूप में रामविलास पासवान ने उन्हें चुना था. 



6 सांसदों वाली पार्टी में चिराग पासवान अकेले बच गए थे. उनके चाचा पशुपति कुमार पारस मोदी सरकार में मंत्री बनाए गए, लेकिन अकेले होने के बावजूद चिराग पासवान अपने कार्यकर्ताओं के बीच लगातार संघर्ष करते दिखे. क्योंकि उनको लग रहा था कि सांसद भले ही चाचा के साथ चले गए हैं लेकिन कार्यकर्ता चिराग पासवान के साथ हैं.  चिराग पासवान ने लोकसभा चुनाव 2024 में बिहार की पांच सीटों पर प्रत्याशी दिए और पांचों जीत गए.  चिराग से लड़ने के फेर में लोक जनशक्ति पार्टी (राष्ट्रीय) के प्रमुख पशुपति कुमार पारस ने आव देखा न ताव और केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर बैठ गए थे. जब कहीं बात नहीं बनी तो एनडीए में ही रहने का एलान भी किया. 



सरम ने परिवर्न लिया और चिराग के संघर्ष की जीत हुई और  अब समय चिराग पासवान का है. वह केंद्र में वह मंत्री हैं. चाचा पशुपति कुमार पारस बाहर हुए तो अब बाहर ही हो गए. एनडीए  से राज्यसभा जाने का सपना और दावा बिखर कर चूर चूर हो गया. चुनाव के दिन तक सांसद थे .अब कहीं नहीं है.  भाजपा ने अपने कोटे का राज्यसभा वाला टिकट उपेंद्र कुशवाहा को दे दिया है.



2024 लोकसभा चुनाव को लेकर सीट बंटवारे में एनडीए ने चिराग पासवान को 5 सीट दिया है. केंद्र में मंत्री रहने के बावजूद पांच सांसदों वाली आरएलजेपी को एक भी सीट नहीं दी गई. चिराग पासवान पार्टी में अकेले होने के बावजूद वह लगातार अपने कार्यकर्ताओं के बीच संघर्ष करते रहे. 2024 के चुनाव में तो उन्होंने साबित कर दिया की असली लोक जनशक्ति पार्टी वही हैं. यही कारण है कि चिराग पासवान को 5 सीट दिया गया और पशुपति कुमार पारस को एक भी सीट नहीं मिली.



दिवंगत रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान को हाजीपुर लोकसभा सीट पर 2024 में चुनाव के लिए नहीं उतरने देने की जिद ठान पशुपति कुमार पारस ने खुद ही पैरों में कुल्हाड़ी मार ली.पारस समय को नहीं बांप सके ..जपा ने एक समय चिराग पासवान की जगह पशुपति कुमार पारस को तवज्जो इसलिए दी थी कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बुरा न मान जाएं. 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाईटेड को विधानसभा में तीसरे पायदान पर पहुंचाने में चिराग की बड़ी भूमिका थी, जिसके कारण एनडीए में चिराग का रहना मुश्किल था. मंत्री बनना तो असंभव ही था. ऐसे में रामविलास पासवान के निधन से खाली हुई जगह उनके भाई पशुपति पारस को मिल गई थी. समय ने पलटी मारी और भाजपा ने इस सीट के लिए उनके भतीजे चिराग पासवान को पक्का कर दिया. पशुपति पारस जिद पर कायम रहे. पारस ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। उसके बाद वह बिहार आकर लोकसभा चुनाव में सीटों के लिए महागठबंधन के ऑफर का इंतजार करते रहे, लेकिन भाव नहीं मिला. 



पशुपति कुमार पारस अपने बड़े भाई रामविलास पासवान के करीब थे. उन्हीं के बेटे से रार लेकर पारस अब परेशान हैं. वह अब एनडीए में बने रहते हैं तो 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में अपने लिए उम्मीद लगा सकते हैं. दूसरी तरफ महागठबंधन में जाने का विकल्प  है.राजनीतिक पंडितों के अनुसार पारस की एक गलती या जिद के कारण उनके भतीजे प्रिंस सहित उनके साथ रहे तमाम सांसदों का करियर खराब हो गया.



 राजनीति के बारे में यह धारणा है कि इसमें कोई ना तो अस्थाई दोस्त रहता है और नाहीं दुश्मन, लेकिन बिहार की राजनीति में जिस तरीके से चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस के बीच में राजनीतिक दूरी हो चुकी है, वह अब खत्म होती नहीं दिख रही है. जिस अंदाज से पशुपति कुमार ने चिराग पासवान को राजनीति से साइड लाइन किया था, इस अंदाज में 3 वर्ष के भीतर चिराग पासवान ने अपने चाचा पशुपति कुमार पारस से राजनीतिक बदला पूरा किया है. 




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