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नीतीश सरकार फिर हुई निराश ! जातीय गणना पर सुप्रीम कोर्ट में नहीं हुई सुनवाई, जानिए कोर्ट में क्या हुआ

नीतीश सरकार फिर हुई निराश ! जातीय गणना पर सुप्रीम कोर्ट में नहीं हुई सुनवाई, जानिए कोर्ट में क्या हुआ

पटना/दिल्ली. जातीय गणना पर बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय में होने वाली सुनवाई से पहले ही न्यायमूर्ति जस्टिस संजय करोल ने इससे खुद को अलग कर लिया है. फिलहाल अदालत में जो सुनवाई होगी उसमें न्यायमूर्ति करोल शामिल नहीं होंगे. संजय करोल सर्वोच्च न्यायालय के जज बनने से पहले पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे. उन्होंने खुद को इस मामले की सुनवाई से अलग कर लिया और यह एक तरह से बिहार की नीतीश सरकार के लिए निराशाजनक रहा. नीतीश सरकार राज्य में जल्द से जल्द जातीय गणना कराने की तैयारी में है लेकिन आज अंतिम मौके पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई नहीं हुई. 

सनद रहे कि वर्ष 1983 में वकालत शुरू करने वाले संजय करोल हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश, त्रिपुरा के चीफ जस्टिस और पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं. दरअसल, पटना हाईकोर्ट ने 04 मई को अंतरिम फैसले में बिहार सरकार के तर्क को अस्वीकार कर दिया था और कहा था कि वह जाति आधारित गणना नहीं करा सकती है.  पटना हाईकोर्ट ने 03 जुलाई को अगली तारीख देते हुए बिहार में जाति आधारित गणना पर अंतरिम रोक लगाई थी. हालांकि कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ बिहार सरकार ने जल्द तारीख देने की अपील की थी, लेकिन वह अपील भी बेकार गई तो बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. बुधवार को सुप्रीम अदालत में इसकी सुनवाई होने है.

सुप्रीम कोर्ट के पास तीसरी बार यह मामला पहुंच रहा है. पहले, दो बार बिहार में जातीय गणना को असंवैधानिक करार देने के लिए याचिकाकर्ताओं ने अपील की थी. दोनों ही बार सर्वोच्च न्यायालय ने इसे उच्च न्यायालय का मसला करार दिया था. दोनों बार बिहार सरकार को राहत मिली, लेकिन जब पटना उच्च न्यायालय ने राज्य की नीतीश कुमार सरकार के निर्णय के खिलाफ अंतरिम फैसला सुनाते हुए जुलाई की तारीख दे दी तब तीसरी बार यह मामला सरकार की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा है. बुधवार को छह नंबर कोर्ट में 47वें नंबर पर इसकी सुनवाई होनी थी. अंतिम समय में जस्टिस संजय करोल ने इससे खुद को अलग कर लिया जिससे मामले की सुनवाई टल गई. 

अब इस मामले में किसी दूसरी पीठ में इसकी सुनवाई होगी. ऐसे में अगले कुछ दिन बिहार सरकार को इंतजार करना होगा. तब तक बिहार में जातीय गणना पर रोक का सिलसिला बरकरार रहेगा.  गौरतलब कि पहले 4मई,2023 को कोर्ट ने अंतरिम आदेश  देते हुए जातीय जनगणना पर रोक लगा दी थी।चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि राज्य सरकार इस दौरान इक्कठी की गई आंकड़ों को शेयर व उपयोग  फिलहाल नहीं करेगी।   पटना हाइकोर्ट में  राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका में ये कहा गया था कि क्योंकि पटना हाइकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य सरकार के पास जातीय जनगणना कराने का वैधानिक अधिकार नहीं है,इसीलिए इन याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 को सुनवाई करने का कोई कारण नहीं है।

 साथ ही कार्यपालिका के पास जातीय जनगणना कराने का क्षेत्राधिकार नहीं है।इसे कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में स्पष्ट कर दिया था। कोर्ट ने ये भी कहा था कि जातीय जनगणना से जनता की निजता का उल्लंघन होता है।इस सम्बन्ध में विधायिका द्वारा कोई कानून भी नहीं बनाया गया है। कोर्ट ने अपने 4 मई, 2023 के अंतरिम आदेश में जो निर्णय दिया है,उसमें सभी मुद्दों पर अंतिम निर्णय दिया गया।कोर्ट ने इन याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर अंतिम रूप से निर्णय दे दिया है। राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि इस सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य  लोगों के लिए कल्याणकारी और विकास की योजना तैयार है।इसका किसी अन्य कार्य के लिए कोई उद्देश्य नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की इस याचिका पर सुनवाई के लिए जस्टिस बी आर गवाई और जस्टिस संजय करोल के बेंच का गठन किया गया था।लेकिन चूंकि जस्टिस संजय करोल ने इस मामलें की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। अतः इस मामलें की सुनवाई के लिए फिर बेंच गठित होने के बाद सुनवाई की जाएगी।

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