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बेचैनी में नीतीश सरकार ! 'कानून' बनाने पर भी चल रहा मंथन, CM के सबसे विश्वस्त 'मंत्री' का ऐलान- इस काम के लिए हर वैधानिक उपाय करेंगे

बेचैनी में नीतीश सरकार ! 'कानून' बनाने पर भी चल रहा मंथन, CM के सबसे विश्वस्त 'मंत्री' का ऐलान- इस काम के लिए हर वैधानिक उपाय करेंगे

PATNA: पटना हाईकोर्ट ने नीतीश सरकार को बड़ा झटका दिय़ा है. उच्च न्यायालय के आदेश से सरकार बेचैनी में है. हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सरकार दूबारा कोर्ट गई और जल्द सुनवाई का आग्रह किया. जिसे उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया. इसके बाद बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट गई है. नीतीश सरकार अब यह भी कह रही कि अगर जरूरत पड़ी तो कानून भी बनाया जायेगा.  

आदेश समझ से परे- संसदीय कार्य मंत्री 

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद करीबी वित्त सह संसदीय कार्य मंत्री विजय चौधरी ने कहा है कि जातीय गणना पर लगाई रोक का आदेश समझ से परे है. एक तरह कोर्ट ने कहा है कि विधान मंडल ने अगर सर्वसम्मति से जातीय गणना को लेकर प्रस्ताव पारित किया तो कानून क्यों नहीं बनाया? दूसरी तरफ उसी आदेश में यह भी कहा गया है कि राज्यों के विधान मंडल के अधिकार क्षेत्र में इस तरह का कानून बनाना नहीं है. अब इस पर तो सुप्रीम कोर्ट देखेगा कि एक साथ दोनों बातें कैसे हो सकती हैं. एक तरफ कह रहे कि विधान मंडल ने कानून क्य़ों नहीं बनाया, दूसरी तरफ कह रहे कि अधिकार नहीं है. 

जरूरत हुई तो कानून भी बनायेंगे  

विजय चौधरी ने कहा कि जातीय आधारित गणना आज आवश्यकता है. जातीय आधारित और आर्थिक गणना सभी के हित में हैं. नीतियों के निर्धारण के लिए आवश्यक है. फिर यह समझ से परे हैकि  इस तरह के जनहित के काम को क्यों रोका गया? यह समझ से बाहर की बात है.सरकार को पूर्ण उम्मीद है कि उच्चतम न्यायालय जरूर इस मामले को देखेगा और हमें यह कार्य को पूरा करने की अनुमति देगा. संसदीय कार्य मंत्री से पूछा गया कि क्या कानून बनाने की भी तैयारी चल रही है ?  इस पर विजय चौधरी ने कहा कि आवश्यकता होगी तो कानून बनाया जाएगा. हमने तो कहा है कि जो भी आवश्यक कदम होंगे,वह सरकार उठाएगी .क्योंकि मुख्यमंत्री जी हर हालत में जातीय गणना करना चाहते हैं. इसलिए जो भी आवश्यक वैधानिक उपाय होंगे वो किए जाएंगे.

पटना हाईकोर्ट ने 4 मई को जातीय गणना पर लगाई थी रोक 

बता दें, 4 मई, 2023 को कोर्ट ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए जातीय गणना पर रोक लगा दी थी। इसके साथ साथ कोर्ट ने यह सुनिश्चित करने के लिए कहा था कि पहले से एकत्रित किए गए डाटा को सुरक्षित कर अंतिम आदेश पारित होने तक इसे किसी के साथ साझा नहीं किया जाना चाहिए। खंडपीठ ने अपने आदेश में प्रथम दृष्टया यह पाया था कि जाति आधारित गणना सर्वेक्षण की आड़ में एक जनगणना है, जिसे पूरा करने की शक्ति विशेष रूप से केंद्रीय संसद के पास है। इसके पास सरकार ने फिर से बेंच के समक्ष पिटिशन दायर कर गुहार लगाई. मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन एवं न्यायाधीश मधुरेश प्रसाद की खंडपीठ ने राज्य सरकार की गुहार को 9 मई, 2023 को खारिज करते हुए कहा था कि यदि सरकार चाहती है तो वह सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकती है। इस आदेश विरुद्ध को राज्य सरकार ने एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर कर दी है। पटना हाईकोर्ट ने इन मामलों पर सुनवाई की तिथि 3 जुलाई, 2023 निर्धारित कर रखी है।

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