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मन से उतारा हुआ दोबारा नहीं चढ़ता, सीएम नीतीश के बारे में क्यों कही जाती है यह बात ?

मन से उतारा हुआ दोबारा नहीं चढ़ता, सीएम नीतीश के बारे में क्यों कही जाती है यह बात ?

PATNA : बिहार के राजनीतिक गलियारे में एक चर्चा बड़ी आम है। सियासी जानकार कहते हैं की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नजर में जो एक बार उतर गया वह लाख कोशिशों के बावजूद दोबारा ऊपर नहीं चढ़ पाता। मुख्यमंत्री के तौर पर डेढ़ दशक से ज्यादा के अपने कार्यकाल में नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द कई चेहरे आए और चले भी गए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीब रहने और उनसे दूर जाने वाले नेताओं की फेहरिस्त लंबी है। 

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद करीबी लोगों में संजय झा का नाम भी शुमार होता रहा है। नीतीश कुमार से नजदीकियों का ही असर रहा कि संजय झा बीजेपी छोड़कर जेडीयू में शामिल हुए और साए की तरह नीतीश कुमार के साथ राजनीति की। लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में संजय झा किन्ही कारणों से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से दूर हो गए। हालांकि वह पार्टी में तो बने रहे लेकिन उनकी मौजूदगी उस तौर पर नहीं दिखी जैसा वह पहले नजर आते थे। 

साल 2017 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब महागठबंधन से अलग होने का फैसला किया तो संजय झा अचानक से फिर फ्रेम में नजर आने लगे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दिल्ली दौरे से लेकर पार्टी के सांगठनिक कार्यों में उनकी मौजूदगी उसी तौर पर दिखने लगी जैसा 2015 के पहले वह थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में संजय झा ने दरभंगा से जेडीयू उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था लेकिन कीर्ति झा आजाद के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा। हाल के वर्षों में संजय झा की सक्रियता लगातार इस बात का संकेत देती रही कि वह एक बार फिर से दरभंगा से जेडीयू उम्मीदवार होंगें। लेकिन एनडीए के सीट बंटवारे में दरभंगा बीजेपी के पास चली गई। बीजेपी ने दरभंगा से गोपाल जी ठाकुर को चुनाव मैदान में उतारा है। चंद दिनों की छुट्टी के बाद संजय झा का दर्द अब खुलकर सामने आ रहा है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि अगर संजय झा नीतीश कुमार के करीबी हैं तो फिर जेडीयू ने उनकी टिकट के लिए मजबूत दावेदारी क्यों नहीं की? सियासी गलियारे में पुरानी कहावत के साथ नई चर्चा यह है कि नीतीश कुमार के नजदीक और दूर जाने का साइड इफेक्ट तो संजय झा को झेलना नहीं पड़ा है?

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