पीएम मोदी के खिलाफ ‘सांप और नेवले’ को एक मंच लाकर संघर्ष करना चाहते हैं नीतीश कुमार ! सफल होगा सपना?

पटना. बिहार में एक कहावत है कि जब बाढ़ का पानी चढ़ता है तब सांप, चूहा, आदमी और पक्षी एक ही पेड़ पर शरण लेते हुए भी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते. दरअसल सबको डर रहता है कि कहीं बाढ़ के पानी में गिर गए तो जिंदगी खत्म हो जाएगी. कुछ ऐसी ही राजनीतिक जमीन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बनाना चाहते हैं जहाँ हर दल एक साथ आकर भाजपा के खिलाफ मुकाबला करे. लेकिन, वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों को एकजुट करने का आह्वान करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए राह उतनी भी आसन नहीं है. विशेषकर कांग्रेस को कमतर रूप से पेश करते हुए अगर विपक्षी एकता की बात की जाती हो तो यह अपने आप में बड़ी चुनौती है. भाजपा के खिलाफ मोर्चाबंदी करने निकले सीएम नीतीश को हर राज्य में विविध विचारधारा वाले राजनीतिक दलों को एकजुट करने की चुनौती है.
मौजूदा दौर में भले बिहार में सात दलों का समर्थन हासिल नीतीश कुमार सत्तासीन हों. लेकिन, बिहार के बाहर उन्हें हिमाचल प्रदेश में भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस और देवभूमि जनहित पार्टी को एकमंच पर लाना होगा. वहीं पंजाब में शिरोमणि अकाली दल, पंजाब लोक कांग्रेस जैसे दलों को एकसाथ लाने की चुनौती है जबकि आप सत्तासीन है. महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी, एमएनएस जैसे गैर एनडीए दलों को साथ लाना होगा जबकि रिपब्लिक पार्टी ऑफ़ इंडिया और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भाजपा को समर्थन दे रहे हैं. छतीसगढ़ में क्षेत्रीय दल के रूप में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा, छत्तीसगढ़ समाज पार्टी, छत्तीसगढ़ विकास पार्टी, जय छत्तीसगढ़ पार्टी आदि मैदान में आती रही हैं.
वहीं राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है जबकि आम आदमी पार्टी भी कुछ राज्यों में हैं. वहीं झारखंड में भाजपा से झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस, राजद, आजसू, जदयू जैसे दलों के बीच मुकाबला होता है. पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस सबसे बड़ा क्षत्रप है जबकि वाम दलों के साथ ही कांग्रेस और भाजपा से ही मुख्य मुकाबला है. ओडिशा में बीजू जनता दल सबसे बड़ी पार्टी है. तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्र समिति ही भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ मुख्य मुकाबले में है. वहीं आंध्र प्रदेश में तेलुगू देशम पार्टी और वाईएसआर कांग्रेस दो ऐसे दल हैं जो कांग्रेस और भाजपा के साथ गठबंधन करके या उनसे ही मुकाबला करते रहे हैं.
कर्नाटक में भी भाजपा, कांग्रेस और जदएस में ही मुख्य मुकाबला होता है. पिछले कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 में नीतीश कुमार ने जदयू को मैदान में उतारा था लेकिन उन्हें करारी हार मिली थी. इसी तरह तमिलनाडु में द्रमुक और अन्नाद्रमुक में मुख्य मुकाबला है. इन दोनों में अन्नाद्रमुक का भाजपा की ओर झुकाव रहा है. इसके अलावा केरल में सत्ताधारी वाम दलों के अलावा समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दो ऐसे दल हैं जो करीब एक दर्जन राज्यों में संगठन विस्तार किए हुए हैं. वहीं पूर्वोत्तर के राज्यों में कांगेस और भाजपा ही मुख्य मुकाबले में रहती है जबकि जदयू को दो राज्यों में पहले ही बीजेपी झटका दे चुकी है. शेष छोटे दलों का अस्तित्व भी लोकसभा चुनाव में कोई खास प्रभावशाली नहीं रहा है.
ऐसे में नीतीश कुमार जिस विपक्षी एकता को चाहते हैं उसमें सबसे पहली चुनौती ही कांग्रेस है. कांग्रेस हर राज्य में भाजपा के मुकाबले और क्षेत्रीय दलों के मुकाबले प्रभावशाली तरीके से मौजूद है. कांग्रेस हर राज्य में क्षेत्रीय दलों को ज्यादा तरजीह देकर उन्हें बेहतर स्पेस देगी यह फ़िलहाल तो नहीं लगता. वहीं तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में जहाँ क्षेत्रीय दल प्रभावशाली वे अपने बीच फिर से कांग्रेस को स्थापित होने देंगे यह अबूझ पहेली है. यही हाल वाम दलों का है जो किसी भी हालत में केरल, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में अपना जनाधार कमजोर करना नहीं चाहेंगी. तो इन स्थितियों में नीतीश कुमार किस फार्मूले के सहारे हर राज्य में भाजपा के खिलाफ मोर्चा मजबूत करने की जुगत करते हैं यह आने वाले समय में सबसे बड़ी चुनौती है. या फिर वे किसी तीसरे मोर्चे को मजबूत करेंगे यह भी बेहद अहम होगा.