पटना. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नए साल पर फिर से बिहार के सभी जिलों का दौरा कर सकते हैं. उनके बिहार दौरे की शुरुआत खरमास के बाद यानी 15 जनवरी के बाद हो सकती है. इसके लिए जदयू की ओर से प्लानिंग भी शुरू कर दी गई है और जल्द ही यात्रा के तारीखों का ऐलान भी हो सकता है. यूँ तो नीतीश कुमार वर्ष 2005 से मुख्यमंत्री बनने के बाद कई बार बिहार की सामूहिक यात्रा कर चुके हैं. लेकिन इस बार की यात्रा बेहद खास मानी जा रही है. इसका बड़ा कारण वर्ष 2024 में होने वाला लोकसभा चुनाव है जिसमें जदयू की कोशिश महागठबंध को राज्य के ज्यादा से ज्यादा सीटो पर जीत दिलाना है.
नीतीश कुमार ने इसी साल अगस्त 2022 में एनडीए से नाता तोड़कर महागठबंधन संग सरकार बना ली. महागठबंधन में मौजूदा दौर में 7 राजनीतिक दल शामिल है. बावजूद इसके नीतीश और तेजस्वी यादव दोनों को विधानसभा के उप चुनावों में झटका लगा. गोपालगंज में जहाँ राजद उम्मीदवार को करारी हार मिली वहीं कुढ़नी में जदयू प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा. दोनों जगहों पर विपक्ष में रहने के बाद भी भाजपा को जीत मिली. वहीं मोकामा में राजद की नीलम देवी जरुर जीती लेकिन उनकी जीत को उनके बाहुबली पति अनंत सिंह की लोकप्रियता का लाभ माना गया. ऐसे में उपचुनावों के परिणाम ने नीतीश कुमार को बड़ा झटका दिया है. वे इसे लेकर चिंतित भी माने जा रहे हैं.
इतना ही नहीं हाल ही में जहरीली शराब पीने से कई लोगों की मौत होने से नीतीश सरकार की छवि धूमिल हुई है. शराबबंदी नीतीश कुमार का ड्रीम प्रोजेक्ट है. ऐसे में लोकसभा चुनाव 2024 में जदयू के बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद पाले नीतीश कुमार के लिए अभी से पार्टी के जनाधार को बढ़ाने की जरूरत महसूस होने लगी है. साथ ही सरकार की छवि को भी बेहतर बनाने की चुनौती है. यही कारण है कि नीतीश कुमार ने इस बार अचानक से यात्रा की योजना बनाई है. इसमें एक ओर वे शराबबंदी जैसी योजना को लेकर फिर से जन जागरूकता अभियान भी चला सकते हैं तो दूसरी और वे यात्रा के बहाने जदयू के जमीनी नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाएंगे.
दरअसल, कुढ़नी और गोपालगंज में मिली हार और मोकामा में भाजपा का वोट बढने के पीछे एक बड़ा कारण अति पिछड़ा वोटों का जदयू से खिसकना माना गया. मोकामा हो या कुढ़नी दोनों जगहों पर धानुक जैसे अति पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं ने भाजपा का साथ दिया. अब तक इस वर्ग को नीतीश कुमार का सबसे बड़ा वोट बैंक माना जाता था. नीतीश कुमार भी इसे महसूस कर रहे होंगे. इसलिए उन्होंने यात्रा के बहाने जदयू की जमीन मजबूत करने की योजना बनाई है.
नीतीश कुमार पहले ही कह चुके हैं कि उनका मकसद वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता में वापसी नहीं करने देना है. उनका यह सपना तभी साकार होगा जब नीतीश की जदयू को बिहार को बड़ी सफलता मिले. ऐसे में नीतीश की यह यात्रा जदयू और महागठबंधन सरकार की छवि को बेहतर करने की अहम भूमिका निभा सकती है. इतना ही नहीं इसी बहाने नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव के पहले राज्य के सभी संसदीय क्षेत्रों में जनता का मिजाज भी भान सकेंगे.
यह कोई पहला मौका नहीं है जब नीतीश कुमार ने इस प्रकार की यात्रा की हो. वे 2005 में न्याय यात्रा, 2009 जनवरी में विकास यात्रा, जून 2009 में धन्यवाद यात्रा, सितंबर 2009 में प्रवास यात्रा, अप्रैल 2010 में विश्वास यात्रा, 9 नवंबर 2011 में राज्य यात्रा, सितंबर 2012 में अधिकार यात्रा, मार्च 2014 में संकल्प यात्रा, नवंबर 2014 मे संपर्क यात्रा, नवंबर 2016 में निश्चय यात्रा, दिसंबर 2017 में समीक्षा यात्रा, दिसंबर 2019 में जल-जीवन-हरियाली यात्रा, 2021 में समाज सुधार यात्रा और अब उनकी यात्रा फिर से एक नया संदेश देगी.