PATNA: सीएम नीतीश के सुशासन राज में भ्रष्टाचार चरम पर है। सरकार के हर विभाग में सरकारी कर्मी गलत काम कर रहे हैं फिर भी किसी की क्या मजाल जो सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांग ले। अगर किसी आरटीआई कार्यकर्ता ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांग भी ली तो उसकी खैर नहीं। सुशासन राज में सरकारी सिस्टम में फैली गड़बड़ी की अगर किसी ने जानकारी मांगी तो उल्टे उसे ही फंसाने की साजिश रची जाती है.इतना ही नहीं आरटीआई कार्यकर्ता की जान खतरे में पड़ जाती है। नीतीश राज में पिछले एक दशक में 17 से अधिक आरटीआई कार्यकर्ता अपनी जान गवां चुके हैं . वहीं हाल के दिनों में 217 आरटीआई कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित किया गया है। सूचना मांगने पर झूठे मुकदमें में फंसाया जाता है।
217 आरटीआई कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित करने का खुलासा
आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार बिहार में 2012 से लेकर अब तक 217 आरटीआई आवेदकों को प्रताड़ित किया गया है। इस संबंध में गृह विभाग की तरफ से जानकारी दी गई है। विशेष शाखा के सहायक लोक सूचना पदाधिकारी ने सूचना मांगने पर प्रताड़ित होने वाले आरटीआई कार्यकर्ताओं से संबंधित पूरी जानकारी दी है। गृह विभाग के पत्र में बताया गया है कि इन 217 लोगों में से कई के प्रताड़ना वाली शिकायत एसपी स्तर व अन्य वरीय पदाधिकारियों के पास लंबित है। यानी, आरटीआई कार्यकर्ताओं की शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।जबकि एक महीना में शिकायत पत्र पर एक्शन लेने का आदेश है।
आरटीआई आवेदकों को प्रताड़ित करने कि शिकायत पर लेना है एक्शन
गृह विभाग के प्रधान सचिव आमिर सुबहानी का आदेश है कि सूचना का अधिकार अंतर्गत प्रताड़ित करने संबंधित शिकायतों पर एक माह के अंदर जांच के बाद समुचित आदेश पारित किया जाएगा. सभी शिकायतों की जांच जिला के पुलिस अधीक्षक के स्तर पर की जाएगी. वे स्वयं इसकी जांच करेंगे ना कि इसे अपने अधीनस्थ को प्रत्यायोजित करेंगे. यदि शिकायत जिला के पुलिस अधीक्षक के विरुद्ध है तो इसकी जांच क्षेत्र के क्षेत्रीय उपमहानिरीक्षक करेंगे. निष्पादन की समीक्षा समय सीमा के अंदर प्रत्येक 15 दिनों पर विशेष सचिव गृह विभाग के द्वारा की जाएगी .लंबित मामलों की समीक्षा प्रधान सचिव गृह विभाग के स्तर पर प्रत्येक माह में एक बार की जाएगी.
2010-2020 के बीच 17 RTI कार्यकर्ताओं की हत्या
बिहार की बात करें तो 2010 से लेकर अब तक 17 आरटीआई एक्टिविस्ट सूचना मांगने में अपनी जान गवां चुके हैं. 2010 में बेगूसराय में आरटीआई कार्यकर्ता शशिधर मिश्रा की हत्या हुई थी .उसके बाद 2011 में लखीसराय के आरटीआई कार्यकर्ता रामविलास सिंह की हत्या की गई. 2012 में ही मुंगेर के डॉक्टर मुरलीधर जायसवाल, 2012 में मुजफ्फरपुर में राहुल कुमार, भागलपुर के राजेश यादव की अपराधियों ने हत्या कर दी थी . 2013 में मुजफ्फरपुर में रामकुमार ठाकुर अधिवक्ता हत्या हुई थी. 2015 में पटना के सुरेंद्र शर्मा 2015 में ही बक्सर के पूर्व सैनिक गोपाल प्रसाद, मुजफ्फरपुर के जवाहर तिवारी की हत्या कर दी गई थी. 2017 में भोजपुर के मृत्युंजय सिंह की हत्या हुई थी. 2018 में सहरसा के आरटीआई कार्यकर्ता राहुल झा की हत्या हुई थी. 2018 में वैशाली के जयंत कुमार, मोतिहारी के राजेंद्र प्रसाद सिंह, जमुई के बाल्मीकि यादव, धर्मेंद्र यादव एवं बांका के भोला साह की हत्या कर दी गई। 2020 की अगर बात करें तो पटना के बिक्रम में पंकज कुमार सिंह एवं बेगूसराय के आरटीआई कार्यकर्ता श्यामसुंदर कुमार सिन्हा की हत्या की गई.
सरकार और आयोग दोनों हैं जिम्मेदार
बिहार के जाने-माने आरटीआई कार्यकर्ता शिवप्रकाश राय कहते हैं कि बिहार में सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगने का मतलब है अपनी जान को जोखिम में डालना। 2010 से लेकर अब तक 17 आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई । वहीं 2012 से लेकर अब तक 217 आरटीआई कार्यकर्ताओं पर फर्जी मुकदमें दर्ज किये गए । कई आरटीआई कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमले हुए। लेकिन बिहार की पुलिस किसी मामले आरोपियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। आरटीआई कार्यकर्ता शिवप्रकाश राय कहते हैं कि जिन साथियों की हत्या हुई उस मामले में आरोपियों को सजा दिलाने की मांग को लेकर उन्होंने तमाम वरीय अधिकारियों को पत्र भेजा लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। वे कहते हैं कि बिहार की सरकार और सूचना आयोग दोनों इसके लिए जिम्मेदार हैं.CM नीतीश कुमार की सुशासन वाली सरकार नहीं चाहती है कि उसकी नाकामी सार्वजनिक हो। लिहाजा आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हो रहे हमले पर प्रशासन पूरी तरह से चुप हो जाता है.
बिहार सरकार ने फिर से जारी किया एडवाइजरी
सरकार ने आरटीआई कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित करने वालों पर कार्रवाई करने का आदेश जारी किया है. इस संबंध में सामान्य प्रशासन विभाग ने सभी विभागों के प्रधान सचिव, प्रमंडलीय आयुक्त, आईजी, डीएम-एसपी को पत्र भेजा है.पत्र में कहा गया है कि पूर्व में यह निर्देश दिया गया था कि सूचना के अधिकार के अंतर्गत सूचना मांगने वाले आवेदकों को दंड प्रक्रिया की धारा 107 के अंतर्गत फंसाने अथवा अन्य प्रकार से प्रताड़ित करने से संबंधित मामलों की जांच कराई जाएगी तथा दोषी पाए जाने वाले पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों को कठोर सजा दी जाएगी. सूचना मांगने वाले व्यक्तियों का सम्मान करते हुए सूचना उपलब्ध कराने को कहा गया था। सूचना मांगने वालों को प्रताड़ित करने वालों कर्मियों-अधिकारियों को कार्रवाई का आदेश है।