PATNA : डोमिसाइल नीति को खत्म करने और राज्यकर्मी का दर्जा हासिल करने के बीपीएससी परीक्षा में पास करना अनिवार्य करने के राज्य सरकार के फैसले के विरोध कर रहे शिक्षक संघों से किया वादा नीतीश कुमार ने अब तक पूरा नहीं किया है। मानसून सत्र के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा था सत्र समाप्ती के बाद सबसे पहले वह शिक्षकों की समस्या को दूर करने के लिए उनसे वार्ता करेंगे। लेकिन दस दिन से भी ज्यादा समय गुजरने के बाद अब तक सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं की गई है। हालांकि शिक्षक संघ ने सीएम को पत्र भी लिखा, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश ने ना मुलाकात की और ना संघ की ओर से लिखी चिट्टी का जवाब दिया।
ऐसे में फिर से शिक्षक संघों का सब्र टूटने लगा है। 17 दिन के इंतजार के बाद माध्यमिक शिक्षक संघ ने कहा कि सरकार से बातचीत की पहल को हमारी कमजोरी ना समझी जाए। इससे सरकार अपना राजनीतिक नुकसान तो कर ही रही है। इसके साथ ही छात्र-छात्राओं के भविष्य के साथ भी खिलवाड़ कर रही है।
आश्वासन पर वापस लिया था आंदोलन
10 से 14 जुलाई तक बिहार विधानसभा का मानसून सत्र चला। इसी दौरान 11 जुलाई को शिक्षकों ने प्रदर्शन किया। सदन में संसदीय कार्य मंत्री ने कहा कि सरकार नियोजित शिक्षकों की मांग पर उनसे बात करेगी। शिक्षक संघ ने सरकार के आश्वासन के बाद अपना आंदोलन वापस ले लिया। लेकिन अब तक सरकार की ओर से बैठक की तिथि तय नहीं की गई है। बैठक में विलंब होता देख 25 जुलाई को बिहार राज्य माध्यमिक शिक्षक संघ ने नीतीश सरकार को चिट्ठी लिखी। पत्र के माध्यम से कहा गया कि शिक्षकों पर हो रही कार्रवाई पर रोक लगाने के साथ साथ शिक्षकों की मांगों को लेकर शीघ्र बैठक बुलाई जाए। हालांकि, इस पत्र का जवाब भी अब तक नहीं मिला है।
शिक्षकों पर हो रही कार्रवाई का विरोध
पत्र में इस बात का जिक्र किया गया कि 11 जुलाई के प्रदर्शन में शामिल शिक्षकों पर कार्रवाई की जा रही है। अब तक सैकड़ों शिक्षकों पर कार्रवाई की जा चुकी है। शिक्षक संघ का कहना है कि शिक्षा विभाग सदन की अवमानना कर रहा है। शिक्षकों के प्रदर्शन को समाप्त करने के लिए सदन में संसदीय कार्य मंत्री ने वक्तव्य दिया। इस वक्तव्य के बावजूद शिक्षा विभाग की ओर से कार्रवाई की जा रही है।
एसीएस की कार्रवाई से भी नाराजगी
जिस तरह से शिक्षा विभाग के एसीएस केके पाठक द्वार शिक्षकों की छुट्टियां रद्द की, उनके क्लास से कुर्सियां हटाने जैसी कार्रवाई की, उसको लेकर भी नाराजगी अब सामने आने लगी है। शिक्षक संघ की मानें सरकार लाठी चला कर आतंकपूर्ण माहौल में विद्यालयों की दशा नहीं सुधार सकती है। विद्यालयों में संसाधनों की कमी है। सैकड़ों विद्यालयों में भवन, बेंच, डेस्क तक नहीं है। इन संसाधनों को पूरा करने की किसकी जवाबदेही है। लेकिन प्रदेश के स्कूलों में निरीक्षण करवा रहे हैं। महिलाओं का जब माहवारी का समय आता है, तब उसकी छुट्टी रद्द कर दी जाती है। वेतन काटा जा रहा है। अंग्रेजों के समय भी ऐसा प्रावधान नहीं था।
नियमों में सुधार की जरुरत
शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने कहा कि बिहार में नई शिक्षक नियुक्ति नियमावली बनाई गई है, उसमें पुस्तकालयाध्यक्षों, शारीरिक शिक्षक और शारीरिक शिक्षा अनुदेशक का कोई प्रावधान नहीं है। इसके अलावा पंचायती राज में कार्यरत शिक्षकों की वरीयता का भी कोई प्रावधान नहीं है और ना ही माध्यमिक शिक्षकों को उच्च माध्यमिक में पदोन्नति का प्रावधान है। सरकार नियमावली बनाने से पहले बातचीत कर लेती तो यह स्थिति नहीं बनती। शिक्षकों को सड़कों पर उतरने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती।
किसान आंदोलन का दिया उदाहरण
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समाजवादी आंदोलन से आए हैं। डॉ. लोहिया के शिष्य रहे हैं। अपने आप को ईमानदार शिष्य कहते हैं। डॉ. लोहिया ने कहा था जब सड़क सुनी हो जाएगी तो संसद आवारा हो जाता है। इसलिए जनतंत्र को जिंदा रखने के लिए शिक्षक संगठन, मजदूर संगठन, किसान संगठन सड़क पर उतरते हैं तो सत्ताधारी की नींद खुलती है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी किसानों के सामने झुकना पड़ा था।