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नीतीश छोड़ेंगे लालू का साथ,राजद सुप्रीमों की शर्त किसी कीमत पर मंजूर नहीं, खरमास बाद बिहार में आ सकता है सियासी तूफान...

नीतीश छोड़ेंगे लालू का साथ,राजद सुप्रीमों की शर्त किसी कीमत पर मंजूर नहीं, खरमास बाद बिहार में आ सकता है सियासी तूफान...

पटना- ललन सिंह के जदयू के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद यह तय हो गया है कि  बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पार्टी पर केवल और केवल उन्हीं का नियंत्रण है. अब जबकि ललन सिंह पद से इस्तीफा दे चुके हैं तो राजनीतिक क्षेत्र में तेजी से कयासों का दौर शुरु हो गया है. कयास है कि बिहार के मुख्यमंत्री को अगर कोई सम्मानजनक रास्ता मिले तो वह लोकसभा चुनाव के पहले लालू यादव का भी दामन झटक सकते हैं. नीतीश कुमार को लालू प्रसाद के साथ मेल कराने का श्रेय ललन सिंह और विजयेन्द्र यादव को है. नीतीश कुमार खुद इस बात को सार्वजनिक तौर पर कई दफा कह चुके हैं. जेडीयू से कुछ समय पहले नाता तोड़ने वाले उपेन्द्र कुशवाहा कहते हैं कि ललन सिंह ने नीतीश कुमार को इंडी गठबंधन का नेता बनाने का भरोसा लालू प्रसाद से दिलाया था. इसलिए नीतीश कुमार एनडीए से नाता तोड़कर विपक्ष के पाले में आए थे. इंडी गठबंदन की चार बैठक के बावजूद नीतीश कुमार को पीएम पद का उम्मीदवार तो दूर उन्हें संयोजक तक नहीं बनाया गया. इसलिए नीतीश कुमार खासे नाराज बताए जा रहे हैं. इतना ही नहीं गठबंधन की चौथी बैठक में ममता बनर्जी और अरविंंद केजरीवाल जब मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम ले रहे थे तो लालू प्रसाद ने चुप्पी बनाए रखी और नीतीश कुमार का संयोजक पद के लिए नाम तक प्रस्तावित नहीं किया. जाहिर है यही बात नीतीश कुमार को चुभ गई.

लालू की शर्त नीतीश को नहीं थी मंजूर 

सूत्रों की मानें तो कांग्रेस नीतीश कुमार को संयोजक बनाने को तैयार हो चुकी थी, लेकिन लालू प्रसाद ऐसा करने को तब तैयार हुए जब नीतीश कुमार सीएम पद को छोड़कर तेजस्वी यादव को सत्ता सौंप दें.आरजेडी और कांग्रेस के रवैये से नाराज जेडीयू ने तभी से विकल्प की राह तलाशना शुरू कर दिया है. नीतीश की नाराजगी की खबरें आने के बाद राहुल गांधी ने फोन कर नीतीश को मनाने की कोशिश जरूर की है. खथित तौर पर नीतीश कुमार अपने निकटवर्ती सहयोगियों के साथ मिलकर अलग राह चलने को लेकर तैयारी कर चुके हैं. इसलिए आनन फानन में राष्ट्रीय परिषद की बैठक राष्ट्रीय कार्यकारिणी के साथ बुलाई गई है जिससे आरजेडी के साथ सरकार बनाने के पक्षधर कहे जाने वाले ललन सिंह से पहले किनारा हो सके और नीतीश फिर खुद बागडोर थाम कर पार्टी के लिए फैसला कर सकें.  ललन सिंह का अध्यक्ष पद से हटते हीं  लगने लगा है कि जेडीयू आरजेडी से अलग रास्ते पर चलने का मन बना चुकी है.

अथ श्री ललन कथा

मौजूदा समय में ललन सिंह को किनारे किए जाने की कथा में कई अंतर कथा भी कही सुनी जा रही है. राजनीति कयासों में से एक कयास ये भी है कि ललन सिंह लालू यादव से मिलकर नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद से हटाना चाहते थे. ललन सिंह तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाकर खुद राज्यसभा की सीट पाना चाहते थे, आदि आदि.  लेकिन नीतीश की राजनीति को नजदीक से जानने वाले सूत्रों की मानें तो विधानसभा चुनाव में सीटें घटने के बाद से ही नीतीश कुमार की नजर अपना जनाधार बढ़ाने पर है. इसीलिए पार्टी पर दबदबे को कायम रखते हुए आगामी चुनाव में खुलकर खेलने तथा जदयू को मुख्य भूमिका में लाने की कोशिश में जुटे हुए हैं.

नीतीश हीं जदयू के असली कमांडर

 नीतीश कुमार पहले भी कई बार यह साबित कर चुके हैं कि पार्टी पर उनका नियंत्रण है. मई 2014 में जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाना और फिर फरवरी 2015 में उन्हें गद्दी से उतार देना इसका एक सटीक उदाहरण है. इसके अलावा जिस प्रशांत किशोर को राज्य के चुनाव में पार्टी की जीत का श्रेय दिया जाता है उन्हें 2020 में पार्टी से दूध में से मक्खी की तरह बाहर निकाल कर भी नीतीश कुमार ने जदयू के भीतर अपनी ताकत का एहसास करवा दिया था. इसी तरह चाहे उपेंद्र कुशवाहा की बात हो अथवा कभी पार्टी के नाक कान रहे आरसीपी सिंह की, हर बार नीतीश कुमार ने खुद के निर्णय को सर्वोपरि रखा. इंडिया गठबंधन के जरिए राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी भूमिका की खातिर नीतीश ने पलटी मार ली तथा राजद की गोद में बैठ गए. एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकती. जल्दी ही नीतीश कुमार का भ्रम टूटने लगा. तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने की मांग जोर पकड़ने लगी.  ललन सिंह को नाराज कर जेडीयू का शीर्ष नेतृत्व इस कवायद को अंजाम देने के पक्ष में नहीं थी. इसलिए पूर्व अध्यक्ष आरसीपी सिंह के साथ पहले जैसा व्यवहार किया गया है, उससे बचा गया.आरसीपी सिंह को अध्यक्ष पद से हटाए जाने से पहले उनपर पार्टी तोड़ने का आरोप लग चुका है. ऐसे में जेडीयू के लिए बड़ी चुनौती ललन सिंह सहित कई नेताओं को अपने पक्ष में बनाए रखने के अलावा विधायकों पर भी मजबूत पकड़ कायम रखना है क्योंकि आरजेडी के पास बहुमत से महज 6 विधायकों की कमी बताई जा रही है .

नीतीश क्या छोड़ देंगे लालू का भी साथ?

इंडी गठबंधन की चौथी बैठक याद कीजिए जिसमें नीतीश गुस्से से निकल कर पटना चले आए, लकिन  शामिल दलों ने खासकर कांग्रेस पार्टी ने नीतीश कुमार को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया फिर क्या था नीतीश कुमार एनडीए की लाइन लेंथ पर ही राजनीति शुरू कर भविष्य का संकेत देते रहे. राजद के साथ होने के बावजूद नीतीश कुमार बहुत से मुद्दों पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के करीब रहे हैं. चाहे इसराइल और हमास की लड़ाई का मुद्दा हो या फिर हिंदू ग्रंथों पर राजद के कुछ नेताओं द्वारा की जाने वाली तीखी टिप्पणियां ऐसे सभी मसलों पर नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने हमेशा राजद से अलग अपनी राय रखी.वैचारिक स्तर पर नीतीश कुमार और भाजपा की केमेस्ट्री कभी भी बहुत अलग हीं रहा है, ऐसे में  नीतीश कुमार किसी दिन राजद का भी दामन झटक दें तो अधिक आश्चर्य नहीं होगा.

बहरहाल बिहार की राजनीति के जानकार पलपल की गतिविधियों पर नजर रखते हुए किसी बड़े सियासी तूफान की संभावना जता रहे है. जानकारों के अनुसार खरबास के बाद बिहार में खेला हो सकता है...

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