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नहीं रहें जाने-माने साहित्यकार डॉ.श्रवण कुमार, 84 साल की उम्र में हुआ निधन

News4nation desk : हिंदी साहित्य में दर्जनों उपन्यास का योगदान देने वाले जाने-माने साहित्यकार डॉ. श्रवणकुमार गोस्वामी का रांची निधन हो गया. 84 साल डॉ. गोस्वामी पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे. 

उनके जानने वालों का कहना है कि कोरोना (COVID-19) महामारी ने उन्हें अंतिम समय में चिकित्सा सुविधाओं से बिल्कुल वंचित कर रखा था. उनका जाना हिंदी साहित्य के लिए एक अपूरणीय क्षति है. 

वे सबसे पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने ‘नागपुरी भाषा और साहित्य' पर शोध किया था. रांची विश्वविद्यालय में उनके द्वारा लिखी गयी नागपुरी व्याकरण की किताब पढ़ाई जाती थी. उनकी सबसे चर्चित रचना ‘जंगलतंत्रम’ है. यह उपन्यास काफी चर्चित रहा और इसने डॉ गोस्वामी की ख्याति पूरे देश में फैला दी. इसके अतिरिक्त ‘एक छोटी सी नगरी की लंबी कहानी’ नाम से उन्होंने रांची का का पूरा इतिहास लिखा था.
 
 1992 की है जब अविभाजित बिहार में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा ने प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया था. पूरे बिहार से कुल 30 नाट्य कलाकारों का चयन हुआ था. 

नेतरहाट में चल रहे इस प्रशिक्षण शिविर में कालिदास के अभिज्ञान शाकुन्तलम का मंचन नागपुरी में किया जाना तय हुआ. तब मोहन राकेश की हिंदी स्क्रिप्ट से नाटक को नागपुरी भाषा में बदलने की शुरुआती जिम्मेदारी श्रवणकुमार गोस्वामी को ही सौंपी गई थी. बाद में नागपुरी की इस स्क्रिप्ट पर राकेश रमण ने भी महत्वपूर्ण काम किया. इस नाटक को नागपुरी धुन से संवारने का बीड़ा मुकुंद नायक ने उठाया था.
 
 ख्यात कथाकार डॉ. श्रवणकुमार गोस्वामी वैचारिक निष्ठा के लिहाज से प्रेमचंद और राधाकृष्ण की परंपरा के लेखक थे और प्रकाशित पुस्तकों के संख्या बल की दृष्टि से द्वारका प्रसाद और सिद्धनाथ कुमार की कतार में खड़े थे. ‘लौह कपाट के पीछे‘ जैसे यात्रावृत्त के अलावे दो कहानी संकलन, ‘चक्रव्यूह‘ जैसे सुचर्चित उपन्यास के साथ अन्य ग्यारह उपन्यास, तीन नाटक, शोध-आलोचना के चार ग्रंथ, डॉ. बुल्के स्मृति ग्रंथ‘ और मुंडारी रामचरित मानस (टीका) का संपादन. हर स्मृतिशेष लेखक की तरह पत्र-पत्रिकाओं में उनके प्रकाशित आलेखों की संख्या बड़ी है. 

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