दिल्ली-एक देश एक चुनाव की संभावना तलाशने के लिए केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक आठ सदस्यीय समिति गठित की.एक देश एक चुनाव की संभावना तलाशने के लिए केंद्र सरकार द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति को लेकर कानून मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों ने रविवार को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों से संबंधित चुनाव के बारे में एक ब्रीफिंग के जरिए जानकारी दी. बता दें कि कानून सचिव नितेन चंद्रा, विधायी सचिव रीता वशिष्ठ और अन्य अधिकारियों ने रामनाथ कोविंद से मुलाकात की और उन्हें इस मामले से अवगत कराया. साथ ही उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति से यह भी पूछा कि वह समिति के समक्ष एजेंडे के बारे में कैसे जानना चाहेंगे.
केंद्रीय कानून मंत्रालय के अधिकारियों के एक पैनल ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को चुनाव के बारे में जानकारी दी. इसके अलावा एक देश एक को लेकर चुनाव आयोग भी सक्रिय हो गया है.बता दें केंद्र सरकार ने एक दिन पहले शनिवार को आठ सदस्यीय समिति का गठन किया था. इस समिति के चेयरमैन पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद हैं. इसके अलावा सदस्यों में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, गुलाम नबी आजाद, अधीर रंजन चौधरी समेत 6 लोगों को जगह दी गई है. हालांकि, अधीर रंजन ने इस समिति में शामिल होने से इंकार किया है.
इस समिति में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता अधीर रंजन, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष सी कश्यप, पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी शामिल हैं .हालाकि समिति का हिस्सा बनने से अधीर रंजन चौधरी ने इंकार किया है.बता दें कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ सहित पांच राज्यों में साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जबकि राजनीतिक पार्टियां 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों में भी जुट गई हैं.
बता दे आजाद भारत में 1967 तक एकसाथ चुनाव होते थे, लेकिन 1968-69 में कुछ राज्य विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं. इसके बाद एक साथ चुनाव की परंपरा समाप्त हो गई. साथ ही 1970 में पहली बार लोकसभा को भी निर्धारित समय से पहले ही भंग कर दिया गया था और 1971 में देश मध्यावधि चुनाव की तरफ बढ़ गया था.
'वन नेशन, वन इलेक्शन' को लागू करना इतना आसान नहीं है. संविधान में कई संशोधन करने होंगे. राज्यों से सहमति लेनी होगी और राज्य विधानसभाओं को भंग करना होगा.ये मुद्दा पहले भी उठा है और संविधान में संशोधन के बाद ये संभव भी है.वन नेशन, वन इलेक्शन' संभव है और इसके लिए ज़रूरी नहीं कि सभी विधानसभाओं को भंग ही करना पड़े.संविधान में संशोधन करने के लिए दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत होना चाहिए. लोकसभा में सरकार का बहुमत है और राज्य सभा में जीएसटी की तरह सरकार दो तिहाई बहुमत मैनेज करने की कोशिश कर सकती है.संविधान संशोधन के अलावा कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाओं में इसे पास भी होना चाहिए. केंद्र की राह कठिन है लेकिन दुरुह नहीं.
वहीं राहुल गांधी ने एक देश एक चुनाव के लिए पैनल के गठन को लेकर भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला. राहुल ने इसे राज्यों पर हमला बताया. वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की अवधारणा को भारतीय जनता पार्टी का ‘‘नया चोचला’’ बताते हुए कहा कि इससे आम आदमी को कोई लाभ नहीं होगा. उन्होंने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव के बजाय ‘एक राष्ट्र, एक शिक्षा’ और ‘एक राष्ट्र, एक इलाज’ की अवधारणा की वकालत की. केजरीवाल ने कहा, ‘‘सबको बेहतर से बेहतर शिक्षा और बेहतर से बेहतर इलाज मिलना चाहिए.... एक राष्ट्र, एक चुनाव से आम आदमी को क्या फायदा होगा?