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इंसानों को बचाने के लिए जारी हुआ 10 हजार ऊँटों को मारने का आदेश, कारण जानकर हो जाएंगे हैरान

इंसानों को बचाने के लिए जारी हुआ 10 हजार ऊँटों को मारने का आदेश, कारण जानकर हो जाएंगे हैरान

आपको पता है ऑस्ट्रेलिया में 10 हजार ऊँटों को मारने का आदेश जारी हुआ है. इसके लिए बाकायदा जंगलों में ऊँटों की तलाश की जा रही है और उन्हें चुन चुनकर मारा जाएगा. इसके कारण पर भी आएंगे लेकिन मारने की वजह जानने के पहले हमें इतिहास पर जाना होगा. जंगलों की कथा कहने वाले संजय कबीर का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया की जलवायु ऐसी थी वहां 180 साल पहले तक ऊंट नहीं पाए जाते थे. 

ऑस्ट्रेलिया में ऊंट नहीं पाए जाते थे। जब पहली बार यूरोपीय नाविक समुद्र में अलग-थलग पड़े ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप पर पहुंचे तब उन्हें यहां पर कुछ अलग ही नजारे दिखाई पड़े। यहां के जीव-जंतु एकदम अजीब थे। खैर, जीव-जंतुओं से उन्हें ज्यादा मतलब नहीं था। वे तो वहां मौजूद प्राकृतिक संसाधनों पर ज्यादा से ज्यादा कब्जा और उसकी लूट चाहते थे। महाद्वीप के अंदरूनी हिस्से से माल ढोकर नावों तक पहुंचाने का उन्हें साधन चाहिए था। तो वे इस काम के लिए ऑस्ट्रेलिया में ऊंट ले आए। 

माना जाता है कि वर्ष 1840 में पहली बार ऑस्ट्रेलिया में ऊंटों को लाया गया। उस दौर की आप कल्पना कीजिए। यूरोपीय देश ज्यादा से ज्यादा जमीन पर कब्जे की मुहिम में लगे हुए थे। उन्हें ऐसी जगहों की तलाश थी, जहां पर धातुओं का भंडार हो, जहां पर खेती के लिए बेहिसाब जमीनें हों या जहां की आबादी में वे अपना माल बेच सकें। भौगोलिक खोजों का दौर भारत के नए रास्ते की तलाश के साथ शुरू हुआ और जल्द ही तमाम अनछुए इलाकों में पहुंचने की होड़ लग गई। जहां पर कब्जा किया जा सके। जहां के संसाधनों की खुली लूट की जा सके। 

इसी क्रम में औपनिवेशिक लोग ऑस्ट्रेलिया पर भी कब्जा करने पहुंचे। यहां की जमीनों पर बाड़ेबंदियां कर ली गईं। धरती की प्लेटों के खिसकने के चलते जैवविकास जब अपनी एक विशेष अवस्था में था, उसी समय ऑस्ट्रेलिया मुख्य भूमि से अलग हो गया था। इसी के चलते यहां पर सरीसृपों का तो विकास हुआ लेकिन स्तनपायी जानवर विकसित नहीं हुए। इसकी बजाय यहां पर स्तनपायी जानवरों से एक श्रेणी नीचे मार्सूपियर्स या शिशुधानी वाले जीव यानी कंगारू जैसे जीवों का विकास हुआ। 

माल ढोने के लिए ढेरों ऊंट यहां पहुंचाए गए। लेकिन, मोटर और रेलवे का आविष्कार होते ही ऊंट बेकार हो गए। अब उन्हें पालना और सामान ढोने में उनका इस्तेमाल ज्यादा खर्चीला हो गया। औपनिवेशिकों ने उन्हें खुले में छोड़ दिया गया। ये ऊंट ऑस्ट्रेलिया की खुश्क जलवायु और बंजर जमीनों पर खूब फलने-फूलने लगे। वे जंगली जानवरों की तरह रहने लगे। आज ऑस्ट्रेलिया में उनके बड़े-बड़े झुंड घूमा करते हैं। माना जाता है कि अभी ऑस्ट्रेलिया में बारह लाख से ज्यादा जंगली ऊंट मौजूद हैं। 

एक प्रजाति जो किसी वातावरण में विकसित न हुई हो, जिसका क्रमिक विकास वहां पर नहीं हुआ हो, अगर वो वहां पर पहुंच जाती है तो एक प्रकार का प्राकृतिक असंतुलन पैदा होता है। जो प्रजाति जिस वातावरण में विकसित होती है, वहां पर उसके दुश्मन भी होते हैं जो उसकी तादाद पर नियंत्रण लगाते हैं। लेकिन, नियंत्रण लगाने वाली किसी प्रजाति के नहीं होने पर उनकी संख्या तेजी से बढ़ती है। जिससे असंतुलन गहराने लगता है। 

ऑस्ट्रेलिया भी कुछ इसी तरह की परेशानियों का सामना कर रहा है। यहां के जंगलों में सितंबर महीने से आग लगी हुई है। यह आग कितनी बड़ी है और इसका धुआं कितना ज्यादा घातक है, यह इससे समझा जा सकता है कि इसका धुआं अब ब्राजील तक पहुंचने लगा है। ऑस्ट्रेलिया के बड़े हिस्से पर इस आग का धुआं छाया रह चुका है। आग के लिए लगातार कम हो रही बरसात और सूखे को वजह माना जा रहा है। 

ऐसे में ऊंटों को खलनायक माना जाना तय था। ऊंट पांच किलोमीटर की दूरी से भी पानी की गंध सूंघ लेते हैं। वे ऐसी तमाम जगहों पर एकत्रित हो जाते हैं जहां पर पानी मौजूद हो। यहां तक कि एसी से टपकने वाले पानी के लिए भी ऊंटों का झुंड जमा होने लगता है।

ऑस्ट्रेलिया सरकार मानती है कि ये ऊंट बहुत ज्यादा पानी पीते हैं। ऐसे में ऊंटों की समस्या से छुटकारा पाने के लिए या समस्या को सीमित करने के लिए समय-समय पर उनकी आबादी को कम करने का प्रयास किया जाता है। इससे पहले वर्ष 2009 और 2013 में भी ऊंटों की आबादी सीमित करने का प्रयास हो चुका है। अब दस हजार ऊंटों को मारने का लक्ष्य रखा गया है। अगले पांच दिनों में प्रशिक्षित शूटर दस हजार ऊंटों का खात्मा करेंगे। ताकि पानी बचाया जा सके। 

संजय सवाल करते हैं कि सोचिए, एक ऐसा जानवर जो शायद पानी की कीमत को सबसे ज्यादा अच्छी तरह समझता है, जो अपने शरीर के रेशे-रेशे में पानी छिपाकर और बचाकर चलता है, उसे पानी बचाने के लिए मारा जा रहा है। लेकिन, क्या आप समझते हैं कि इससे समस्या का समाधान हो सकेगा. 

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