पटना हाईकोर्ट ने वित्त रहित और अल्पसंख्यक कॉलेजों के शिक्षकों की बहाली, प्रोन्नति पर किया अहम फैसला, जानिए क्या है पूरा मामला

PATNA : पटना हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय से यह निश्चित किया है कि राज्य के वित्त रहित एवं संबंधित अल्पसंख्यक कॉलेजों के शिक्षकों की बहाली, प्रोन्नति या उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई हेतु, जो निर्णय कॉलेज की गवर्निंग बोर्ड लेगी, उसके निर्णय से पहले संबंधित विश्वविद्यालय से अनिवार्य अनुमति लेने की बजाय सिर्फ विश्वविद्यालय प्रशासन की स्वीकृति या उनसे परामर्श लेना ही पर्याप्त रहेगा। चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने नूर आलम एवं अन्य की ओर से दायर रिट याचिकाओं को निष्पादित करते हुए यह  फैसला सुनाया।

याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया की बिहार के विश्वविद्यालय कानून में धारा 57 ए के तहत,  राज्य में जितने भी संबंधित एवं वित्त रहित अल्पसंख्यक कॉलेज है, उन सब में शिक्षकों की नियुक्ति हेतु सम्बन्धित विश्वविद्यालय प्रशासन या उसकी चयन समिति से पूर्व अनुमति लेना संविधान के अनुच्छेद 30 के खिलाफ है। ऐसा अनुमति लेने की बाध्यता धार्मिक एवं भाषाई अल्पसंख्यकों को संविधान से मिले बुनियादी या मौलिक अधिकारों का हनन करता है। 

वहीं राज्य सरकार की तरफ से महाधिवक्ता पीके शाही ने कोर्ट को बताया की पूर्व में भी एक ऐसा मामला हाईकोर्ट में आया था। जहां अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थाओं को अपने इच्छानुसार अपनी संस्था को प्रबंधन करने में राज्य सरकार से पूर्व अनुमति लेने की बाध्यता को संवैधानिक चुनौती दी गई थी। लेकिन इस मामले में भी पटना हाईकोर्ट ने सरकार से ली जाने वाली पूर्व अनुमति की शर्त को और संवैधानिक घोषित नहीं किया। उसे अल्पसंख्यक कॉलेजों के लिए  पूर्व अनुमति की बाध्यता की बजाए एक प्रभावी परामर्श के रूप में परिभाषित किया।

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हाईकोर्ट ने इस मामले में भी बिहार विश्वविद्यालय अधिनियम 1976 की उक्त धारा 57- ए मे विश्वविद्यालय की कमिटी से पूर्व अनुमोदन की जगह, उसे एक प्रभावी परामर्श  के आधार पर मानने का आदेश दिया।