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युद्द की दंश झेल रहे यूक्रेन- रुस से फल्गु तीर्थ आ रहीं पिंडदानी, पूर्वजों की शांति,मुक्ति के लिए गया में करेंगी तर्पण और श्राद्ध

युद्द की दंश झेल रहे यूक्रेन- रुस से फल्गु तीर्थ आ रहीं पिंडदानी, पूर्वजों की शांति,मुक्ति के लिए गया में करेंगी तर्पण और श्राद्ध

सनातन धर्म को मानने वाले पुनर्जन्म विश्वास करते हैं. देव लोक के साथ प्रेत लोक का वर्णन भी शास्त्रों में मिलता है. मान्यता है कि गया जी में पिंड दान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है. पितृपक्ष में त्रिपिंडी दान के लिए देश से हीं नहीं विदेश से बी लोग आते हैं. वहीं रुस और यूक्रेन भले हीं तलवार तनी हो,यूक्रेन युद्ध की विभीषिका में जल रहो लेकिन रूस और युक्रेन की 49 महिलाएं पिंडदान  श्राद्ध कर्म करने गया पहुंच रही हैं. इनमें रूस की तीन दर्जन महिलाएं जबकि एक दर्जन से अधिक युक्रेन की महिलाएं शामिल हैं. गया इस्कॉन के प्रचारक लोकनाथ गौड़ इन्हें कर्मकांडीय अनुष्ठान कराएंगे. ये विदेशी महिलाएं अपने पूर्वजों की पूजा और तर्पण करके उनकी मुक्ति के लिए गयाजी पहुंच रही हैं. जानकारी के अनुसार अफ्रीका, इंग्लैंड और अमेरिका की महिलाएं भी पिंडदान के लिए आने वाले हैं.

लोकनाथ गौड़ ने बताया कि गया में पूर्वजों की पूजा, श्राद्ध और तर्पण करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है. सनातन धर्म में आत्मा की सत्ता स्वीकार की गई है और मृत्यु के बाद जीवन की बात भी यहां है.वेद से लेकर पुराणों तक में पितृ यज्ञ का वर्णन मिलता है. गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने भी पितृयज्ञ के बारे में बताया है. 

वायुपुराण के अनुसार  फल्गु तीर्थ सभी तीर्थों से श्रेष्ठ होने से सर्व प्रथम फल्गु तीर्थ जाकर तर्पण श्राद्ध करना चाहिए. वहां श्राद्ध करने से पितरों की मुक्ति मिलती है. मान्यता है कि ब्रह्मा जी की प्रार्थना से भगवान विष्णु फल्गु रूप धारण किये. दक्षिणाग्नि में ब्रह्मा जी के द्वारा हवन किये जाने पर फल्गु तीर्थ की उत्पति हुई. अखिल ब्रह्मांड में जितने भी तीर्थ हैं, वे सब पितृपक्ष में देवताओं के साथ फल्गु तीर्थ में नित्य स्नान करने आते हैं.

सनातन धर्म में भव का वर्णन है तो विभव की सत्ता को भी स्वीकार किया गया है. देव योनी के बारे में जिक्र है तो प्रेत योगी के बारे में भी बताया गया है. सनातन धर्म में मंगल और अमंगल दोनों एक हीं सिक्के के दो पहलू हैं. पितृपक्ष में पिंड दान और तर्पण का विशेष महत्व है, कारण है कि इस दौरान गया में 15 दिन आस्था की भीड़ लगी रहती है. देश से हीं नहीं विदेस से भी लोग इस दौरान पितरों को प्रसन्न करने और उनकी मुक्ति के लिए तर्पण और पिंडदान के लिए गया आते है.


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