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Pitru Paksha 2024: गया में पितृपक्ष मेला महासंगम की तैयारी पूरी, जानिए किन वेदियों पर है पिंड दान करने का विधान

Pitru Paksha 2024: गया में पितृपक्ष मेला महासंगम की तैयारी पूरी, जानिए किन वेदियों पर है पिंड दान करने का विधान

भगवान विष्णु की पावन भूमि गयाजी में आश्विन मास में 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले का आयोजन होता आ रहा है. इस बार यह मेला 17 सितंबर से शुरू हो रहा है. प्रशासनिक स्तर पर मेले तैयारियां पूरी कर लेने का दावा किया गया है. तब के समय में 365 वेदी स्थल थे, जहां देश-विदेश से आने वाले तीर्थयात्री अपने पितरों के आत्मा की शांति व मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण करते थे. सही तरीके से रखरखाव नहीं होने से इनमें से तीन सौ से अधिक वेदी स्थल का अस्तित्व अब मिट चुका है. वर्तमान में अब केवल 54 वेदी व सरोवर स्थल हैं, जहां पिंडदान का कर्मकांड व तर्पण तीर्थयात्रियों द्वारा किया जाता है. इनमें से विष्णुपद चरण सहित 19 वेदियां विष्णुपद मंदिर प्रांगण में स्थित है.


 पितृपक्ष मेला क्षेत्र का मुख्य स्थल होने से यहां की सभी वेदियां पूरी तरह से सुसज्जित व सुरक्षित है. इसके अलावा मंदिर के बाहरी परिसर व सूर्यकुंड में पांच वेदियां है जिनकी सफाई व रंगाई पुताई का काम पूरा हो चुका है. अंतः सलिला फल्गु नदी का भी स्थान वेदी के रूप में स्थापित है. इस नदी के पूर्वी तट पर सीता कुंड व राम गया वेदी स्थल है, जहां का रखरखाव भी काफी सुरक्षित है. सालों भर तीर्थ यात्रियों के यहां आने व वेदी स्थलों पर प्रशासन की पैनी नजर रहने से गौ प्रचार सहित बचे अन्य सभी वेदी स्थलों का दिन प्रतिदिन विकास हो रहा है.


यहां पिंडदान करने से कोटि तीर्थ व अश्वमेध यज्ञ का मिलता है फल


वायु पुराण, नारद पुराण सहित कई अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथो की माने तो पूरी दुनिया में गयाजी ही एक ऐसा तीर्थ है जिसकी भूमि काफी पवित्र है. यहां श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति है. महाबलशाली गयासुर के ऊपर ब्रह्मा जी ने धर्मशिला रखकर यज्ञ किया था. तब गयासुर की काया हिलती रही. जिसे अचल करने के लिए भगवान विष्णु गदा लेकर उपस्थित हुए, सभी देवता इनके शरीर पर विराजमान हुए. ब्रह्मा जी ने यज्ञ करके ब्राह्मणों को गृह, रत्न, स्वर्ण दान किया. तभी से यह भूमि पूरी पवित्र हो गयी. श्रीगया माहात्म्य कथा के अनुसार यहां पितर सदैव निवास करते हैं. वे मुक्ति यानी मोक्ष के लिए अपने कुल से किसी के आने व पिंडदान की प्रतीक्षा में रहते हैं. मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से कोटि तीर्थ व अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है.


17 दिवसीय कर्मकांड में सभी 54 वेदी स्थलों पर पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का है विधान


17 दिवसीय कर्मकांड में 54 वेदी स्थलों पर पिंडदान करने का विधान तीर्थ पुरोहितों द्वारा बताया गया है. आश्विन मास में आयोजित होने वाले 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले में श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण का कर्मकांड के लिए आने वाले तीर्थयात्रियों की तिथि वार यहां पिंडदान करना होता हैं.


17 सितंबर (भाद्रपद चतुर्दशी)- पुनपुन पांव पूजा या गोदावरी श्राद्ध.

18 सितंबर (भाद्रपद पूर्णिमा)- फल्गु स्नान श्राद्ध एवं पांव पूजा


19 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा के बाद द्वितीया तिथि)- प्रेतशिला, ब्रह्मकुंड, रामकुंड, रामशिला व कागबली, उत्तर मानस, उदीची, कनखल, दक्षिण मानस, जिव्हालोल व गदाधर जी का पंचामृत स्नान.

20 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष तृतीया तिथि)- बोधगया के सरस्वती स्नान व पंचरत्न दान, तर्पण, धर्मारण्य, मातंगवापी, व बौद्ध दर्शन.


21 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि)- ब्रह्मसरोवर श्राद्ध, काकबलि श्राद्ध, तारक ब्रह्म का दर्शन व आम्र सिंचन.

22 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि)- विष्णुपद स्थित 16 वेदी में रूद्र पद, ब्रह्म पद, विष्णुपद श्राद्ध व पांव पूजा.


23 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष षष्ठी तिथि)- 16 वेदी में कार्तिक पद, दक्षिणाग्निपद, गाहर्पत्यागनी पद व आहवनयाग्नि पद.

24 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष सप्तमी तिथि)- 16 वेदी में सूर्यपद, चंद्र पद, गणेश पद, संध्याग्नि पद, आवसंध्याग्नि पद व दघिची पद.


25 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि)- 16 वेदी में कण्वपद मतंग पद, क्रौंच पद, इंद्र पद, अगस्त्य पद, कश्यप पद, गजकर्ण पद, दूध तर्पण व अन्नदान.

26 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष नवमी तिथि)- राम गया श्राद्ध, सीताकुंड (बालू का पिंड) सौभाग्य दान व पांव पूजा.


27 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष दशमी तिथि)- गया सिर, गया कूप (त्रिपिंडी श्राद्ध), पितृ व प्रेत दोष निवारण श्राद्ध.

28 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि)- मुंड पृष्ठ श्राद्ध (आदि गया) धौतपद श्राद्ध व चांदी दान.


29 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष द्वादशी तिथि)- भीम गया, गौ प्रचार व गदा लोल श्राद्ध.

30 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि)- विष्णु भगवान का पंचामृत स्नान, पूजन, फल्गु में दूध तर्पण व दीपदान.


01 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि)- वैतरणी श्राद्ध, तर्पण व गोदान.

02 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि)- अक्षयवट श्राद्ध (खीर का पिंड) शैय्या दान, सुफल व पितृ विसर्जन.


03 अक्तूबर (आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि)- गायत्री घाट पर दही चावल का पिंड, आचार्य की दक्षिणा व पितृ विदाई.



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