पितृपक्ष में पितरों को श्रद्धांजलि देने के लिए पिंडदान और श्राद्ध-कर्म करना महत्वपूर्ण होता है। यदि किसी कारणवश पंडित उपलब्ध नहीं हैं, तो आप स्वयं भी विधिपूर्वक इस कर्म को कर सकते हैं। भगवान सूर्य को जगत का पंडित माना गया है. ऐसे में अगर आपके पास पंडित उपलब्ध नहीं है तो आप सूर्य देव को पंडित मान पिंडदान कर सकते हैं. यहां हम आपको पिंडदान करने की एक सरल विधि बता रहे हैं, जिसे आसानी से बिना पंडित के संपन्न किया जा सकता है।
पवित्र स्थल का चयन
श्राद्ध-कर्म करने के लिए सबसे पहले आप एक स्वच्छ स्थान चुन सकते हैं। यह स्थान घर के आँगन, छत, या किसी पवित्र जलाशय जैसे नदी, तालाब के किनारे हो सकता है। स्थान को शुद्ध करने के लिए वहाँ गंगाजल या साफ पानी का छिड़काव करना जरूरी होता है ताकि वातावरण शुद्ध और पवित्र हो सके।
पिंडदान की प्रक्रिया
पिंडदान के लिए चावल, काले तिल, जौ या गेहूं का आटा, गाय का घी, पुष्प, दूर्वा घास, और पवित्र जल की आवश्यकता होती है। इन सभी सामग्रियों को पूजा के स्थान पर एकत्र करें। इसके अलावा, एक साफ वस्त्र का भी उपयोग करें, जिस पर पिंड बनाए जाते हैं। स्नान करके शुद्ध हो जाएं और पूजा स्थल पर बैठें। चावल, घी और तिल को मिलाकर तीन पिंड (गोलाकार आकार) बनाएं, जो आपके पितरों के प्रतीक होते हैं। इन पिंडों को जल और दूर्वा घास के साथ रखा जाता है। इसके बाद भगवान विष्णु और यमराज का ध्यान करके पिंडदान की शुरुआत करें। पितरों का आवाहन करते हुए 'ॐ पितृभ्यः नमः' का जाप करें और पिंडों पर जल अर्पित करें।
पितरों के लिए भोजन और दान
पिंडदान के बाद, अपने पितरों के लिए कद्दू की सब्जी, दाल-भात, पूरी और खीर जैसी शाकाहारी व्यंजन बनाएं। इन व्यंजनों को गाय, कुत्ते, कौवे और चींटियों को अर्पित करें, जिन्हें पितरों का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद ब्राह्मण, गरीब या जरूरतमंदों को भोजन कराएं और उन्हें वस्त्र, फल या दान सामग्री दें। श्राद्ध-कर्म के अंत में पितरों से आशीर्वाद की प्रार्थना करें। उनसे पितृदोष से मुक्ति, सुख-समृद्धि और परिवार की खुशहाली की कामना करें। इस प्रक्रिया को पूरी श्रद्धा और शांत मन से करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे परिवार को आशीर्वाद देते हैं।
श्राद्ध-कर्म के दौरान विशेष सावधानियाँ
श्राद्ध के दिन स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें और मानसिक शांति बनाए रखें। मांसाहार, शराब और नकारात्मक विचारों से दूर रहें। पूरे श्रद्धा भाव से पितरों को याद करें और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें।