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झंझारपुर लोकसभा में त्रिकोणीय मुकाबले में फंसा सियासी जंग, एनडीए और महागठबंधन की सबसे बड़ी चिंता बने गुलाब यादव

झंझारपुर लोकसभा में त्रिकोणीय मुकाबले में फंसा सियासी जंग, एनडीए और महागठबंधन की सबसे बड़ी चिंता बने गुलाब यादव

पटना. बिहार के दरभंगा जिले में कोसी और कमला नदियों के बीच स्थित झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र की राजनीतिक कहानी ऐतिहासिक महत्व और उभरती राजनीतिक गतिशीलता की कहानी से समृद्ध है। मधुबनी और दरभंगा के साथ-साथ मिथिलांचल का अभिन्न अंग यह क्षेत्र वर्षों से उल्लेखनीय नेताओं के प्रभाव से आकार लेता रहा है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा ने इस निर्वाचन क्षेत्र से जीत के साथ अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की। राजद और जद (यू) में एक प्रमुख व्यक्ति, देवेन्द्र प्रसाद यादव ने यहां काफी प्रभाव डाला, केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्य किया और लगातार पांच बार जीत हासिल की।  वहीं 2019 के लोकसभा चुनावों में, जद (यू) के रामप्रीत मंडल ने 6,02,391 वोट लाकर यहाँ बड़ी जीत हासिल की. राजद के गुलाब यादव  दूसरे नम्बर पर थे. 

वहीं इस बार भी रामप्रीत मंडल और गुलाब यादव सियासी लड़ाई में हैं लेकिन यहाँ दल बदले हुए हैं. जदयू ने रामप्रीत मंडल को उम्मीदवार बनाया है. वहीं गुलाब यादव को राजद ने टिकट नहीं दिया तो वे बसपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं. वहीं महा गठबंधन में यह सीट वीआइपी के पास गई और सुमन कुमार महासेठ को उम्मीदवार बना दिया. इसे में इस बार झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र में त्रिकोणीय लड़ाई है. गुलाब यादव पूर्व विधायक रहे हैं. पत्नी भी एमएलसी है. वहीं बेटी भी जिला परिषद अध्यक्ष हैं. यह उनकी सियासी ताकत बताने के लिए काफी है. 

इस निर्वाचन क्षेत्र में लगभग 20% यादव हैं, इसके बाद 15% ब्राह्मण और 35% अत्यंत पिछड़ी जातियां हैं। इस क्षेत्र में मुस्लिमों का भी 15 फीसदी वोट है, जिसमें वैश्य समुदाय के मतदाताओं की भी लगभग इतनी ही संख्या है और किसी भी उम्मीदवार की जीत में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. जातियों तौर पर देखा जाए तो झंझारपुर में 3.25 लाख ब्राह्मण, 2.5 लाख यादव, 2 लाख कुर्मी/मंडल, 1 लाख केवट और 1.25 लाख वैश्य मतदाताओं के अलावा 60% ईबीसी और पिछड़े वर्ग के वोट हैं.  

ऐसे में इस बार झंझारपुर लोकसभा में रोचक लड़ाई त्रिकोणीय होनी तय है. तेजस्वी यादव अपने परम्परागत यादव –मुस्लिम वोटरों के साथ ही मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी मल्लाह वोटरों के सहारे जीत चाहती है. दूसरी ओर एनडीए को पिछले चुनाव की भांति ही इस बार भी सभी जातियों से वोट मिलने का भरोसा है. इन सबके बीच गुलाब यादव का बसपा के टिकट से चुनाव लड़ना कई जातियों में सेंधमारी भी होगी. यही एनडीए और महागठबंधन के लिए चिंता की सबसे बड़ी वजह है. 

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