जदयू-राजद को सबसे बड़ा झटका देने की तैयारी... एक झटके में टूट जाएगा नीतीश -तेजस्वी का 19 फीसदी वोट

पटना. ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की दो दिवसीय बिहार यात्रा 18 और 19 मार्च को होनी है. 'अधिकार पदयात्रा' के तहत राज्य के सीमांचल के जिलो का दौरा करने आ रहे हैं. ओवैसी जिस इलाके में आ रहे हैं उसकी क्षेत्रीय पहचान अल्पसंख्यक बहुल इलाके के रूप में है. यानी पूर्णिया, किशनगंज, कटिहार, अररिया वे जिले हैं जहाँ लोकसभा की 4 और विधानसभा की करीब 24 सीटें हैं. ओवैसी की पहचान मुस्लिम हितों के लिए देशभर में आवाज उठाने वाले नेता की रही है. अब उनका सीमांचल के मुस्लिम बहुल इलाके में आने का कार्यक्रम भी बिहार में मुसलमानों के बीच AIMIM की पैठ बढ़ाने की पहल के रूप में देखा जा रहा है. लेकिन, उनके इस दौरे में सबसे ज्यादा चिंता बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू यादव को होगी.
दरअसल, बिहार में वर्ष 1990 के बाद की राजनीति में मुसलमानों को साधने में सबसे ज्यादा लालू यादव सफल रहे हैं. उनका एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण सर्वाधिक सफल चुनावी रणनीति माना गया. हालांकि 2005 में नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद मुसलमानों का बड़ा वोट बैंक जदयू की ओर शिफ्ट हुआ. ऐसे में 1990 से अब तक लगातार लालू-नीतीश के पक्ष में ही बिहार के मुस्लिम मतदाताओं का वोट आता देखा गया और दोनों दलों को बड़ी सफलता भी मिली.
असदुद्दीन ओवैसी ने वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी राजद और जदयू को झटका दिया था. उस चुनाव में AIMIM को बिहार की पांच सीटों पर जीत मिली थी जिनमें अमौर, कोचाधाम, जोकीहाट, बायसी और बहादुरगंज सीट शामिल रही. ये सीटें सीमांचल के इलाके की थी. इसके पहले AIMIM को बिहार में पहली सफलता 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद किशनगंज सीट पर हुए चुनाव में मिली थी. इतना ही नहीं 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भले ही ओवैसी की पार्टी 5 सीटें जीती हो लेकिन इसके अलावे करीब एक दर्जन ऐसी सीट रही जहाँ AIMIM उम्मीदवारों ने जीत-हार का आंकड़ा बदल दिया. नतीजा रहा कि जदयू से एक भी मुस्लिम नहीं जीत सका. वहीं राजद के 8 मुस्लिम चेहरे जीते जो 2015 चुनाव की तुलना में 3 कम रहा. इतना ही नहीं विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या भी घटकर 19 रह गई.
माना गया कि इन सबके पीछे बड़ा कारण बिहार में ओवैसी की पार्टी का तेजी से मुस्लिम समुदाय में पैठ बढ़ाना रहा. वहीं पिछले साल 2022 में हुए गोपालगंज विधानसभा उपचुनाव में राजद को भाजपा से 1794 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था. जबकि गोपालगंज में एआईएमआईएम के अब्दुल सलाम को करीब 12 हजार वोट आए थे. माना जा रहा था कि राजद की हार के पीछे बड़ा कारण एआईएमआईएम उम्मीदवार को आए 12 हजार से ज्यादा वोट थे. यहां तक कि तेजस्वी यादव ने भी 1794 वोटों से हार के बाद इसके लिए ओवैसी की पार्टी को बड़ा कारण माना था. इन आंकड़ों से माना गया कि ओवैसी बिहार में तेजी से मुस्लिम समुदाय के बीच पकड़ मजबूत कर रहे हैं.
अब उनका 18 और 19 मार्च को 'अधिकार पदयात्रा' करना अगले लोकसभा चुनाव के पहले राजद और जदयू की चिंताओं को बढ़ाने वाला होगा. ओवैसी अपनी यात्रा के दौरान पूर्णिया के बैसी-अमोर और किशनगंज जिले के कुछ स्थानों पर पहुंचेंगे. वे वहां सीमांचल के मुद्दें और मुसलमानों के हितों की बातें उठाकर अगले चुनाव के पहले AIMIM को मजबूत करने की रणनीति को आगे बढ़ा सकते हैं. ऐसे उनके दौरे से सीमांचल में राजद और जदयू को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है.
राज्य में मुस्लिम वोटों पर गौर करें तो 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार की कुल आबादी 10,40,99,452 है. इसमें पुरुषों की संख्या 5,42,78,686 और महिलाओं की तादाद 4,98,21,295 है. कुल आबादी में मुसलमानों का प्रतिशत महज 16.9 है. हालांकि अब यह करीब 18 फीसदी के पास माना जाता है. वहीं राज्य में 13 लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां मुसलमान मतदाताओं की संख्या 12 से 67 फीसदी के बीच है. बिहार में सर्वाधिक मुस्लिम वोटर वाला लोकसभा क्षेत्र किशनगंज है, यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 67 फीसदी है, वहीं दूसरे स्थान पर कटिहार है, जहां मुस्लिम वोटर की संख्या 38 फीसदी, अररिया में 32 फीसदी, पूर्णिया में 30 फीसदी, मधुबनी में 24 फीसदी, दरभंगा में 22 फीसदी, सीतामढ़ी में 21 फीसदी, पश्चिमी चंपारण 21 फीसदी और पूर्वी चंपारण 20 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. इसके अलावा सीवान, शिवहर खगडिय़ा, भागलपुर, सुपौल, मधेपुरा, औरंगाबाद, पटना और गया में 15 फीसदी से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं. माना जा रहा है कि ओवैसी इन सभी सीटों पर नजर बनाए हुए हैं.