हमारे यहां आदिकाल से ही चले आ रहे देवताओं में शिव का विशिष्ट स्थान है। विश्व के आदि ग्रन्थ ऋग्वेद में इन्हें रुद्र के नाम से पुकारा गया और उसके रुद्र स्तवन में उनकी विशेष चर्चा की गई। अन्य वेदों में भी शिव का उल्लेख है और रुद्र के अतिरिक्त उनक अन्य अनेक नामों की भी चर्चा वैदिक साहित्य में है। ब्राह्माण तथा अरण्यक ग्रन्थों में भी शिव के बार में विशद वर्णन है। अनेक उपनिषदों में शिव के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है। श्वेताश्वतरोपनिषद् तथा नील रुदोपनिषद जैसे कुछ उपनिषद् तो मुख्य रूप में शिव पर ही आधारित है। पुराणों में भी लगभग सभी में शिव तथा शिवलिंग पूजन की चर्चा है। शिव पुराण, लिंग, पुराण, स्कन्दपुराण, तत्स्य पुराणा, कूर्म पुराण और ब्रह्मांड पुराण- यह छह पुराण तो पूर्णत: शैव पुराण ही है ओर इस रूप में इनमें शिव और पार्वती के बारे में विस्तृत चर्चा है।
शैवपुराणों के अतिरिक्त वैष्णव पुराणें में भी शिव पार्वती का पर्याप्त उल्लेख है और उनकी अनेक कथाओं की विस्तार से चर्चा है। पौराणिक साहित्य में शिव पुराण विशेष उल्लेखनीय है। इसमें शिव, सती, पार्वती, लिंग-पूजन तथा इनसे सम्बन्धित अनेक बातों तथा अन्तर्कथाओं का विस्तृत उल्लेख है। शिवलिंग का निर्माण कैसे और किस रूप में हो, उसका पूजन किस प्रकार से किया जाए तथा इस पूजन से कौन कौन से फल मिलते हैं, इन सब बातों की विवेचना इस गंथ में की गई है। लिंग पूजन की दार्शनिक पृष्ठभूमि और इसके साथ जुडी विभिन्न भ्रांतियों को भी इसमें विस्तार से स्पष्ट किया गया है। शिव तथा शिवलिंग पूजन की चर्चा वाल्मीकि रामायण में भी की गई हैं। रावण पक्का शिव भक्त था और इसलिए उसके प्रसंग में वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड में कहा गया है कि शिव भक्त रावण जहां जहां जाता है, वहां स्वर्णलिंग भी जाता है, जिसे बालू की वेदी पर प्रतिष्ठित कर वह विधिवत पूजन करता है और लिंग के सामने नृत्य करता है। रामायण के उपरान्त तो शिव साहित्य की बाढ सी आ गई।
राम और कृष्ण के बाद सर्वाधिक साहित्य सृजन शिव पर ही हुआ। महाभारत के अनुशासन पर्व में शिव से संबंधित अनेक कथाओं और उनके हजार नामों की चर्चा है। तंत्रग्रंथ और स्मृतियों में भी शिव संबंधी उल्लेख काफी अधिक है। तंत्रों में शिव के माध्यम से विभिन्न प्रकार के ज्ञान को उद्घाटित किया गया है। लिंगार्चन तंत्र में लिंग पूजन की अर्चना विधि को स्पष्ट किया गया है। स्मृतियों में भी कर्मकांड संबंधी मामलों में शिव पूजन का उल्लेख हुआ है। श्री नरहरि स्वामकृत ग्रंथ बोधसार में शिव से संबंधित विभिन्न तत्वों का दार्शनिक विवेचन प्रस्तुत किया गया। शिव की दिगंबरता, त्रिनेत्रता, भुजंग भूषणता, श्मशान प्रेम, भस्म और जटाजूट धारण करने की प्रवृति आदि की प्रतीकात्मक व्याख्या करके इस ग्रंथ में शिव के व्यक्तित्व को एक नए सिरे से देखने का प्रयत्न किया गया। शिव से संबंधित साहित्य का प्रसार अत्यधिक व्यापक है।
कहीं पर वे आदिदेव के निराकार स्वरूप में प्रकट हुए हैं, कहीं लिंग स्वरूप में और कहीं स्थूल स्वरूप में भी। साहित्य में कही उनका योगी स्वरूप उभरा है, कहीं मस्त भोले भंडारी वाला स्वरूप, कहीं नटराज और कलाकार वाला स्वरूप तथा कहीं सत्य के पक्ष में संघर्ष करने वाले शूरवीर का स्वरूप भी। शिव की कथाएं अनेक हैं और उनसे संबंधित उनके स्वरूप भी अनेक हैं। इससे साहित्य में उनकी छवि भी विविधता को लिए हुए हैं।