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आधी आबादी के हक- ओ- हकूक के लिए आरक्षण, 27 साल से लटके महिला आरक्षण बिल पर संसद के विशेष सत्र में हो रही चर्चा, मोदी के तीर से घायल विरोधी भी कर रहे समर्थन

आधी आबादी के हक- ओ- हकूक के लिए आरक्षण, 27 साल से लटके महिला आरक्षण बिल पर संसद के विशेष सत्र में हो रही चर्चा, मोदी के तीर से घायल विरोधी भी कर रहे समर्थन

महिला आरक्षण के बहाने नरेंद्र मोदी सरकार देश की आधी आबादी को साधने की कोशिश की है, जिसका 2024 के लोकसभा चुनाव में लाभ भी भाजपा को मिल सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव के जीत का श्रेय साइलेंट वोटर को दिया था. साल 2014 और साल 2019 में भारतीय जनता पार्टी की जीत में महिला वोटरों की अहम भूमिका मानी गई . साल 2004 में 53 फीसदी महिलाओं ने मतदान किया था जबकि साल 2019 में बढ़कर 67 प्रतिशत हो गई थी. भारत के इतिहास में यह पहली बार था जबकि पुरुषों से ज्यादा महिलाओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. भारतीय चुनाव आयोग का अनुमान है कि अगले साल यानी 2024 के आम चुनावों में यह आंकड़ा बढ़कर 69 फीसदी पर पहुंच सकता है. तो वहीं अभी हर दस में से सिर्फ एक महिला को राष्ट्रीय या राज्य स्तर पर नीति-निर्माण में भागीदारी मिली है.भारतीय जनता पार्टी आधी आबादी की बढ़ती ताकत को बखूबी समझती है. भाजपा की रणनीति महिला वोटरों को साधने की है जिसके लिए उसने अमोघ तीर महिला आरक्षण का चला दिया है. इस तीर से उसने विपक्षियों को ऐसा पटका है कि उनके विरोध में बोलती बंद कर दी है.

भाजपा शुरु से हीं आधी आबादी को अपने पक्ष में करने के लिए रणनीति बनाते रही है.भाजपा की रणनीति रही है कि महिलाओं के विकास और सशक्तिकरण पर ध्यान केंद्रित किया जाए. लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव मोदी सरकार ने संभवतः 2024 के लोकसभा चुनाव अभियान से पहले लेकर आई है. याद कीजिए साल 2019, चुनावों में तीन तलाक अध्यादेश के जरिए मुस्लिम महिलाओं का समर्थन जुटाया गया था. तीन तलाक के जरिए मुस्लिम महिलाओं के वोट बैंक में भाजपा ने सेंध लगा दिया था.

मोदी सरकार के पिछले नौ साल के कार्यकाल में महिला केंद्रित योजनाओं के कारण भाजपा को महिलाओं के बीच मजबूत पकड़ बनाई है. ऐसे में मोदी सरकार आगामी लोकसभा चुनाव में महिलाओं के समर्थन का दायरा बढ़ाना चाहती है. यही वजह है कि मोदी सरकार ने 27 वर्षों से अधर में लटके महिला आरक्षण बिल को अमलीजामा पहना दिया है. मोदी सरकार ने यह कदम ऐसा समय किया है जब देश में 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी तपिश बढ़ी हुई है. साल 2019 में पहली बार पुरुषों की तुलना में महिलाओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग ज्यादा किया., ये बात सभी राजनीतिक दलों को पता है. 9.6 करोड़ महिलाओं के लिए रसोई गैस उज्ज्वला योजना, 27 करोड़ जन धन खाते खोलना, विशेष सावधि जमा योजनाएं, महिला उद्यमियों को 27 करोड़ से अधिक मुद्रा ऋण का वितरण और मिशन पोषण सहित मोदी सरकार द्वारा लागू की गई पहलों से भाजपा को काफी लाभ हुआ. स्वच्छ भारत मिशन को महिलाओं की गरिमा की रक्षा करने वाली एक योजना के रूप में पेश किया गया था, प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना का उद्देश्य महिलाओं के लिए रसोई प्रदूषण को कम करना था, और जल जीवन मिशन का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में पीने का पानी लाने में महिलाओं की समस्याओं को कम करना था. ऐसी धारणा बनी कि मोदी सरकार महिलाओं की हिमायती है.  एक्सिस माई-इंडिया और लोकनीति-सीएसडीएस के चुनाव बाद सर्वेक्षणों के अनुसार, उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में से चार में 2022 के विधानसभा चुनावों में पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाओं ने भाजपा को वोट दिया.  महिला आरक्षण विधेयक का उपयोग 2024 के आम चुनाव सहित आने वाले चुनावों में लाभ के लिए किया जा सकता है. महिला आरक्षण विधेयक पर कांग्रेस नेता सोनिया गांधी इसका श्रेय लेने के लिए सामने आ गईं.उन्होंने कहा कि राजीव गांधी ने पहले महिला बिल लाया था. वहीं कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा, सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह 2010 में महिला आरक्षण बिल लाए और इसे राज्यसभा में पारित किया. 

भारतीय राजनीति में महिलाओं को मोदी सरकार उनके अधिकार दिलाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है. पिछले पांच दशकों से संसद और विधानमंडलों में महिला आरक्षण की मांग की जाती रही है. इस दिशा में एचडी देवगौड़ा से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी और सोनिया गांधी तक ने आधी आबादी को एक तिहाई हिस्सेदारी देने के लिए कदम उठाए, लेकिन उसे राजनीतिक कारणों से  मंजिल तक नहीं पहुंचा सके और अब लंबे इंतजार के बाद महिला आरक्षण  का रास्ता मोदी सरकार ने साफ कर दिया है.कोटा में कोटा के चलते ठंडे बस्ते में पड़े महिला आरक्षण बिल को निकालकर मोदी सरकार 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले उसे अमलीजामा पहना दी है.

महिला आरक्षण बिल का इतिहास पुराना रहा है. 1975 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं, तब 'टूवर्ड्स इक्वैलिटी' नाम की एक रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट में हर क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति का विवरण दिया गया था और आरक्षण पर भी बात की गई थी.रिपोर्ट तैयार करने वाली कमेटी में अधिकतर सदस्य आरक्षण के ख़िलाफ़ थे. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1980 के दशक में पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण दिलाने के लिए विधेयक पारित करने की कोशिश की थी, लेकिन राज्य की विधानसभाओं ने इसका विरोध किया था. महिला आरक्षण विधेयक को एचडी देवेगौड़ा की सरकार ने पहली बार 12 सितंबर 1996 को पेश करने की कोशिश की थी.इस गठबंधन सरकार को कांग्रेस बाहर से समर्थन दे रही थी. मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद इस सरकार के दो मुख्य स्तंभ थे, जो महिला आरक्षण के विरोधी थे.जून 1997 में एक बार फिर इस विधेयक को पास कराने का प्रयास हुआ. उस वक़्त शरद यादव ने इस विधेयक की निंदा करते हुए एक विवादास्पद टिप्पणी की थी.उन्होंने कहा था, ''परकटी महिलाएं हमारी महिलाओं के बारे में क्या समझेंगी और वो क्या सोचेंगी.''साल 1998 में 12वीं लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए की सरकार में तत्कालीन क़ानून मंत्री एन थंबीदुरई ने इस विधेयक को पेश करने की कोशिश की. पर सफलता नहीं मिली. वाजपेयी के काल में राजद के एक सांसद सुरेंद्र यादव ने बिल को लालकृष्ण आडवानी के हाथ से लेकर फाड़ भी दिया था.इसके बाद एनडीए की सरकार ने दोबारा 13वीं लोकसभा में 1999 में इस विधेयक को पेश करने की कोशिश की.साल 2003 में एनडीए सरकार ने फिर कोशिश की लेकिन प्रश्नकाल में ही सांसदों ने ख़ूब हंगामा किया कि वे इस विधेयक को पारित नहीं होने देंगे.2010 में राज्यसभा में यह विधेयक पारित हुआ. लेकिन ये लोकसभा में तब पास नहीं हो सका था.

 राजनीतिक दल महिला शक्ति को अच्छी तरह से समझने लगे हैं और यही कारण है कि महिलाओं को आकर्षित करने के लिए तरह तरह के शगूफे राजनीतिक दल छोड़ रहे हैं. वहीं आजाद भारत में पहली बार लोकतंत्र के मंदिर संसद में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है. आपको बता दें कि इस समय राज्यसभा में कुल 25 महिला सांसद है जबकि लोकसभा में 78 महिला सासंद है. ऐसा पहली बार हुआ है जब संसद में महिलाओं ने 100 के आंकड़े को पार किया है.आम चुनाव कुछ माह बाद है. राजनीति में चुनाव के अंतिम कुछ महीने लंबा समय होते है. कुछ दिन में हालात बदल सकते हैं. लेकिन मौजूदा हालात में प्रधानमंत्री मोदी को शिकस्त देने की कोशिश में लगे इंडिया गठबंधन के लिए भाजपा के महिला आरक्षण के जरिए आधी आबादी को साधने के लिए चलाए तीर को  साधना सहज नहीं होगा

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