कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने अपने ही दल पर उठाया सवाल, पार्टी को बताया -"हिन्दू विरोधी और मुस्लिम परस्त पार्टी, इंदिरा गांधी तक पार्टी रही थी धर्मनिरपेक्ष"

दिल्ली-  कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने अपनी पार्टी को हिन्दू विरोधी और मुस्लिम परस्त पार्टी कहा है.उन्होंने कहा कि कई बार पार्टी के मुस्लिम परस्त निर्णयों के कारण हिन्दू उससे दूर होता जा रहा है. अब जरा इंदिरा गांधी के समय को याद कीजिए, इंदिरा अक्सर  मन्दिरों और साधु संतों के दर्शन करने और उनका आशीर्वाद लेने जाती थीं. उनकी हिन्दू देवी देवताओं में अपार श्रद्धा थी. यहां तक कि आपातकाल के बाद जब कांग्रेस विभाजित हो गई, पार्टी और पार्टी का चुनाव चिह्न गाय और बछड़ा भी छिन गया था, तो केरल में पालाकाट के अमूर भगवती मन्दिर में विराजमान मां पार्वती के दो हाथों को मां का आशीर्वाद मान कर हाथ के पंजे को कांग्रेस का नया चुनाव निशान बनाया गया.,चुनाव जीतने के बाद इंदिरा गांदी मन्दिर में गई थीं.  इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को धर्मनिर्पेक्ष रखा,जिसमें मुस्लिम परस्ती नहीं झलकती थी.

साल 1996 ...शाहबानों केस पर आए गुजारा भत्ता फैसला को कांग्रेस ने पलट दिया .कांग्रेस के भीतर इसको लेकर विरोध हुआ. राजीव गांधी से असहमत होते हुए  तत्कालीन केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने बिल के विरोध में राजीव केबिनेट से इस्तीफा तक दे दिया और कांग्रेस को त्याग दिया.

 रामजन्मभूमि को लेकर शुरू हुए आन्दोलन के समय कांग्रेस के हिन्दू नेताओं की चुप्पी और मुस्लिम नेताओं का राम मंदिर आंदोलन का खुला विरोध कांग्रेस को महंगा पड़ा. रामजन्मभूमि आन्दोलन के दौरान 1989 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की लोकप्रियता में जबर्दस्त उछाल देखा गया. साल 1984 में  भाजपा के लोकसभा में  दो सांसद थे, वहीं 1989 के चुनाव में 85 सीटें के साथ सदन में प्रवेश किया. लालू ने लाल कृष्ण आडवानी का रामरथ यात्रा क्या रोका, 1991 के मध्यावधि चुनाव में भाजपा सांसदो की संख्या बढ़ कर 120 हो गई. 1996 में भाजपा सांसद की संख्या 161  तो 1998 में 182 सीटें जीत कर अटल बिहारी वाजपेयी ने सरकार बनाई थी.

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तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीतीराम केसरी की विदाई हुई और सोनिया गांधी अध्यक्ष बनीं. 991 में चुनावों के दौरान राजीव गांधी की हत्या के कारण आई सहानुभूति की लहर ने कांग्रेस की अल्पमत सरकार बनी, नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री रहते  1992 में बाबरी ढांचा टूट गया और भाजपा को जबरदस्त फायदा हुआ. कथित तौर पर मुस्लिम समुदाय को खुश करने के लिए कांग्रेस के भीतर से ही नरसिम्हा राव को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की गई थी, यहां से फिर कांग्रेस के टूटन का दौर शुरु हुआ. सीताराम केसरी और सोनिया गांधी के नेतृत्व में भी बाबरी ढांचा टूटने के लिए नरसिंह राव को जिम्मेदार माना. 1996 का चुनाव हारने के बाद नरसिम्हा  राव को पहले अध्यक्ष पद से हटाया गया, और बाद में 1997 में कोलकाता अधिवेशन में उनके मंच पर बैठने का भी विरोध हुआ. कोलकाता अधिवेशन में सोनिया गांधी ने कांग्रेस की सदस्यता ली, वहां नरसिम्हा राव को अपमानित किया गया. कहा जाता है कि हिंदूओं का मानना था कि नरसिम्हा राव ने ढांचा टूटते समय कोई कार्रवाई न करके हिन्दुओं का पक्ष लिया था लेकिन नरसिम्हा राव को अपमानित करके कांग्रेस फायदा न होकर घाटा हीं हुा. 1998 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की सिर्फ एक सीट बढ़कर 141 हुई थी. बाबरी विध्वंश से मुसलमान नाराज था और नरसिम्हा राव को अपमानित करने से हिन्दुओं में नाराजगी थी.

1996 और 1998 की लगातार हार के बाद और सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वी.एन. गाडगिल जो उस समय कांग्रेस में हिन्दुओं की एक मात्र आवाज थे ने कहा था कि कांग्रेस में सेक्यूलरिज्म खत्म हो रहा है, मुस्लिमपरस्ती बढ़ रही है.  वी.एन. गाडगिल 1989 से लेकर सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने तक कांग्रेस के प्रवक्ता थे. कुछ कांग्रेसियों ने वी.एन. गाडगिल पर छींटाकशी की, इसके बावजूद वह अपने स्टैंड पर कायम रहे. काग्रेस 2004 में  सत्ता में आई तो उसने अपने दस साल के शासन में हिन्दुओं को अपमानित करने और मुसलमानों को खुश करने की कोई कसर नहीं छोड़ी. 

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है. हिंदुत्व को बदनाम करने करने के लिए भगवा आतंकवाद का सिद्धांत इजाद हुआ. इसी सिद्धांत को जयपुर में कांग्रेस चिन्तन शिविर में दोहराया गया.आतंकवादी वारदातों को हिन्दुओं के सिर मढ़ने के लिए झूठे केस बना कर उन्हें गिरफ्तार किया गया. यहीं नहीं पाकिस्तान प्रायोजित मुम्बई में हुए 26/11 के आतंकी हमले का जिम्मेदार भी आरएसएस को ठहराने का प्रयास शुरु हुआ,समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट का जिम्मेदार भी हिन्दुओं के मथ्थे मढ़ागया. कांग्रेस की 2004 से 2014 की हिन्दू विरोधी नीतियों का असर ये हुआ कि साल 2014 में हिंदुत्व का ऐसा उभार हुआ कि कांग्रेस 50-52 सीटों पर सिमटा दिया. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने इन सब मुद्दों को उठाते हुए कहा था कि कांग्रेस की छवि हिन्दू विरोधी हो गई है, उन्होंने 2004 से 2014 तक की उन सारी घटनाओं का जिक्र भी किया था, जिनके कारण हिन्दू कांग्रेस से नाराज है और उसकी छवि मुस्लिम परस्त पार्टी की बन गई है.

अब जब मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस कार्यसमिति का गठन किया है और उसमें कथित तौर पर  भारत तेरे टुकड़े होंगे का नारा लगाने वाले पूर्व कम्युनिस्ट नेता कन्हैया कुमार को कार्यसमिति में रखा गया है. इसपर  आचार्य प्रमोद ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि  कांग्रेस में कुछ ऐसे नेता आ गए है, जो कांग्रेस को वामपंथ के रास्ते पर ले जाना चाहते हैं, इन नेताओं को वंदे मातरम, भारत माता की जय और भगवा से नफरत है.आचार्य प्रमोद कृष्णम ने वही अहम सवाल कांग्रेस में उठाया है, जो 1999 में वी.एन. गाडगिल ने उठाया था. बहरहाल आने वाले कुछ महीनों में लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज जाएगी, ऐसे में देखना होगा कि नेहरु- इंदिरा के रास्ते को छोड़ कर आगे भड़ रही कांग्रेस  आचार्य प्रमोद और वीएन गाडगील के सलाहों को मानती है या उसका रास्ता 1994 वाला हीं होगा.