कोरोना काल में औरंगाबाद लौटे शत्रुध्न ने कालीन उद्योग में फूंकी नई जान, कई बुनकरों को घर बैठे मिला रोजगार

AURANGABAD : एक ओर जब पूरा संसार कोरोना वायरस से आक्रांत था और अपना अपना व्यवसाय छोड़कर लोग घर में बैठ गए थे। ऐसे में बहुत से लोग आपदा में भी अवसर तलाशने और लोगों की मदद में जी जान से जुटे थे। उनसे जो भी बन पाया जीवन को बचाने का अपने अपने तरीके से प्रयास किए। इन्ही में से एक युवक ऐसा भी था जो खुद ही कोरोना की मार झेल रहा था और अचानक उसके मन में यह ख्याल आया कि अपने गांव से हजारों मील दूर रहने से क्या फ़ायदा। जब बुरे वक्त पर अपने ही लोगो का साथ छूट जाए। उसने कुछ कर गुजरने की ठानी और दिल्ली की चकाचौंध से दूर अपने गांव आने का फैसला लिया। 

मगर दुर्भाग्य रहा कि कोरोना काल में गांव आने के लिए कोई साधन भी नही मिल सका।  किसी तरह उसने हजारों रुपए किराया देकर दिल्ली से कोलकाता आ रही एक एंबुलेंस का सहारा लिया और अपने गांव पहुंच गया। गांव पहुंचते ही उसने सर्वप्रथम अपने घर की मिट्टी को चूमा और रोजगार सृजन की दिशा में कुछ कर गुजरने की ठानी। यह युवक नवीनगर प्रखंड के नवाडीह गांव के रहनेवाले शत्रुघ्न कुमार सिंह है जिनकी उम्र 42 वर्ष है। जो आज अपनी कड़ी मेहनत और सरकार की एमएसएमई के तहत सूक्ष्म लघु उद्योग योजना को धरातल पर उतारकर कालीन उद्योग को बढ़ावा दिया। 

आज स्थापित कालीन उद्योग यहां के बुनकरों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। आज काम की तलाश में इधर उधर भटकने वाले बुनकरों को रोजगार देकर उनके जीवन को बदल दिया है। वर्ष 1998 से ही शत्रुघ्न दिल्ली में रहकर हैंडीक्राफ्ट का काम कर रहे थे। लेकिन कोरोना काल ने उन पर काफी प्रभाव डाला। इसी कारण कालीन उद्योग को अपने जिले  में बढ़ावा देने की ठानी और एक वर्ष के परिश्रम के बाद उद्योग को धरातल पर उतारा। लुप्त हो चुकी ओबरा कालीन उद्योग को फिर से जान डाल कामयाबी हासिल की। 

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बताते चले कि 70 के दशक में ओबरा के कालीन उद्योग अपने चरम पर था। यहां के बने कालीन की डिमांड अमेरिका, थाईलैंड, चीन और नेपाल तक थी। कालीन का जलवा यह था कि ओबरा के बने कालीन राष्ट्रपति भवन की शोभा तक बढ़ा रहे थे। वर्ष 1972 में बुनकर मोहम्मद अली को राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था। सरकार की उदासीनता ने यहां के कालीन उद्योगो को धराशाई कर दिया और 1986 में स्थापित महफिले कालीन उद्योग अंतिम सांसे गिनने लगा। लेकिन शत्रुघ्न की कड़ी मेहनत ने रंग लाया और लोग इस उद्योग से जुड़ने लगे। शत्रुघ्न के द्वारा स्थापित कालीन उद्योग के कारण पलायन करनेवाले बुनकर अब धीरे धीरे रोजगार प्राप्त कर रहे है। इस कालीन उद्योग की मदद से 200 बुनकरों को रोजगार मिला है। जिससे ये काफी खुश हैं। काम के अभाव में कल तक ये दूसरे प्रदेशों में काम करने को मजबूर थे। कोरोना काल में रोजगार छीन जाने के बाद प्रवासी मजदूर मारे मारे फिर रहे थे।

औरंगाबाद से दीनानाथ मौआर की रिपोर्ट