PRAYAGRAJ : डेढ़ माह पहले जब एक के बाद एक गंगा किनारे बसे शहरों में नदी के पास लोगों की दफन लाशें मिलनी शुरू हुईं तो सरकार पर विफलता के कई आरोप लगे कि उन्होंने कोरोना से मारे गए लोगों का सही तरीक से अंतिम संस्कार करने की जगह गंगा में फेंक दिया। इस आरोपों से सरकार की छवि विश्वस्तर पर खराब हुई थी। लेकिन, सरकार पर सवाल उठानेवालों के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने करारा जवाब दिया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले में दिए अपने आदेश में साफ कर दिया है कि कुछ जातियों में गंगा किनारे शव दफन करने की परंपरा है। इसी के साथ कोर्ट ने प्रयागराज में गंगा किनारे शवों को दफनाने से रोकने और दफनाए गए पार्थिव शरीरों का दाह संस्कार करने की याचिका निस्तारित कर दी। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जनहित याचिका पर हस्तक्षेप से इन्कार करते हुए कहा कि याची ने गंगा किनारे निवास करने वाले लोगों के अंतिम संस्कार की परिपाटी व चलन को लेकर कोई शोध नहीं किया। इसलिए यह याचिका खारिज की जाती है। कोर्ट ने कहा कि याची गंगा किनारे विभिन्न समुदायों में अंतिम संस्कार को लेकर परंपराओं और रीति-रिवाज पर शोध व अध्ययन करे। इसके बाद नए सिरे से बेहतर याचिका दाखिल कर सकता है। मुख्य न्यायमूर्ति संजय यादव व न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की पीठ ने याची प्रणवेश की जनहित याचिका पर वीडियो कांफ्रेंसिंग से सुनवाई की।सुनवाई में सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने बहस की।
दफन शवों को निकालकर अंतिम संस्कार करने की थी मांग
दरअसल, इलाहाबाद हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में मांग की गई थी कि बड़ी संख्या में गंगा के किनारे दफनाए गए शवों को निकालकर उनका दाह संस्कार किया जाए। इसके साथ ही गंगा के किनारे शवों को दफनाने से रोका जाए। याची ने मीडिया रिपोर्ट्स को आधार बनाया है, जिसमें शवों को दफनाए जाने के मामले की उच्च स्तरीय जांच कराए जाने की मांग गई थी। शवों की वजह से नदी गंगा के बड़े पैमाने पर प्रदूषित होने की आशंका जताई गई थी। जिस पर हाईकोर्ट ने याची की मंशा पर ही सवाल उठाते कह दिया कि कि याचिका देखने से ऐसा लगता है कि याची ने विभिन्न समुदायों की परंपराओं और रीति-रिवाजों का अध्ययन नहीं किया है।
देश की छवि को खराब करने की कोशिश
इलाहाबाद हाई कोर्टका यह आदेश ऐसे समय आया है जब गंगा किनारे दफन शवों की फोटो और वीडियो को इंटरनेट मीडिया पर वायरल कर वैश्विक स्तर पर देश की छवि को खराब करने की कोशिशें की गई थीं। साथ ही दफन शवों को लेकर यह भी कहा गया कि ये सभी मौतें कोरोना से हुईं, जिनका दाह संस्कार न हो पाने के कारण उन्हें दफन करना पड़ा। परंपरा की बात को नजरंदाज कर दफन शवों की तस्वीरों के माध्यम से राज्य सरकार की व्यवस्थाओं पर भी सवाल उठाए गए थे। जबकि