बक्सर में श्रीमद्भागवत कथा का हुआ शुभारंभ, इस दिन तक चलेगा कार्यक्रम, पहले दिन बड़ी संख्या में भक्तों ने लिया हिस्सा

BUXAR: बक्सर में नया बाजार के श्री सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम में आज यानी सोमवार से श्रीमद्भागवत कथा प्रारंभ हुई है। जो की गुरू पूर्णिमा 03 जूलाई तक चलेगी। कथावाचक के रूप में उमेश भाई ओझा है। आज की कथा में कथा व्यास उमेश भाई ओझा ने भागवत महात्म्य की सुमधुर व्याख्या कर भक्तों को मंत्र मुग्ध कर दिया। आश्रम के महंत राजाराम शरण महाराज ने विधि-विधान से व्यास पीठ पूजन कथा का शुभारंभ किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में आश्रम परिवार एवँ भक्तगण उपस्थित रहे।

श्रीमद्भागवत महात्म्य की चर्चा करते हुए कहा कि वेद कल्पवृक्ष है और श्रीमद्भागवत उस वेद रूपी कल्पवृक्ष का परिपक्व फल है, जो भक्ति रूपी रस से भरा हुआ है। उन्होंने कहा भागवत में चार अक्षर हैं भा ग व और त। कथा व्यास ने भा की व्याख्या करते हुए कहा कि भा से तात्पर्य भाष्यते सर्व वेदाषु अर्थात भागवत जी वो है जिसका प्रकाश चारों वेदों में फैला हुआ है। जबकि ग से तात्पर्य है गीयते नारदिदिशु अर्थात जिन का गुणगान नारद आदि भक्त कवियों ने गाया है। व का तात्पर्य वदन्ति त्रिभुवन लोकेषु अर्थात जिनका गुणगान तीनों लोकों में होता है। जबकि त का तात्पर्य तरन्ति भवसागरण अर्थात जो भवसागर अर्थात जन्म मरण के चक्र और काम क्रोध लोभ मद अवसर इन षड्विकारों को समाप्त कर देता है वह श्रीमद्भागवत है।

भागवत महात्मा की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत के श्लोकों का नित्य गान करने वाले मनुष्य के करोड़ों जन्म का पाप खत्म हो जाता है। अगर कोई व्यक्ति भागवत जी का एक श्लोक या आधा श्लोक गाता है तो स्वयं भगवान श्री कृष्ण श्री राधा रानी जी के साथ वहां उपस्थित होकर उसके श्लोक के स्वर में स्वर मिलाकर बंसी की मधुर तान करने लगते हैं। महाराज जी ने कहा कि श्रीमद्भागवत कथा के श्रवन से कलयुग के पांच प्रकार के महापापों का भी समूल नाश हो जाता है। श्रीमद् भागवत कथा के गायन अथवा श्रवण से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और वह व्यक्ति बैकुंठ धाम जाने का अधिकारी बन जाता है। 

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इसका ज्वलंत उदाहरण धुंधकारी की कथा से मिलता है। धुंधकारी आत्मदेव जी के दो पुत्रों में से एक था। अपने पाप कर्म के चलते धुंधकारी की प्रेतात्मा एक एक बूंद पानी के लिए तरस रही थी। अनेकों बार श्राद्ध करने के पश्चात भी धुंधकारी को मुक्ति नहीं मिल रही थी। तब उसके भ्राता गोकर्ण जी ने अपने तपोबल से भगवान सूर्य से संवाद किया और सूर्य भगवान ने कहा कि धुंधकारी को मोक्ष दिलाने का एकमात्र उपाय श्रीमद् भागवत कथा ही है। और भागवत कथा के पुण्य से धुंधकारी को मोक्ष प्राप्त हुआ। 

महाराज जी ने गोकर्ण तथा आत्मदेव जी के संवाद की चर्चा करते हुए कहा कि जब अपने पुत्र धुंधकारी के दुराचारों से दुखी होकर आत्मदेव जी रो रहे थे तो गोकर्ण जी ने उनको ज्ञान दिया कि किसी भी मानव के जीवन का परम लक्ष्य है कि वह लोक धर्म का परित्याग करके भागवत धर्म की शरण में चला जाए। संसार को संभालना यह लोक धर्म है जबकि भगवान की सेवा करना भगवान की शरण में जाना यह भागवत धर्म है। गोकर्ण जी ने कहा कि जब लोक धर्म भागवत धर्म को त्यागने के लिए बाध्य करने लगे तो वैसी परिस्थिति में लोक धर्म का त्याग कर भागवत धर्म की शरण में जाना ही श्रेष्ठ है। गोकर्ण जी ने अपने पिता आत्मदेव जी से कहा कि आप जंगल में जाकर भजन करें किंतु ना तो वहां किसी का दोष देखना और ना ही किसी का गुण। क्योंकि दोष देखने से ईर्ष्या होती है और गुण देखने से आशक्ति। ईर्ष्या और आशक्ति दोनों भजन में बाधक है।