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न्याय की सुस्त चाल, 1998 में जिस पुलिसवाले पर लगा था 350 रुपए रिश्वत लेने का आरोप और हुई थी जेल 24 साल बाद हाईकोर्ट ने किया बरी

न्याय की सुस्त चाल, 1998 में जिस पुलिसवाले पर लगा था 350 रुपए रिश्वत लेने का आरोप और हुई थी जेल 24 साल बाद हाईकोर्ट ने किया बरी

 DESK. देश की न्याय व्यवस्था की सुस्त चाल को लेकर तरह तरह के सवाल किए जाते हैं. अब एक ऐसा मामला सामने आया है जिसमें भ्रष्टाचार के मामले 24 साल बाद आरोपी को बरी कर दिया गया है.  भ्रष्टाचार के मामले में 24 साल पहले दोषी ठहराए जाने और एक साल की सजा पाने वाले एक पुलिसकर्मी को बंबई हाईकोर्ट ने आरोप से बरी कर दिया है. अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में नाकाम रहा कि पुलिसकर्मी ने 350 रुपये की रिश्वत स्वीकार की थी.

महाराष्ट्र भ्रष्टाचार-निरोधक ब्यूरो ने 1988 में तत्कालीन पुलिस उप निरीक्षक दामू अव्हाड के खिलाफ 350 रुपये रिश्वत मांगने के आरोप में मामला दर्ज किया था. अगस्त 1998 में नासिक की एक विशेष अदालत ने दामू को दोषी ठहराते हुए एक साल कैद की सजा सुनायी थी. दामू ने इसी साल उच्च न्यायालय में एक अपील दायर की थी. जस्टिस वीजी वशिष्ठ की एकल पीठ ने पारित अपने आदेश में कहा कि केवल आरोपी से पैसे की बरामदगी के आधार पर उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता और अभियोजन दामू के खिलाफ मामले को साबित करने में विफल रहा है.

आदेश की प्रति शुक्रवार को उपलब्ध हुई. अदालत ने नासिक में येओला तालुका पुलिस थाने में तैनात तत्कालीन उप निरीक्षक को बरी कर दिया. अभियोजन के अनुसार, दामू ने मार्च 1988 में एक व्यक्ति से उसके भाई को जमानत दिलाने में मदद के एवज में कथित तौर पर 350 रुपये की रिश्वत मांगी थी.


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