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बीजेपी ने सच्चिदानंद राय का टिकट काटा तो बेटे का ऐलान -एक समर्पित कार्यकता के खिलाफ सियासी षड्यंत्र किसी कीमत पर सफल नहीं होने देंगे, लड़ेंगे सम्मान की लड़ाई

बीजेपी ने सच्चिदानंद राय का टिकट काटा तो बेटे का ऐलान -एक समर्पित कार्यकता के खिलाफ सियासी षड्यंत्र किसी कीमत पर सफल नहीं होने देंगे, लड़ेंगे सम्मान की लड़ाई

पटना. स्थानीय प्राधिकरण से बिहार विधान परिषद की 24 सीटों पर होने जा रहे चुनाव में भाजपा ने सारण सीट से मौजूदा एमएलसी सच्चिदानंद राय का टिकट काट दिया है. सच्चिदानंद राय का टिकट काटे जाने से भाजपा में घमासान मचा हुआ है. राय के बेटे कुमार सात्यकि ने बिहार बीजेपी नेतृत्व पर पक्षपात करने और जातीय कारणों से उनके पिता का टिकट काटने का कथित आरोप लगाया है. उनकी जगह पर पार्टी ने धर्मेंद्र कुमार सिंह को उम्मीदवार बनाया है. 

कुमार सात्यकि ने शनिवार को कहा कि उनके पिता हमेशा से भाजपा के समर्पित कार्यकर्ता रहे हैं. सारण सहित पूरे बिहार में भाजपा के जनाधार को मजबूत करने वाले वे शुरूआती दौर के नेता रहे हैं. सार्वजनिक जीवन में हमेशा से बड़ा जनसमूह उनके साथ रहा है. वहीं एमएलसी बनने के बाद सारण क्षेत्र के लोगों की समस्याओं का व्यापक पैमाने पर उन्होंने निराकरण किया. सात्यिकी ने कहा कि उनके पिता के इन्हीं कामों की वजह से क्षेत्र में उनकी जोरदार लोकप्रियता है. यहां तक कि पार्टी के भरोसे के कारण ही उनके पिता ने पिछले कई महीनों से सारण में चुनावी तैयारी शुरू कर दी थी. 

ऐसे में चुनाव के कुछ दिन पहले बिना किसी विचार-विमर्श के उनके पिता का टिकट काटा जाना एक राजनीतिक षड्यंत्र प्रतीत होता है. कुमार सात्यकि ने कहा कि अब यह लड़ाई उनके परिवार के लिए सम्मान की लड़ाई बन गई है. भाजपा ने सारण के लोकप्रिय नेता और उनके पिता सच्चिदानंद राय का टिकट काटकर उनका अपमान किया है. ऐसे में पिता के सम्मान को बचाने के लिए वे प्रतिबद्ध है. उन्होंने कहा कि अगर भाजपा ने अपना निर्णय नहीं बदला और उनके पिता को टिकट नहीं दिया तो पिता का सम्मान बचाने के लिए कुमार सात्यिकी खुद एमएलसी चुनाव लड़ेंगे. 

उन्होंने कहा कि उनके पिता ने प्रतिकूल परिस्थियों में आईआईटी जैसी संस्थान से उच्च शिक्षा पाई. सार्वजिनक जीवन में इमानदार, बेदाग और जनप्रिय छवि है. एक सफल व्यवसायी होने के साथ ही सार्वजनिक जीवन में भी मिसाल पेश की. बावजूद इसके बिना वजह के टिकट काटा जाना भाजपा में एक समर्पित कार्यकर्ता के खिलाफ षड्यंत्र कहा जा सकता है. ऐसे में जरूरत पड़ने पर वे निर्दलीय भी चुनाव लड़ सकते हैं. 


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