गरीबी से जीवन शुरू कर खड़ी की थी देश की सबसे दवा कंपनी, देश के सबसे अमीर सांसदों में थे जहानाबाद के किंग महेंद्र

PATNA : राज्यसभा सांसद किंग महेंद्र का आज 81 साल की उम्र में निधन हो गया। उनके निधन से न सिर्फ एक सफल राजनेता का अंत हो गया। बल्कि बिहार के लिए भी यह बहुत बड़ी क्षति है। किंग महेंद्र एक सफल उद्यमी थे। विशेष बात यह है कि उन्होंने अपनी मेहनत से एक बड़ा साम्राज्य खड़ा किया, जो हर किसी के लिए प्रेरित करनेवाली है।
1940 में जहानाबाद जिले के गोविंदपुर गांव में हुआ था। उनके पिता वासुदेव सिंह किसान थे। बेहद गरीबी में जीवन गुजारनेवाले किंग महेंद्र एक कामयाब बिजनेसमैन रहे हैं। इसके अलावा चार दशक से भी ज्यादा समय से वह राजनीति से भी जुड़े रहे। आज उनकी गिनती देश के सबसे अमीर सांसदों में की जाती थी।
कभी नौकरी नहीं करने की खाई थी कसम
किंग महेंद्र का जीवन गरीबी में बीता। उनकी प्रारंभिक शिक्षा ओकरी हाईस्कूल से हुई। इसके बाद पटना कॉलेज से इकोनॉमिक्स में बीए किया था।किंग महेंद्र के जीवन से लेकर एक रोचक किस्सा भी है कि वह कभी नौकरी नहीं करना चाहते थे। बताया जाता है कि बचपन के उनके मित्र राजाराम शर्मा ओकरी हाईस्कूल में टीचर बन गए थे। वे उनकी बेरोजगार देखकर शिक्षक बनने की सलाह दिया करते थे। मगर, महेंद्र प्रसाद यह कहते हुए मना कर देते थे कि मर जाना पसंद करूंगा, पर नौकरी नहीं करूंगा।
खड़ी कर दी देश की सबसे बड़ी दवा कंपनी
घर की मुश्किल हालत के बीच किंग महेंद्र पिता वासुदेव और छोटे भाई के साथ छोटी उम्र में बड़ा सपना लेकर मुंबई चले थे। बताते हैं कि कड़ी मेहनत कर साल 1971 में उन्होंने अपनी खुद की मेहनत से एक दवा फैक्ट्री की नींव रखी थी। जो आगे चलकर देश के सबसे बड़ी दवा कंपनी अरिस्टो फार्मास्यूटिकल के रूप में बदल चुकी थी। उनकी मैप्रा लेबोरेटरीज प्राइवेट लिमिटेड और अरिस्टो फार्मास्यूटिकल कंपनी के मालिक किंग महेंद्र के पास 4000 हजार करोड़ की चल और 2910 करोड़ की अचल संपत्ति है। आज अरिस्टो फार्मास्यूटिकल देश की 20 टॉप टेन दवा कंपनियों में शामिल है।
राजनीति में गुजारे चालीस साल
महेंद्र सिंह जब साल 1980 में घर लौटे तो उनके नाम के आगे किंग जुड़ गया था। वे इस साल पहली बार कांग्रेस की टिकट पर जहानाबाद लोकसभा सीट से चुनाव जीतने के बाद संसद पहुंचे थे। लेकिन महेंद्र प्रसाद को साल 1984 में अपनी सीट गंवानी पड़ी थी। लेकिन, राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए साल 1985 में वह पहली बार राज्यसभा के लिए नामित हुए और फिर उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।