पानी की कहानी : धरती का 'नर्क' है शिवसागर का बरुआ गांव, बच्चे गर्भ में ही हो जाते हैं विकलांग, सरकारी तंत्र भी है जिम्मेदार

SASARAM : रोहतास जिला का एक ऐसा गांव है, जिसे लोग धरती का नर्क कहते हैं। कारण यह है कि यहां की पानी काफी दूषित है। स्थिति ऐसी है कि यहां के रहने वाले ज्यादातर लोगों की हड्डियां टेढ़ी हो चुकी है। साथ ही काफी कम उम्र में लोग काल-कलवित हो जाते हैं। रोहतास जिला के शिवसागर प्रखंड के बरुआ गांव के पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होने से इस गांव में लोग रहना नहीं चाहते।
रोहतास जिला मुख्यालय से महज 8 से 10 किलोमीटर की दूरी पर शिवसागर प्रखंड में स्थित है बरुआ गांव। चुकी यह गांव पक्की सड़क से जुड़ी हुई है। यहां पहुंचना बेहद आसान है। लेकिन यहां की जिंदगी पिछले कई वर्षों से रेंग रही है। कारण यह है कि यहां के पानी में 'फ्लोराइड' की मात्रा इतनी अधिक है कि ज्यादातर लोग दिव्यंगता के शिकार हैं। समय से पहले लोगों की दांत खराब हो जा रही हैं एवं हड्डियां टेढ़ी हो जा रही है। स्थिति यह है कि गर्भ में भी बच्चे प्रभावित होते हैं और महिलाओं का गर्भपात हो जाता होता है। अगर बच्चा जन्म लेता है तो वह भी दिव्यांग ही पैदा हो रहा है। इतनी नाजुक स्थिति के बावजूद गांव का सुध लेने वाला कोई नहीं है।
सिर्फ नाम का वाटर प्यूरीफायर
बता दे की कुछ साल पहले यहां लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग द्वारा वॉटर प्यूरीफायर सिस्टम लगाया गया। लेकिन वह भी कोई काम का नहीं है। पिछले कई महीनो से यह बंद पड़ा है। गांव में बिजली तो है, लेकिन इस पंप हाउस को बिजली से कनेक्शन नहीं दिया गया है। जिस कारण इसका लाभ लोगों को नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में चापाकल से निकलने वाले दूषित पानी ही अब इन लोगों का सहारा है। आलम यह है कि मवेशी भी दिव्यांग होते जा रहे हैं, ऐसे में आप समझ सकते हैं कि इंसान तो क्या जानवर के पीने योग्य भी यहां का पानी नहीं है। लोगों का कहना है कि कई बच्चे दिव्यांग पैदा हुए, 5 से 7 साल होते-होते उसकी मौत हो जा रही है। आज गांव में 60 से 70% लोग दिव्यंगता के शिकार हैं। लेकिन किसी रहनुमा की नजर यहां तक नहीं पहुंच रही है।
पानी में फ्लोराइड की इतनी अधिक मात्रा है कि लंबे समय तक यहां के पानी पीने से लोगों की हड्डियां विकृत होती जा रही है। कई लोग तो ऐसे हैं जो कल तक ठीक-ठाक थे। लेकिन साल दर साल गांव में पानी के कारण विकलांगता बढ़ती चली गई। गांव के रहने वाले रामराज प्रसाद कभी फुटबॉलर हुआ करते थे। आसपास के इलाके में फुटबॉल खेलने जाते थे। लेकिन समय दर समय उनकी स्थिति नाजुक होती चली गई। आज आलम यह है कि वह चलने फिरने के लायक भी नहीं है। रामराज प्रसाद कहते हैं कि एक जमाने में बेहतरीन फुटबॉलर में उनकी गिनती थी। लेकिन आज गांव में घर के दरवाजे पर ही चना-चबेना, चाकलेट-कुरकुड़े आदि बेचकर अपना पेट चलाते हैं। शौच से लेकर नित्य क्रिया भी एक ही जगह करनी पड़ती हैं।
यहां के लोगों का कहना है कि आज हमारा देश चांद पर पानी की खोज कर रहा है। लेकिन दुख की बात है की धरती के इस एक कोने में लोग शुद्ध पानी के लिए तरस रहे हैं। क्या शुद्ध पेयजल यहां के ग्रामीणों का हक नहीं है। आज जरूरी है कि सरकार द्वारा प्रायोजित योजना को यहां तक पहुंचाने की, ताकि आने वाली पीढ़ियां दिव्यांग पैदा ना हो।