सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, कोरोना काल में बैंक के कर्जदारों को दी ये राहत, पढ़िए पूरी खबर

DESK : कोरोना के कहर के रोकथाम को लेकर लगे लॉकडाउन में आर्थिक गतिविधियां पर लगाम लग गया था. लॉकडाउन और कोरोना की मार की वजह से कर्जदार बैंक को EMI सही वक्त पर नहीं चुका पा रहे थे या चुकाने में भी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था. इस समस्या को ध्यान में रखते हुए RBI ने लोन मोरेटोरियम मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगले दो महीनों तक बैंक खातों को नॉन परर्फोमिंग एसेट्स घोषित नहीं किया जा सकता.
तीन न्यायाधीशों की बैंच ने मामले पर सुनवाई के बाद कहा कि जिन ग्राहकों के बैंक खाते 31 अगस्त तक NPA नहीं हुए है उन्हें मामले का निपटारा होने तक सुरक्षा दिया जाय. न्यायाधीश अशोक भूषण,आर सुभाष रेड्डी और एम आर शाह वाली तीन सदस्यीय बैंच ने कहा कि मामले की अगली सुनवाई 10 सितंबर को होगी.
सरकार और आरबीआई की तरफ से दलील रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि ब्याज पर छूट नहीं दे सकते है लेकिन भुगतान का दबाव कम कर देंगे. मेहता ने कहा कि बैंकिंग क्षेत्र अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और अर्थव्यवस्था को कमजोर करने वाला कोई फैसला नहीं लिया जा सकता.उन्होंने कहा कि वे मानते हैं कि जितने लोगों ने भी समस्या रखी है वे सही हैं. हर सेक्टर की स्थिति पर विचार जरूरी है लेकिन बैंकिंग सेक्टर का भी ख्याल रखना होगा. तुषार मेहता ने कहा कि मोरेटोरियम का मकसद यह नहीं था कि ब्याज माफ कर दिया जायेगा. कोरोना के हालात का हर सेक्टर पर प्रभाव पड़ा है लेकिन कुछ सेक्टर ऐसे भी है जिन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया है. फार्मास्यूटिकल और आईटी सेक्टर ऐसे सेक्टर है जिन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया है. उन्होंने कहा कि जब मोरेटोरियम लाया गया था तो मकसद था कि व्यापारी उपलब्ध पूंजी का जरूरी इस्तेमाल कर सके और उनपर बैंक के किश्त का बोझ नहीं पड़े.
आखिर क्या थी मोरेटोरियम की सुविधा?
लॉकडाउन को देखते हुए RBI ने लोन मोरेटोरियम यानी लोन की किश्त नहीं चुकाने के लिए तीन महीने मार्च, अप्रैल और मई का विकल्प दिया था. बाद में RBI ने इस सुविधा की अवधि को और तीन महीने यानी जून, जुलाई और अगस्त तक बढ़ा दिया था. 31 अगस्त को मोरेटोरियम पीरियड समाप्त होते ही ग्राहक इस सुविधा की अवधि और बढ़ाने की मांग कर रहे है. मोरेटोरियम पीरियड को आगे बढ़ाने के साथ-साथ मार्च से सितंबर तक का ब्याज भी माफ करने की मांग की जा रही है. ग्राहकों और याचिकाकर्ता का तर्क है कि ब्याज पर ब्याज नहीं लिया जाना चाहिए.