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जब इंटरनेट बंद कर सकते हैं, तो भड़काऊ समाचार परोसनेवाले न्यूज चैनलों को छूट क्यों, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से किया सवाल

जब इंटरनेट बंद कर सकते हैं, तो भड़काऊ समाचार परोसनेवाले न्यूज चैनलों को छूट क्यों, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से किया सवाल

नई दिल्ली।  सुप्रीम कोर्ट ने कानून व्यवस्था को लेकर सरकार से पूछा है कि जब भड़काऊ सूचनाएं रोकने के लिए इंटरनेट सेवाएं बंद की जा सकती हैं तो ऐसे चैनलों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती। सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल तबलीगी जमात मामले को लेकर कही है। सीजेआई एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र सरकार के वकील तुषार मेहता से कहा है कुछ चैनलों पर लगातार भड़काऊ सामग्री प्रसारित होती है लेकिन सरकार के तौर पर आप कुछ नहीं करते ही जरूरी है। जितना कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रतिबंधात्मक कदम उठाते हैं।

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने निजामुद्दीन मरकज की तबलीगी जमात  वाली घटना के दौरान फर्जी और प्रेरित खबरों के खिलाफ जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर सुनवाई करते हुए नाराजगी जाहिर की. सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को उन टीवी कार्यक्रमों पर लगाम लगाने के लिए ‘कुछ नहीं करने’ पर फटकार लगाई जिनके असर 'भड़काने' वाले होते हैं और कहा कि ऐसी खबरों पर नियंत्रण उसी प्रकार से जरूरी है जैसे कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिये एहतियाती उपाय. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हिंसा के दौरान एहतियाती कदम के तौर पर इंटरनेट बंद करने के फैसले का भी हवाला दिया.  चीफ जस्टिस ने कहा कि 'सरकार ने दिल्ली में किसानों के यहां आने (विजिट) की वजह से मोबाइल पर इंटरनेट बंद कर दिया. मैं गैर विवादास्पद शब्द का इस्तेमाल कर रहा हूं. आपने इंटरनेट मोबाइल बंद कर दिया. ये ऐसी समस्याएं हैं जो कहीं भी पैदा हो सकती हैं.'

सूचना के प्रवाह को नियंत्रित करना जरुरी

चीफ जस्टिस ने जोर दिया कि 'सूचना के प्रवाह को नियंत्रित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है.' शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार उन कार्यक्रमों को नियंत्रित करने के लिए कुछ नहीं कर रही है जो एक समुदाय को उकसाने के लिए दिखाए जाते हैं. अदालत ने मामले को तीन सप्ताह के बाद आगे की सुनवाई के लिए मुकर्रर कर दिया. जमीयत और अन्य लोगों ने विभिन्न मीडिया हाउसों द्वारा खराब रिपोर्टिंग का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था, इसी के सिलसिले में सुनवाई हो रही थी.



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