Desk: जिसके हाथों में तीर कमान होनी चाहिए थी, गले में गोल्ड मेडल वो आज सड़क किनारे हाथ में तराजू लेकर सब्जी तौल रही है और बेच रही है. दरअसल, राष्ट्रीय विद्यालय तीरंदाजी प्रतियोगिता में पदक जीतने वाली सोनी आज झरिया में सड़क किनारे सब्जी बेचने को मजबूर है. उसकी सुध लेने वाला आज कोई नहीं है.
सोनू ने बताया कि साल 2011 में मैट्रिक की परीक्षा देते हुए तीरंदाजी का अभ्यास कर रही थी, इस क्रम में 56वीं राष्ट्रीय विद्यालय तीरंदाजी प्रतियोगिता में चयन हुआ. ये प्रतियोगिता पुणे में हुई थी जिसमें कांस्य पदक जीता था. इसके बाद सोनू 2015-16 तक राज्य स्तर की कई प्रतियोगिताओं में भाग ली ओर कई पदक अपने नाम की लेकिन इस बीच अभ्यास के दौरान धनुष टूट गया, जिसके कारण अभ्यास करने से वंचित हो गई.
सोनू ने बताया कि टाटा अर्चरी एकेडमी फीडर सेंटर में हुनर दिखाने का मौका भी मिला, लेकिन उसका उसका धनुष क्या टूटा, तीरंदाजी की दुनिया में सितारा बनकर चमकने का सपना ही टूट गया. उसके बताया कि इसके लिए काई बार खेल मंत्री से लेकर विभाग के अधिकारियों के पास चक्कर काटे, लेकिन आश्वासन के अलावा कुछ और मदद नहीं मिला. अब उसके पास तीर-धनुष नहीं है, ऐसे में वह अब अभ्यास नहीं कर सकती.
लॉकडाउन में परिवार का गुजारा करने के लिए सोनू खातून झरिया में सड़क किनारे सब्जी बेच रही है. परिवार में माता-पिता के अलावे दो बहनें हैं. पिता इरदीश मियां देहाड़ी मजदूर हैं. लॉकडाउन के कारण उनका काम ठप है.