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जातिगत जनगणना का खेल शुरू! दो राज्यों में सर्वे की रिपोर्ट आज तक नहीं हुई सार्वजनिक, एक जगह सरकार भी चली गई, बिहार में क्या होगा...

जातिगत जनगणना का खेल शुरू!  दो राज्यों में सर्वे की रिपोर्ट आज तक नहीं हुई सार्वजनिक, एक जगह सरकार भी चली गई, बिहार में क्या होगा...

DESK : बिहार में आज से जातिगत जनगणना की शुरूआत हो रही है। बिहार सरकार अपने खर्च पर इस कार्य को करवा रही है। जिसके लिए 500 करोड़ रुपए आंवटित किए गए हैं। सरकार का उद्देश्य बिहार में रहनेवाली जातियों और उनके वास्तविक आंकड़े और उनकी आर्थिक स्थिति का आकलन करना है। लेकिन जिन राज्यों में बिहार से पहले जातिगत जनगणना कराई गई है, उन राज्यों में इसके क्या फायदे हुए। यह भी जानना जरुरी है।

बिहार से पहले सिर्फ दो राज्यों में जातिगत जनगणना हुई है। जिनमें सबसे पहले 2011 में राजस्थान में जातिगत जनगणना कराई गई। लेकिन यूपीए सरकार ने यहां सामाजिक, आर्थिक सर्वे के साथ जातिगत जलगणना करवाई थी। लेकिन, सर्वे के बाद जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी करने पर रोक लगा दी गई थी। उसके बाद की सरकार ने भी इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया।

कर्नाटक ने  भी नहीं किया सार्वजनिक

बिहार सरकार कर्नाटक के तर्ज पर जातिगत जनगणना कराने की बात कहती रही है। जहां 2014-15 में तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने 2014-15 में जाति आधारित जनगणना का फैसला किया। लेकिन, जब इसे असंवैधानिक बताया गया तो नाम बदलकर ‘सामाजिक एवं आर्थिक’ सर्वे कर दिया। जिस पर राज्य सरकार ने 150 करोड़ खर्च किए। जनगणना फार्म में ही जाति का कॉलम जोड़ दिया गया था। 

2017 के अंत में कंठराज समिति ने रिपोर्ट सरकार को सौंपी। शुरुआत में लग रहा था कि अल्पसंख्यक, ओबीसी और दलितों की गिनती राज्य का सियासी गणित बदल देगी। सिद्धरमैया की ‘अहिंद’ नाम से प्रसिद्ध सोशल इंजीनियरिंग के लिए यह क्रांतिकारी परिणाम देगा। जनगणना के आंकड़ों से उत्साहित सिद्धारमैया ने 2018 के चुनावों के दौरान अपने ‘अहिंद’ एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश की। 

कांग्रेस को गंवानी पड़ी कुर्सी

सामाजिक समीकरण का यह बदलाव कांग्रेस के लिए सुखद नहीं रहा। पार्टी ने सत्ता विरोधी ध्रुवीकरण के कारण बहुमत खो दिया। कांग्रेस 2013 में जीती सीटों में से एक तिहाई सीटें हार गई। ‘सामाजिक एवं आर्थिक’ सर्वे के नाम पर शुरू हुई जातिगत जनगणना की कवायद विवादों में घिर गई। अपने समुदाय को ओबीसी या एससी/एसटी में शामिल कराने के लिए जोर दे रहे लोगों के लिए यह सर्वे बड़ा मौका बन गया। अधिकतर ने उपजाति का नाम जाति के कॉलम में दर्ज कराए।

नतीजा-एक तरफ ओबीसी की संख्या में भारी वृद्धि हो गई तो दूसरी तरफ लिंगायत और वोक्कालिगा जैसे प्रमुख समुदाय के लोगों की संख्या घट गई। सिद्धारमैया ने यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की।

क्या बिहार सरकार करेगी रिपोर्ट सार्वजनिक

जहां दो राज्यों ने अपनी जातिगत रिपोर्ट को आज तक सार्वजनिक नहीं किया, क्योंकि जिस उम्मीद से यह सर्वे कराए गए, उसके रिपोर्ट उस समय की सरकार के अनुसार सही नहीं हुए। यह भी ध्यान देने की जरुरत है कि दोनों ही राज्यों में उस समय कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन इसके बाद भी रिपोर्ट फाइलों से बाहर नहीं निकली। बिहार में भी कांग्रेस के समर्थनवाली महागठबंधन की सरकार है। ऐसे में अब सवाल यह है कि क्या बिहार में भी रिपोर्ट अगर राज्य सरकार के अनुकूल नहीं हुए तो उसे  सार्वजनिक किया जाएगा। यहां यह बताना जरुरी है कि राज्य सरकार ने चुनाव में अति पिछड़ा आरक्षण को लेकर आयोग गठित की थी, जिसकी रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने के बाद भी सार्वजनिक नहीं किया गया।


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