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तथ्यों को छिपाकर पीआईएल दायर करने पर हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी, याचिकाकर्ता पर लगाया 10 हजार का जुर्माना

तथ्यों को छिपाकर पीआईएल दायर करने पर हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी, याचिकाकर्ता पर लगाया 10 हजार का जुर्माना

PATNA : पटना हाईकोर्ट ने तथ्यों  को छिपा कर जनहित याचिका दायर किये जाने पर सख्त रुख अपनाया ।चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने ध्रुव नारायण कर्ण की पीआईएल को खारिज करते हुए इसे कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग किये जाने पर याचिका कर्ता पर 10 हजार रुपए हर्जाना लगाया। ये मामला मधुबनी जिले के रहिका अंचल स्थित राम जानकी  गंगासागर मंदिर नामक  एक धार्मिक न्यास की जमीन से संबंधित था । 

याचिकाकर्ता ने जनहित याचिका से गुहार लगाया था की इस न्यास के सैकड़ों एकड़ जमीन पर बिहार सरकार ने लैंड सीलिंग कानून के तहत मुकदमा चलाकर, जो अधिशेष जमीन को अर्जित किया था, उस भूमि को भूमिहीनों के बीच आवंटन करने  में न्यास के महंत मुकदमेबाजी की आड़ में अड़ंगा डाल रहे हैं । 

याचिकाकर्ता के वकील उग्रनाथ मल्लिक ने कहा कि  बिहार लैंड सीलिंग कानून में अधिग्रहित जमीन से जुड़े मामलों को फिर से खोलने का प्रावधान को बिहार सरकार ने 2016 में ही खत्म  कर दिया है।इसके बावजूद महंत और  सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से अधिग्रहित जमीनों का आवंटन  फिर से मुकदमेबाजी होने के कारण नहीं हो पा रहा है। इसलिए व्यापक जनहित में न्यास की जमीन पर चल रहे सीलिंग मुकदमे को खत्म करने का अनुरोध किया।

राज्य सरकार के अधिवक्ता अरविंद उज्ज्वल ने याचिका इसका विरोध करते हुए कहा कि विवादित जमीन पर  सीलिंग कानून के तहत चलने वाले मुकदमे , पटना हाई कोर्ट के फैसले के अनुपालन में ही चल रहे हैं ।  1987 में ही हाई कोर्ट की एकलपीठ ने विवादित जमीन को अधिशेष घोषित किए जाने के सरकारी आदेश को निरस्त करते हुए मामले की पुनः सुनवाई हेतु मधुबनी के समाहर्ता के पास भेजा था।इसलिए याचिकाकर्ता कोर्ट को गुमराह कर रहे हैं । 

वहीं, इस मामले में न्यास के महंत ने हस्तक्षेप करते हुऐ जनहित याचिका का विरोध किया । उनकी की ओर से वरीय अधिवक्ता मृगांक  मौली ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता एक राजनैतिक दल का मधुबनी में जिला स्तरीय नेता है। वे राजनीतिक उद्देश्य से याचिका दायर करते हैं। उन्होंने जानबूझकर कोर्ट से यह तथ्य छिपाया है कि 2016 में भी वे इसी तरह की  एक रिट याचिका लाए थे,जिसे  हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था । 


 हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता की इस हरकत पर नाराजगी जताते हुए हरजाने के साथ जनहित मामले को खारिज कर दिया । याचिकाकर्ता की तरफ से मुकदमा वापस लेने का अनुरोध जब  उनके वकील ने किया, तो खंडपीठ ने कहा कि कोर्ट का समय बर्बाद करने और कानूनी प्रक्रिया से खिलवाड़ करने के लिए यह हर्जाना लगाया जाएगा ।

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