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विधवा के मंदिर में प्रवेश की रोक पर हाईकोर्ट ने लगाई फटकार, परंपरा को बताया दुर्भाग्यपूर्ण, कहा- शादी से नहीं होती है महिला की पहचान...

DESK: कहने को हम 21वीं सदी में हैं लेकिन आज भी हमारे समाज में कई ऐसी विडंबनाएं हैं जो महिलाओं की जीवन को कठिनाईयों से भर देती हैं। आज भी महिलाओं को जीवन जीने के लिए समाज के कई क्रूर विचारधाराओं का सामना करना पड़ता है। वहीं अगर बात विधवा महिलाओं की करें तो आज भी समाज में विधवाओं का जीवनयापन करना आसान नहीं है। उन्हें समाज के कई नियमों का पालन करना पड़ता है। कई जगहों पर विधवा महिलाओं के खाने पीने आने जाने हर चीज के लिए नियम बना दिया गया है। ऐसा ही एक मामला मद्रास हाईकोर्ट से सामने आया है। जहां कोर्ट ने विधवा महिलाओं के मंदिर में जाने से रोक लगाने वाली प्रथाओं पर कड़ी फटकार लगाई है।

मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी भी सभ्य समाज में इस तरह की परंपराएं नहीं हो सकती हैं। दरअसल, महिला के पुजार पति की मौत 6 साल पहले ही हो गई थी। जिसके बाद महिला अपने बेटे के साथ मंदिर में पूजा करना चाहती थी, लेकिन उसे लोगों के द्वारा अंदर नहीं जाने दिया गया। जिसके बाद महिला ने अदालत में याजिका दायर की। महिला ने जिले के एक मंदिर में जाने और कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए पुलिस सुरक्षा की मांग की थी।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस आनंद वेंकटेश की पीठ को महिला ने बताया कि उनके पति मंदिर में पुजारी थे, जिनकी 28 अगस्त, 2017 को मृत्यु हो गई थी। वह अपने बेटे के साथ मंदिर के उत्सव में हिस्सा लेने और पूजा करना चाहती थीं, लेकिन कुछ लोगों ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। महिला ने कहा कि वे विधवा होने के चलते मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकती हैं। इसके साथ ही महिला ने आगामी 9 और 10 अगस्त को मंदिर में होने वाले उत्सव में हिस्सा लेने के लिए सुरक्षा की मांग की है।

पीठ ने पूरे मामले पर सख्त नाराजगी जताते हुए कहा, ये काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस राज्य में यह पुरानी मान्यताएं कायम हैं कि यदि कोई विधवा मंदिर में प्रवेश करती है तो इससे वहां अपवित्रता हो जाएगी। हालांकि इन सभी मूर्खतापूर्ण मान्यताओं को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है, फिर भी कुछ गांवों में इसका अभ्यास जारी है। कोर्ट ने आगे कहा, ये नियम पुरुषों ने अपनी सुविधा के लिए बनाए हैं। यह वास्तव में एक महिला को अपमानित करता है क्योंकि उसने अपने पति को खो दिया है। पीठ ने कहा, एक महिला की अपनी स्वतंत्र पहचान होती है और उसे उसकी वैवाहिक स्थिति के आधार पर किसी भी तरह से कमतर या छीना नहीं जा सकता है। याचिका में शामिल दूसरे पक्ष को संबोधित करते हुए अदालत ने कहा, याचिकाकर्ता और उसके बेटे को उत्सव में शामिल होने और भगवान की पूजा करने से रोकने का इन्हें कोई अधिकार नहीं है।

इसके बाद कोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता को मंदिर में प्रवेश से रोकने वालों को साफ-साफ सूचित करें कि वे उसे और उसके बेटे को मंदिर में प्रवेश करने से नहीं रोकेंगे। अगर ऐसा होता है तो पुलिस उनके खिलाफ सख्त एक्शन ले। कोर्ट ने कहा, पुलिस ये सुनिश्चित करे कि महिला याचिकाकर्ता और उसका बेटा 9 और 10 अगस्त को मंदिर के उत्सव में हिस्सा लें। पीठ ने कहा कानून के शासन वाले सभ्य समाज में यह कभी नहीं चल सकता। यदि किसी के द्वारा किसी विधवा को मंदिर में प्रवेश करने से रोकने का ऐसा प्रयास किया जाता है, तो उनके खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई की जानी चाहिए। 

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