सुखाड़ का जायजा लेने गए प्रधानमंत्री आदिवासियों के गांव में भटक गए रास्ता, रात उन्हीं लोगों के बीच गुजारने का लिया फैसला...स्थिति देख रो पड़े... पढ़िए पूरी रिपोर्ट....

पटना-     राष्ट्रकवि दिनकर की दर्द उकेरती इन पंक्तियों पर जरा गौर कीजिए- 

 रेशमी कलम से भाग्य–लेख लिखने वाले,तुम भी अभाव से कभी ग्रस्त हो रोए हो?

बीमार किसी बच्चे की दवा जुटाने में, तुम भी क्या घर भर पेट बाँधकर सोये हो?

असहाय किसानों की किस्मत को खेतों में,क्या अनायास जल में बह जाते देखा है?

‘क्या खायेंगे?’ यह सोच निराशा से पागल,बेचारों को नीरव रह जाते देखा है?

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दिनकर की ये पंक्तियां सत्ता के चरित्र पर चोट करते हुए सियासतदानों से तीखे सवालों के साथ साथ दो दो हाथ करने पर आमदा है. आजादी मिलने कई दशक बाद भी स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, पानी, मकान यहां तक की रोटी के लिए संघर्ष करने वाली एक बड़ी आबादी बेतहासा दर्द के साथ आज भी ग्रामीण इलाकों में जीवन जीने को मजबूर है. इन्हीं सवालों से आज से करीब चार दशक पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री को रुबरु होना पड़ा था. इसके बाद जो हुआ वह राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना था. 

 प्रधानमंत्री दो किलोमीटर तक कीचड़ से सनी सड़क पर पैदल चले 

 बात 1985 की राजीव गांधी का आदिवासी क्षेत्रों में दौरा. राजीव गांधी राजस्थान के डूंगरपुर धनोला में आदिवासी वस्तियों का जायजा लेने पहुंचे थे. इस दौरे में राजीव ने दो किलोमीटर तक कीचड़ से सनी सड़क पर पैदल चले थे. बिना सुरक्षाकर्मी के पूरे आदिवासी क्षेत्र का दौरा किया. आदिवासियों की दुर्दशा को अपनी आंख से देखा . वहां की बदइंतजामी से वे  काफी खफा हुए और नाराज राजीव ने  राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी को हटवा दिया .इस यात्रा में उनकी पत्नी सोनिया गांधी उनके साथ थीं.

साल 1987, प्रधानमंत्री राजीव गांधी, देश के 21 राज्य सुखे की चपेट में, सबसे खराब हालत राजस्थान की थी. प्रधानमंत्री राजीव गांधी राजस्थान के सुखाड़ की  भयावह तस्वीर को अपने आंख से देखना चाहते थे. वे आदिवासियों के स्थिति का जायजा लेना चाहते थे.सोनिया और गुलाम नबी आजाद के साथ उदयपुर के आदिवासी बाहुल इलाके में पहुंच गए.तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उदयपुर के आदिवासी इलाके में रात गुजारने का फैसला किया.वे पूरी रात एक घर से दूसरे घर, दूसरे से तीसरे घर ,एक गांव से दूसरे गांव में घूमते रहे, आदिवासियों के दुख दर्द को महसूस करते रहे थे.प्रधानमंत्री राजीव गांधी के आदिवासी क्षेत्रों का दौरा उस वक्त राजनीतिक कुनबे काफी चर्चा का विषय बनी थी.

नौकरशाही को लेकर अलग सोच थी राजीव की

  बाहैसियत प्रधानमंत्री जब वे उदयपुर के दौरे से लौटे तो 1987 में भीषण सूखे से निपटने के लिए और आदिवासियों के लिए विशेष पैकेज की घोषणा करते हुए एक आपातकालीन समिति बनाई,जिसके वे खुद अध्यक्ष बने. सूखाग्रस्त इलाकों की निगरानी और राहत पहुंचाने के लिए  ड़ेढ़ अरब करोड़ के खाद्य वितरण और ग्रामीण रोजगार योजना की घोषणा हुई. प्रधानमंत्री राजीव गांधी खुद इसकी मॉनिटरिंग कर रहे थे.

सत्ता के दलाल" शब्द का प्रयोग किया था राजीव ने

नौकरशाही में बैठे कुछ लोग इस योजना में अड़ंगा डाल सकते थे ,इसकी चिंता राजीव को थी. 1985 में राजीव गांधी ने लाल किले से "सत्ता के दलाल" शब्द का प्रयोग किया था. उन्हें पता था कि नौकरशाही में बैठे कुछ लोग अड़चन डाल कर योजना बाधित कर सकते है,इसलिए इसकी मॉनिटरिंग वे खुद कर रहे थे.

सबसे कम उम्र में पीएम बने थे राजीव

बता दें राजीव गांधी को सबसे कम उम्र में विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के प्रधानमंत्री बनने का गौरव हासिल हैं. वह 40 वर्ष की आयु में ही प्रधानमंत्री बन गए. राजीव गांधी  भारत के 7 वे प्रधानमंत्री थे.