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प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने सुना दिया फैसला, केंद्र सरकार की दलीलों को ख़ारिज किया

प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने सुना दिया फैसला, केंद्र सरकार की दलीलों को ख़ारिज किया

दिल्ली. सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को प्रमोशन में आरक्षण देने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालत ने अपने पहले के फैसलों में जो आरक्षण के जो पैमाने तय किए हैं उसमें छेड़छाड़ नहीं कर सकते हैं. जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मामले की सुनवाई की. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान राज्यों को आंकड़े जुटाने का आदेश दिया है कि राज्य सरकारें देखें कि सम्बन्धित पदों पर आरक्षित श्रेणी के लोगों का उचित प्रतिनिधित्व है या नहीं. कोर्ट ने कहा कि एससी/एसटी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण दिए जाने से पहले राज्यों को डेटा इकट्ठा करना चाहिए. मामले की अगली सुनवाई 24 फरवरी को होगी.

कोर्ट ने आगे कहा कि पीठ के फैसले के बाद आरक्षण के लिए नया पैमाना नहीं बनाया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 26 अक्टूबर 2021 को फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के वकील ने दलील देते हुए कहा था कि ये भी एक सच्चाई है कि आज़ादी के 75 सालों बाद भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को अगड़ी जातियों के समान योग्यता के स्तर पर नहीं लाया जा सका है.

केंद्र के वकील ने दलील देते हुए कहा था कि एससी और एसटी समुदाय से आने वाले लोगों के लिए समूह ए श्रेणी की नौकरियों में उच्च पद प्राप्त करना ज़्यादा मुश्किल है लिहाज़ा अब वक्त आ गया है जब सर्वोच्च अदालत रिक्तियों को भरने के लिए एससी, एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग से आने वाले लोगों के लिए कुछ ठोस आधार दे.


सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए साल 2006 में आये संविधान पीठ के फैसले के बाद सरकार प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता का पता लगाने के लिए क्या कदम उठाए हैं. फैसला सुरक्षित रखते हुए कोर्ट ने कहा था कि अदालत सिर्फ इस मुद्दे पर फैसला करेगा कि आरक्षण अनुपात पर्याप्त प्रतिनिधित्व के आधार पर होना चाहिए या नही.

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने याचिका दायर कर पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित मामलों पर तत्काल सुनवाई की मांग की थी. याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले की वजह से देश भर में लाखों पदों पर नियुक्तियां रुकी हुई हैं. सुनवाई के दौरान राज्यों की तरफ से कहा गया कि केंद्र सरकार के स्तर पर नियमित पदों के लिए पदोन्नति हुई थी, लेकिन देश भर में आरक्षित पदों पर पदोन्नति 2017 से अटकी हुई है.

प्रमोशन में आरक्षण को ऐसे समझें. दरअसल आंकड़ों से पता चलता है कि केंद्र और राज्य की समूह ए श्रेणी की सरकारी नौकरियों में संबंधित श्रेणियों का प्रतिनिधित्व कम है. यह उचित नहीं है कि इसमें सुधार करने के बजाय समूह बी और सी में पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा रहा है. पीठ ने यह टिप्पणी केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बलबीर सिंह के आंकड़ों का हवाला दिए जाने के बाद की थी. कोर्ट ने कहा था कि समूह ए श्रेणी में प्रमोशन में आरक्षण का मतलब सिर्फ यही है जो कर्मी समूह ए में कार्यरत हैं उन्हें ही पदोन्नति दिया जा सकता है. न कि समूह बी और सी श्रेणी के कर्मी को समूह ए वर्ग में प्रमोशन दे दिया जाए. इससे कार्य दक्षता भी प्रभावित होगा. 



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