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उधार के डीजल से काम चला रहे हैं सूबे के अंचलाधिकारी, नियमित भुगतान नहीं होने से पेट्रोल पंप पर करना पड़ रहा है शर्मिंदगी का सामना

 उधार के डीजल से काम चला रहे हैं सूबे के अंचलाधिकारी, नियमित भुगतान नहीं होने से पेट्रोल पंप पर करना पड़ रहा है शर्मिंदगी का सामना

PATNA : एक तरफ बिहार के माननियों के लिए 30 लाख रुपए तक की गाड़ी खरीदने के लिए सरकार की तरफ से अनुमति प्रदान की जाती है, वहीं दूसरी तरफ बिहार के प्रशासनिक सेवाओं में कार्यरत अंचलाधिकारियों को डीजल खरीदने के लिए फंड उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है। स्थिति यह है कि बिहार मे अधिकांश जिलों में काम करनेवाले अंचलाधिकारी उधार के डीजल से काम चला रहे हैं या  उन्होंने सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल करना बंद कर दिया है। 

हाल में ही सारण जिले के एक सीओ को पेट्रोल पंप से सीओ की सरकारी गाड़ी में डीजल देने पर रोक लगा दी गई थी। बताया गया कि एक साल से भी ज्यादा समय से विभाग की तरफ से डीजल के पैसों का भुगतान अनियमित है। जिसके बाद सीओ ने सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल बंद कर दिया है और वह नीजि गाड़ी से क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं।

बताया गया कि यह स्थिति सिर्फ सारण के सीओ की नहीं है। कई जिलों में यही हाल है। बताया गया कि राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग जिलों को इस मद का आवंटन भेज देता है। यह जिले की मर्जी है कि अंचलों को समय पर रुपया दे या न दे। कई अंचलों में साल भर से ईंधन मद में भुगतान नहीं हुआ है।  अधिकारी अपनी नौकरी बचाने की कोशिश में डीजल मद के पैसों की मांग नहीं करते हैं, वहीं जिला प्रशासन अपने हिसाब से कभी 10 हजार और कभी 12 हजार रुपए भेज देते हैं।

पुरानी गाड़ी के कारण डीजल की खपत अधिक

बिहार में सीओ को सरकार की तरफ से सरकारी गाड़ी के तौर पर टाटा सूमो उपलब्ध कराया जाता है, जो ज्यादातर पुराने मॉडल के हैं, जिनमें डीजल की खपत अधिक होती है। गाड़ी के रख रखाव का खर्च भी सीओ को खुद उठाना पड़ता है। आम तौर पर यह काम कर्मचारियों के माथे पर रहता है। वहीं अधिकारियों को दिन भर में इलाके मे कई जगहों का दौरा करना होता है, जिसमें तेल की खपत अधिक होती है।

स्थायी ड्राइवर भी नहीं, दैनिक भत्ता पर करते हैं काम

अधिकांश सीओ के पास सरकारी गाड़ी के लिए सरकार की तरफ से ड्राइवर भी मुहैय्या नहीं कराया गया है। वहींअवकाश ग्रहण करने वाले अंचलों में नियमित ड्राइवरों की नियुक्ति नहीं हो रही है। फिलहाल दो सौ से अधिक अंचलों में दैनिक मजदूरी पर ड्राइवर काम करते हैं। इन्हें महीने में 26 दिन का भुगतान किया जाता है। कुशल मजदूरों के लिए तय प्रतिदिन चार सौ एक रुपये की दर से महीने में साढ़े 10 हजार के करीब भुगतान मिलता है। ड्राइवरों के वेतन मद की राशि भी अनियमित है।

हर माह 25 हजार के डीजल की खपत 

सीओ का मूल काम भू राजस्व प्रबंधन का है। कार्य दिवस के हिसाब से हर महीने कम से कम 25 हजार रुपया का खर्च है।उन्हें विवादों के निबटारे के लिए लगातार क्षेत्र भ्रमण करना होता है। म्यूटेशन, दखल देहानी, अतिक्रमण मुक्ति अभियान, पर्चे वाली जमीन पर पर्चाधारी को कब्जा दिलाने जैसे कार्यों के लिए उन्हें रोज कहीं न कहीं निकलना पड़ता है। इसके अलावा विधि व्यवस्था की भी जिम्मेवारी संभालनी होती है। जिसमें हर दिन रोज आठ से 10 लीटर डीजल की जरूरत पड़ती है। जबकि कई सालों से डीजल के पुराने दर के आधार पर ही पेमेंट की व्यवस्था है।

विभाग के मंत्री इस अव्यवस्था से अंजान

मामले में जब राजस्व एंव भूमि सुधार विभाग के मंत्री राम सूरत राय से पूछा गया तो उन्होंने इस समस्या से खुद को अंजान बताया। उनका कहना था कि यह गंभीर विषय है, लेकिन अबतक मेरे संज्ञान में नहीं आया है। हम कोशिश करेंगे कि ईंधन मद में मिलने वाली राशि का हर महीने भुगतान हो। सीओ अपने क्षेत्र में भ्रमण नहीं करेंगे तो सरकारी काम कैसे होगा।



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