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नीतीश का यह बड़ा सियासी एक्शन बता रहा है की बिहार की सियासत में समीकरण बदलने वाला है! पढ़िए इनसाइड स्टोरी..जानिए सच्चाई

नीतीश का यह बड़ा सियासी एक्शन बता रहा है की बिहार की सियासत में समीकरण बदलने वाला है! पढ़िए इनसाइड स्टोरी..जानिए सच्चाई

डेस्क- पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों का परिणाम 3 दिसम्बर को आ जाएगा तो लोकसभा चुनाव की रणभेरी भी बजने हीं वाली है. इन सबके बीच बिहार में राजनीतिक तापमान बढ़ा हुआ है और स्वाभाविक तौर पर इसके केंद्र में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हीं हैं. वैसे भी राजनीति में कहा जाता हैकि कोई स्थायी दोस्त और दुश्मन नहीं होता है. अब नीतीश लालू की दोस्ती को हीं देखिए.. छात्र आंदोलन के साथी लालू -नीतीश ..सियासत में साथ बढ़े लेकिन फिर एक दूसरे कट्टर दुश्मन बन गए.. पलट, पलट कर देश की सियासी तस्वीर बदलते रहे..इसमें दोस्ती, दुश्मनी का फुल ट्विस्ट और ड्रामा रहा है.

जब राजनीति के सीनियर ने अपने जूनियर को दी थी पटखनी

पटना यूनिवर्सिटी में लालू खुद को नीतीश का सीनियर मानते रहे. इमरजेंसी के बाद एक्टिव पॉलिटिक्स में भी वो उनके सीनियर बन गए. हालांकि दोनों की दोस्ती अब थोड़ी बढ़ गई थी. इमरजेंसी विरोधी लहर में साल 1977 में लालू यादव छपरा से चुनाव लड़े और जीते. इस कैंपेन में नीतीश कुमार समेत कई दोस्त नीतीश के साथ थे.लालू यादव लोकप्रियता के शिखर पर बढ़ते जा रहे थे. बिहार की जातीय राजनीति पर उनकी पकड़ बढ़ गई थी. नीतीश कुमार भी अब तक अपनी कोइरी-कुर्मी वोट बैंक के साथ धीरे धीरे जाति के नेता बन गए थे. 1989 का बाढ़ लोकसभा चुनाव जीतकर नीतीश ने भी धमाका कर दिया था. वो केंद्र में मंत्री भी बन गए.बिहार में लालू सरकार में नीतीश के पुराने सहयोगियों की कुछ चल नहीं रही थी. ठेकेदारी हो या दूसरे मलाईदार विभाग, सब पर लालू के राजदारों का कब्जा हो गया था. लालू और नीतीश में दूरी आने लगी थी. कटुता के ऐसे ही माहौल में एक बार फिर नीतीश कुमार ने अपने दोस्त के साथ करीब होने की कोशिश की. बिहार भवन में लालू यादव से मिलने नीतीश कुमार लल्लन सिंह के साथ पहुंचे. वहां पर बैठक में क्या बात हुई ये तो किसी को पता नहीं लेकिन लालू ने लल्लन सिंह को उठाकर फेंकने के लिए अपने बॉडी गार्ड्स को कह दिया. बात संभाली गई और फिर नीतीश वहां से निकल गए.कभी पक्के यार रहे नीतीश और लालू के रास्ते इतने दूर हो जाएंगे इसका अंदाजा किसी को नहीं था. नीतीश और लालू में बातचीत बंद हो गई. नौबत ये आ गई कि १९९२ में नीतीश अपनी बात कहने के लिए लालू को चिट्टी लिखने के लिए मजबूर हो गए. अब नीतीश लालू का रास्ता अलग हो गया.. नीतीश और लालू अलग हो गए, नीतीश ने जॉर्ज फर्नाडिंस के साथ मिलकर लालू को उखाड़ने के लिए समता पार्टी बनाई और सभी सीटों पर 1995 में लालू से भिड़े..लेकिन यहां राजनीति के सीनियर लालू ने नीतीश को जबरदस्त पटखनी दे दी. 1995 की इस हार के बाद नीतीश को अपने दोस्त को हराने में दस साल का लंबा वक्त लग गया.

नीतीश ने तोड़ा था लालू के सत्ता का नशा

साल 2000 में 7 दिनों के मुख्यमंत्री बनने और फिर हटने से नीतीश को अपनी गलती का अहसास हो गया... लेकिन तब उनको समझ गया था कि संघर्ष, संघर्ष और संघर्ष ही लालू को बिहार से उखाड़ने का उपाय है. इसलिए उन्होंने फिर बिहार में खूंटा गाड़कर राजनीति करने की बात कही. फिर बीजपी के साथ दोस्ती करके नीतीश ने साल 2005 में अपने दोस्त लालू का सत्ता का नशा तोड़ दिया. अब जवानी में दोस्ती, छोटा- बड़ा भाई अपने मिडिल एज तक एक दूसरे के दुश्मन बन गए. नीतीश ने 2005 में सत्ता संभाली तो पीछे मुड़ कर नहीं देखा. दोस्त बदलते रहे लेकिन बिहार की सत्ता पर नीतीश ही काबिज रहे.

भाजपा ने नीतीश की राहें हुईं जुदा

नरेंद्र मोदी का जब देश की राजनीति में उभार हुआ तो सेकुलर छवि वाले नीतीश कुमार ने एक बार खुद को बीजेपी से अलग कर लिया. लेकिन वो जानते थे कि जमीनी हकीकत उनके पक्ष में नहीं है. बिहार में अंकगणित और जातीय गणित में उनको वैशाखी चाहिए. बीजेपी को छोड़ने के बाद फिर से टीम बदल ली. पुराने दोस्त लालू काम आए. वो खुद लालू के घर गए और महागठबंधन की बात बन गई. लालू ने दिल बड़ा करते हुए अपने छोटे भाई को कैप्टन बना दिया. नीतीश के पेट में दांत है कहने वाले लालू ने कहा नीतीश मेरा छोटा भाई है और अगर वो मेरी गोद में मूत भी देगा तो मैं क्या करूंगा. दोस्ती फिर से परवान चढ़ी.

ये कहानी फिर पलट गई है. अब एक बार फिर लालू-नीतीश साथ हैं. इस बार ट्रिगर बना बीजेपी का कथित ऑपरेशन लोटस और महाराष्ट्र कांड. वजूद बचाने के लिए नीतीश कुमार ने लालू के साथ हाथ मिलाकर गठबंधन किया है. नीतीश ने अपने लिए एक बात कही थी ..हुक और क्रूक सत्ता प्राप्त करूंगा लेकिन सत्ता मिलने के बाद जनता के कल्याण में काम करूंगा. नीतीश कुमार किसी का उधार नहीं रखते. 

क्या नीतीश की राह फिर होगी जुदा

अब फिर नीतीश के लालू से रास्ता अलग होने के संकेत राजनीतिक पंडितों के अनुसार मिलने लगा है. इसके कारण भी स्पष्ट रुप से दिख रहे हैं. नीतीश करीब करीब हर कार्यक्रम में राजद को बताने से नही चूकते कि 2005 के पहले बिहार की स्थिति बदतर थी. कई बार तो सीएम ने तेजस्वी और राजद कोटे के मंत्रियों के सामने हीं लालू शासन की याद दिलाते हुए अपने कार्यों को बताया.

हमारा दोस्ती कहियो खत्म होगा?-नीतीश

मोतिहारी में केंद्रीय विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में शामिल होने पहुंचे थे. यहां सीएम नीतीश कुमार ने कहा है कि उनकी और बीजेपी की दोस्ती कभी खत्म नहीं होगी. नीतीश जिस कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे थे, वहां राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर भी मौजूद थे. इसके अलावा कार्यक्रम में कई बीजेपी नेता भी शामिल थे. दीक्षांत समारोह के दौरान जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भाषण देने की बारी आई तो उन्होंने कहा,'जितने लोग हमारे हैं, सब साथी हैं.सीएम नीतीश यहीं नहीं रुके, उन्होंने कहा, छोड़िए ना भाई. हम अलग हैं आप अलग हैं. इसको छोड़ दीजिए. इससे क्या मतलब है. हमारा दोस्ती कहियो खत्म होगा? . चिंता मत कीजिए, जब तक जीवित रहेंगे, तब तक आप लोगों (BJP) से संबंध बना रहेगा. हम सब मिलकर काम करेंगे. यह बात उन्होंने राष्ट्रपति, राज्यपाल को देखते हुए और बीजेपी नेताओं की तरफ इशारा करते हुए कही.

जब बीजेपी नेता संजय मयूख के घर पहुंचे सीएम

चैती छठ के मौके पर बीजेपी नेता संजय मयूख के घर खरना खाने का आयोजन था. सीएम नीतीश भाजपा नेता संजय मयूख के घर खरना का प्रसाद खाने पहुंच गए थे. खरना चार दिन के चलने वाले चैती छठ पर्व का दूसरा दिन होता है, खरना के प्रसाद का महत्व इसलिए है, क्योंकि यह अधिक से अधिक लोगों में बांटने की कोशिश होती है और जो भी ये प्रसाद खा लेता है, ऐसा मानते हैं कि उससे कोई बैर नहीं रहा, वह अपनी ही जमात का आदमी हुआ. तो क्या उस दिन खरना के बहाने अपनी दोस्ती ही गाढ़ी करने पहुंचे थे.

पीएम -नीतीश मुलाकात  

सितंबर में देश में जी20 समिट आयोजित की गई थी. इसमें राज्यों के मुख्यमंत्री भी आमंत्रित थे. जाहिर है सीएम नीतीश कुमार भी इसमें शामिल हुए, लेकिन इसी दौरान आई एक फोटो ने हालात बदल दिए, जज्बात बदल दिए. दरअसल एक तस्वीर में दिख रहा है कि पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार बहुत ही हंसते हुए प्रेम से मिल रहे हैं. इस तस्वीर ने याद दिला दिया साल 2017, जब पीएम मोदी के साथ नीतीश कुमार की ऐसी ही एक मुलाकात हुई और नीतीश कुमार महागठबंधन छोड़कर एनडीए में शामिल हो गए. बिना कुछ बोले एक तस्वीर ने अफवाहें फैलवा दीं.

इंडी गठबंधन के नाम को लेकर नीतीश की आपत्ति

नीतीश कुमार ने INDIA नाम पर कड़ा ऐतराज जताया था. उन्होंने कहा कि इस नाम का क्या मतलब है? माना जा रहा है कि नीतीश की आपत्ति अंग्रेजी में नाम को लेकर थी. इतना ही नहीं कहा ये भी जा रहा है कि कांग्रेस की ओर से गठबंधन के नाम पर भी कोई चर्चा नहीं की गई, ऐसे में नीतीश इससे भी परेशान हैं. जानकारों की मानें तो सभी विपक्षी दलों को एकजुट करने में नीतीश कुमार की अभी तक अहम भूमिका रही है. लेकिन कांग्रेस ने जिस तरह से गठबंधन को हाईजैक किया, उससे जदयू और आरजेडी नेताओं में नाराजगी है. इतना ही नहीं नीतीश कुमार, लालू यादव और तेजस्वी यादव बैठक के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी शामिल नहीं हुए. 

भड़के नीतीश को तेजस्वी ने कराया शांत

10 जुलाई जब नीतीश कुमार महागठबंधन विधानमंडल दल की बैठक में नाराज हो गए थे. बैठक में नीतीश कुमार आरजेडी MLC सुनील सिंह पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ फोटो खिंचाने पर भड़क गए थे. सूत्रों के मुताबिक, नीतीश के आरोपों पर सुनील सिंह भड़क गए और उठ कर जवाब देने लगे. हालात इतने बिगड़ गए कि डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव को बीच-बचाव करना पड़ा था. सूत्रों के मुताबिक, विधानमंडल दल की बैठक में नीतीश कुमार न सिर्फ आरजेडी MLC सुनील सिंह पर, बल्कि कांग्रेस और अपनी पार्टी के कुछ विधायकों पर भी नाराज दिखे.

पांच राज्यों में इंडी गठबंधन से नीतीश की राह जुदा

पांच राज्यों के हो रहे चुनाव के दौरान एमपी में कांग्रेस के विरुद्ध उम्मीदवार खड़ा कर नाराजगी का संकेत दिया. इसी दौरान नीतीश कुमार ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि I.N.D.I.A के प्रति कांग्रेस का रवैया उदासीन है. कांग्रेस का सारा ध्यान पांच राज्यों के चुनाव पर केंद्रित है. इस बयान के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन ने नीतीश कुमार से बात की और दूसरे ही दिन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ अखिलेश प्रसाद सिंह ने रूखा बयान दिया कि वे चाहते हैं कि तुरंत मोदी को हटा दिया जाए. राजनीत में इतना जल्दी कुछ थोड़े होता है.

डॉ श्रीकृष्ण सिंह की जयंती समारोह में जाने से नीतीश का परहेज

इन दिनों राजद सुप्रीमो लालू यादव की नजदीकियां कांग्रेस से बढ़ी है. लालू यादव ने डॉ श्रीकृष्ण सिंह की जयंती समारोह में कांग्रेस कार्यालय जाते हैं, वहीं नीतीश कुमार परहेज करते दिखते हैं. दूसरी ओर नीतीश कुमार वाम दल के सम्मेलन में जाते हैं और वहां लालू प्रसाद नहीं जाते हैं.

कुशवाहा की चुप्पी का राज 

विधानसभा में जनगणना को लेकर और जीतनराम मांझी को लेकर आए बयान पर लगभग दलों ने आलोचना की पर रालोजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा जो अक्सर नीतीश कुमार पर कुछ ज्यादा आक्रामक रहते हैं, वे इस मुद्दे पर एक ट्वीट कर चुप बैठ गए.

लालू के राज पर तंज कसते सीएम

नीतीश कुमार जिस सरकारी कार्यक्रम या किसी सभा में जाते हैं तो वे किसी न किसी बहाने वर्ष 2005 के पहले की चर्चा कर पूछते हैं कि तब कुछ था. ये तो हम आए और विकास का कितना काम किया. लोग भूलने लगे हैं. उन्हें याद कराते रहिए.2017 जैसी स्थिति हैं बिहार में, जब नीतीश ने महागठबंधन से अलग होने का फैसला लिया था. तब आईआरसीटीसी घोटाले में तेजस्वी का नाम उछला था और अंतरात्मा की आवाज पर सुशासन बाबू ने अपनी राहें आरजेडी से अलग कर ली थीं. अब तो एक घोटाले में सप्लीमेंट्री चार्जशीट तक दायर हो चुकी है. लैंड फॉर जॉब स्कैम लालू परिवार पूरी तरह फंसा हुआ है.ऐसे में जेडीयू और आरजेडी गठबंधन के भविष्य को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं.

सियासत में दोस्ती-दुश्मनी कभी स्थायी नहीं रहती. सीएम नीतीश कुमार के रुख को देखकर तो यह असल में साबित होता है. कल के धुर विरोधी आज बेहद कट्टर समर्थक हो सकते हैं. नीतीश कुमार ने कई बार ऐसे कदम उठाए हैं जो हर बार ये संकेत देने वाले रहे हैं कि बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव होने वाला है.बहरहाल लालू-नीतीश की दोस्ती के इस चैप्टर की असली राजनीति जल्दी हीं पता चलेगी.

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