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हार का शतक बनाना चाहता है यह उम्मीदवार, 39 साल में 98 बार झेल चुका चुनाव में शिकस्त

हार का शतक बनाना चाहता है यह उम्मीदवार, 39 साल में 98 बार झेल चुका चुनाव में शिकस्त

DESK : चुनाव का मौसम आते ही तमाम नेता टाइप के लोग सक्रिय हो जाते हैं और इनमें से कुछ चुनाव में खड़े होकर अपनी किस्मत भी आजमाते हैं। हालांकि ज्यादातर को चुनाव में हार का सामना ही करना पड़ता है। लेकिन फिर भी वह हार नहीं मानते हैं। ऐसे ही एक शख्स हैं आगरा के रहनेवाले  79 साल के हसनुराम अंबेडकरी (Hasnuram Ambedkari )। जो इन दिनों चर्चा का विषय बने हुए हैं, क्योंकि उन्होंने अपना 99वां चुनाव लड़ने का फैसला किया है,जो एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। 

98 बार हार चुके हैं चुनाव

हसनुराम अंबेडकरी 1985 के बाद से अपने 98 प्रयासों में हार का सामना करने के बावजूद चुनावी अखाड़े में अपनी किस्मत आजमाना जारी रखा है. इस बार उन्हें फ़तेहपुर सीकरी से शतक के करीब पहुंचने की उम्मीद थी। हालांकि भाग्य ने उन्हें करारा झटका दिया क्योंकि फ़तेहपुर सीकरी से उनका नामांकन खारिज कर दिया गया।

चुनाव लड़ने के उनके जुनून का स्वीकार करते हुए अंबेडकरी का परिवार उनके दृढ़ संकल्प का सम्मान करता है और उनके लक्ष्य के साथ खड़ा है. एक क्लर्क और एक मनरेगा कार्यकर्ता के रूप में काम करने के बाद अंबेडकरी अपने चुनावी अभियानों का वित्तपोषण पूरी तरह से अपने संसाधनों से करते हैं.

नहीं लेते किसी से समर्थन

उन्होंने बताया कि चुनाव लड़ना मेरा जुनून है और मैं इसका खर्च अपने आप पूरा करता हूं. मैं किसी से वित्तीय सहायता या समर्थन नहीं मांगता. मुझे पता है कि मैं जीत नहीं पाऊंगा, लेकिन हार की सोच मुझे चुनाव लड़ने से नहीं रोक सकती. उन्हें ये पता है कि समय उनके पक्ष में नहीं है.. लेकिन अंबेडकरी चुनाव लड़ने और अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। उन्होंने आत्मविश्वास के साथ कहा, "मैं शतक बनाने के लिए प्रतिबद्ध हूं और मैं यह भी जानता हूं कि मेरी उम्र बढ़ रही है. मैं दुनिया से जाने से पहले अपना लक्ष्य हासिल कर लूंगा." 

विधानसभा-लोकसभा से लेकर ग्राम पंचायत तक के चुनाव लड़ चुके हैं हसनुराम

खैरागढ़ ब्लॉक के गांव नगला दूल्हे खां निवासी हसनुराम ने बताया कि वे 1985 से चुनाव लड़ रहे हैं जिसमें विधानसभा, लोकसभा, एमएलसी, जिला पंचायत, ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत, ब्लॉक प्रमुख, नगर पंचायत, प्रधान, क्रय विक्रय, पार्षद के पद शामिल हैं। उन्होंने बताया कि वे तहसील में अमीन थे। उनकी चुनाव लड़ने की इच्छा हुई तो उन्होंने एक पार्टी से टिकट मांगा। हसनुराम ने बताया कि टिकट तो मिला नहीं लेकिन वहां उनका मजाक उड़ाया गया कि घर से भी कोई वोट नहीं देगा। इसके बाद वे 1985 से चुनाव की तैयारियों में जुट गए और हर चुनाव को लड़ते आ रहे हैं। इतना ही नहीं, हसनुराम ने राष्ट्रपति पद के लिए भी नामांकन किया था लेकिन पर्चा निरस्त हो गया था।

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