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टीएन शेषण : वह मुख्य चुनाव आयुक्त जिसने बदल डाली थी बिहार-यूपी चुनाव की रुप-रेखा

टीएन शेषण : वह मुख्य चुनाव आयुक्त जिसने बदल डाली थी बिहार-यूपी चुनाव की रुप-रेखा

NEWS4NATION DESK : पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषण का 10 नवंबर रविवार की रात चेन्नई में निधन हो गया। भारत और खासकर बिहार-यूपी में चुनाव सुधारों के लिए अगर सबसे पहला कोई नाम याद किया जाएगा तो वो टीएन शेषन ही होंगे।  

बिहार और यूपी में चुनाव के दौरान आम लोग बूथों पर अपने मताधिकार का प्रयोग करने जाने से पहले सौ दफा सोचा करते थे। आलम यह था कि लोकतंत्र के महापर्व के दिन लोग घरों से बाहर निकलने में असुरक्षित महसूस करते थे। लोगों के वोट बाहुबली नेता या पार्टी की ओर से डाला दिया जाता था। लोगों को मतदान केन्द्र तक पहुंचने भी नही दिया जाता था। बूथों पर मारपीट, गोलीबारी और बूथ लूट की घटना आम बात थी। 

90 के दशक में टीएन शेषण के मुख्य चुनाव आयुक्त बनते ही पुरानी रुपरेखा पूरी तरह से बदल गई। शेषण के आयुक्त काल में दशकों बाद ऐसा दौर आया जब लोग अपने-अपने घरों से निकलकर मतदान केन्द्र तक पहुंचे और मताधिकार का प्रयोग किया। 

खासकर उनके मुख्य चुनाव आयुक्त रहते बिहार और यूपी में चुनाव के दौरान होने वाली धांधलियों और हिंसा पर पूरी तरह से रोक लगी। शेषण के कार्यकाल में चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश और बिहार के बॉर्डर पर तैनात नागालैंड पुलिस ने पप्पू यादव को सीमा पार नहीं करने नहीं दिया था।  

मतदान के लिए पहचान पत्र का इस्तेमाल करने का आदेश भी टीएन शेषन ने जारी कराया था। नेताओं ने इस पर कहा था कि ये प्रयोग काफी खर्चीला है, लेकिन ऐसा न होने की स्थिति में शेषन चुनाव करवाने से इनकार कर दिया था।

1996 में टीएन शेषन को दुनिया के प्रतिष्ठित रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था।

चुनाव के दौरान प्रत्याशियों के खर्च पर लगाम लगाना हो या सरकारी हेलीकॉप्टर से चुनाव प्रचार करने पर पाबंदी. ऐसे आदेश शेषन ने अपने कार्यकाल में दिए थे. जो मील के पत्थर साबित हुए।

शेषन देश के 10वें चुनाव आयुक्त थे। उनके मुख्य चुनाव आयुक्त बनने को लेकर बड़ी ही दिलचस्प कहानी है। बताया जाता है कि दिसंबर 1990 की रात करीब 1 बजे तत्कालीन केंद्रीय मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी शेषन के घर पहुंचे और उनसे पूछा कि क्या आप अगला मुख्य चुनाव आयुक्त बनना पसंद करेंगे? लेकिन वो नहीं माने।  करीब 2 घंटे तक स्वामी उन्हें मनाते रहे पर राजीव गांधी से मिलने के बाद ही शेषन ने इस पद के लिए अपनी सहमति दी थी। 

टीएन शेषन की सख्ती और कर्तव्यनिष्ठा का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि 90 के दौर में मजाक चलता था कि भारतीय राजनेता खुदा से डरते हैं या शेषन से डरते हैं।

शेषन से जुड़ा एक बार का किस्सा काफी मशहूर है कि जब उनसे नाश्ते के लिए पूछा गया तो उनका जवाब था कि आई ईट पॉलिटीशियंस फॉर ब्रेक फास्ट...

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