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वीर गाथा: कुत्तों की मौत मारो इंडियन लोगों को..इतना सुनते ही बिहार के एक नौजवान ने अंग्रेज अफसर को गोलियों से उड़ा दिया, उसका नाम था........

वीर गाथा: कुत्तों की मौत मारो इंडियन लोगों को..इतना सुनते ही बिहार के एक नौजवान ने अंग्रेज अफसर को गोलियों से उड़ा दिया, उसका नाम था........

PATNA: जो भरा नही है भावों से, जिसमें बहती रसधार नहीं! वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं...जी हां आजादी से पहले और आजादी के बाद स्वदेश से प्रेम करने वाले वीरों की गाथा से इतिहास की इबारत नतमस्तक है। स्वदेश से प्यार रखने वाले एक ऐसे ही शेर मर्द थे वारिस अली। जिन्होंने अपनी हिम्मत की कलम से इतिहास के कलेजे पर एक ऐसी इबारत लिखी जिसकी चमक आज भी बरकरार है।

जाबांज वारिस अली ने पलक झपकते अंग्रेज अफसर को उड़ा दिया

अमर शहीद वारिस अली की कुर्बानी की गाथा से भारत की नई पीढ़ी भले ही अनभिज्ञ हो, लेकिन देश प्रीति के अन्यतम वीर उदबोधक वारिस अली को इतिहास भला कैसे भूल जाएगा? यह वीर गाथा 1857 में एक नौजवान जमादार की हिम्मत की स्याही से लिखी गयी थी।

घटनाक्रम कुछ इस प्रकार है, तिरहुत के अंग्रेज सार्जेंट मेजर जे .जी होम ने एक सुबह उत्तर बिहार के प्रमुख शहर मुजफ्फरपुर के चक्कर मैदान में एकत्रित तकरीबन 200 सिपाहियों से सलामी लेने के बाद अट्टहास करते हुए कहा था कि ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जो भारतीय बगावत भड़काने की जुर्रत कर रहे हैं उन्हें कुचल कर रख दिया जाएगा। जे जी होम अपना कहना जारी रखते हुए कहा था, कुचल डालो कुत्तों की मौत मारो इंडियन लोगों को जो अंग्रेज बहादुर के वास्ते इज्जत नहीं रखता . 

सार्जेंट मेजर होम ने अपनी बात खत्म भी नहीं की थी कि वहां सिपाहियों की प्रथम पंक्ति में मौजूद लगभग साढे 6 फ़ीट के कद्दावर जमादार से रहा नहीं गया ।उसने अपनी राइफल की गोलियों से जे जी होम को उसी क्षण उड़ा दिया। जे जी होम ने उसी क्षण वहां दम तोड़ दिया था। होम के दम तोड़ते हीं उस जांबाज पुलिस जमादार को अंग्रेज सिपाहियों ने हिरासत में ले लिया ।अंग्रेजों के विरुद्ध बिहार में यह प्रथम विद्रोह था।  होम की हत्या ने अंग्रेजी सल्तनत को बिहार में बुरी तरह से हतप्रभ कर दिया था। ब्रिटिश सल्तनत को हक्का बक्का कर देने वाला बहादुर पुलिस जमादार था- वारिस अली

अफगानिस्तान से आया था वीर वारिस अली का परिवार..

1795 के दिनों में अफगानिस्तान से चलकर वक्त के अनगिनत थपेड़ों को झेलते हुए वारिस के पिता शाहिद अली मुजफ्फरपुर पहुंचे थे। बाद में नवाब रसूल खान के दरबार में बतौर दरबान शाहिद नौकरी में लग गए ।1832 में बारिश अली की पैदाइश हुई थी वे तीन भाई थे।

1852 में वारिस ने दसवीं की परीक्षा पास की ।उन्हें सिपाही की नौकरी मिल गई। 1857 में विभागीय परीक्षा में कामयाब होने के बाद वे पुलिस जमादार के पद पर प्रोन्नति पा गए थे। वारिस अली यूं तो एक साधारण जमादार थे पर उन्हें यह बात हमेशा कचोटती थी कि अंग्रेज, हिंदुस्तानी सिपाहियों को आदेश देकर हिंदुस्तानियों पर ही लोम हर्षक जुल्म करवाते हैं। वारिस अली का यह आक्रोश उस दिन रंग ले आया था । उन्होंने 23 जून 1857 को मुजफ्फरपुर में सलामी के दौरान सार्जेंट मेजर जे जी होम को हमेशा के लिए ठंडा कर दिया था।

वारिस अली हिरासत में ले लिए गए थे । उनके पास से अंग्रेज अधिकारियों को एक चिट्ठी मिली थी ।यह चिट्ठी वारिस अली ने गया के अपने मित्र करीम अली को लिखी थी कि कैसे अंग्रेजों के जुल्म को खत्म किया जा सकता है ।आखिरकार 27 जून 1857 को पटना के खूंखार कमिश्नर विलियम टेलर के आदेश से वारिस अली को फांसी दे दी गई थी ।उन दिनों पटना प्रमंडल के तहत इलाहाबाद सारण तथा चंपारण सहित छह जिले थे। वारिस अली को मृत्युदंड देने के 7 दिनों के उपरांत ही हड़बड़ाए कमिश्नर टेलर ने क्रांतिकारी पीर अली को सूली पर चढ़ा दिया था........पीर अली की वीर दास्तान कल पढिये........क्रमशः.....

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