बिहार में बड़े भाई और छोटे भाई के रिश्ते को क्या बताया लालू प्रसाद यादव ने... नीतीश के साथ लकदक कुरता पायजामा में घूमते थे पीएमओ

पटना.  बिहार में बड़े भाई और छोटे भाई का रिश्ता कभी उतराव कभी चढ़ाव का रहा है. कभी एक दूसरे के खिलाफ बयान देते नजर आए तो कभी गलबाहियों की तस्वीर भी लोगों के जेहन में है. बिहार के राजनीतिक इतिहास के पन्ने लालू नीतीश के रिश्तों की चर्चा के बिना अधूरे रहेंगे. लालू प्रसाद के साथ हाथ मिलाने और हाथ झटकने की कहानी से बिहार के लोग परिचित है. 'नीतीश ने साल 2015 के चुनाव में कहा था कि वे मिट्टी में मिल जाएंगे लेकिन भाजपा से हाथ नहीं मिलाएंगे, 2017 में  नीतीश कुमार ने पलटी मार दी और अचानक बीजेपी के साथ सरकार बना ली.'

ये हम नहीं कह रहे ये लालू की आत्मकथा गोपालगंज टू रायसीना: माय पॉलिटिकल जर्नी और हिन्दी में गोपालगंज से रायसीना मेरी राजनीतिक यात्रा में लालू ने लिखा है. अपनी जीवनी में लालू ने लिखा है कि वे और नीतीश कुमार लकदक कुरता पायजामा पहनकर पीएमओ में घूमते रहते थे लेकिन किसी ने पूछा नहीं. लालू प्रसाद यादव ने बड़ी बेबाकी से अपनी किताब में नीतीश कुमार के हाथ मिलाने से लेकर गठबंधन तोड़ने तक का जिक्र किया है. वे नीतीश कुमार के खिलाफ कहीं अमर्यादित नहीं हुए है. उन्होंने लिखा है कि 2017 में नीतीश ने पलटी मार दी और अचानक बीजेपी के साथ सरकार बना ली, जिसके बारे में 2015 के चुनावों में घूमघूम कर कहा था कि वो मिट्टी में मिल जाएंगें लेकिन बीजेपी से हाथ नहीं मिलाएंगे.

वहीं लालू यादव ने अपनी किताब में धमाका करते हुए खुलासा किया है कि बीजेपी के साथ जाने के छह महीने में हीं नीतीश ने अपने करीबी प्रशांत किशोर को लालू के पास दोबारा गठबंधन के लिए भेजा था लेकिन तब लालू ने इंकार कर दिया था.

लालू यादव ने बड़ी बेबाकी से अपने मुख्यमंत्री बनने की कहानी भी लिखी है. लालू ने सुशील मोदी से लेकर रविशंकर प्रसाद जैसे नेताओं का नाम लेते हुए यह बताने से नहीं चूके है कि जेपी आंदोलन की लड़ाई को सुशील मोदी और रविशंकर प्रसाद जैसे नेताओं ने दिग्भ्रमित किया था. बहरहाल लालू की आत्मकथा गोपालगंज से रायसीना मेरी राजनीतिक यात्रा -में 13 अध्याय है, जिसकी शुरुआत गरीबी से होती है और अंत उनके बेटों की वाहवाही से. लालू की आत्मकथा देश में पहले राजनीतिक बदलाव को को समझने में सहायक तो होगी ही.